Site icon Youth Ki Awaaz

“देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध और समाज की भयावह स्थिति”

"देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध और समाज की भयावह स्थिति"

हम आजकल महामारी के एक ऐसे दौर में हैं, जहां धुंआ और आग कोई नई खबर नहीं है फिर चाहे वो कहीं भी लगी हो। ठीक ऐसी ही एक खबर झारखंड के दुमका ज़िले के ग्रामीण क्षेत्र मचडीह ब्लॉक जामा से आ रही है, जहां एक लड़की मनीषा जो कि शादीशुदा है, उसके एक मित्र ने उस पर केरोसिन डालकर आग लगा दी और उसे जान से मारने की कोशिश की।

इस हादसे के बाद लड़की की हालत गम्भीर बनी हुई है, जिसके बाद उसे दुमका से इलाज के लिए धनबाद रेफर  कर दिया गया है। वहीं दूसरी ओर इस हादसे को घटित करने वाले आरोपी रोहित को पुलिस अब तक नहीं पकड़ पाई है। बहरहाल, पीड़ित की बहन पार्वती से हमने बात की तब उन्होंने बताया कि आरोपी (रोहित) उसी मोबाइल शॉप पर काम करता है, जहां शादी से पहले मनीषा काम किया करती थी।

13 अप्रैल को जब मनीषा दुमका से पैदल अपने घर जा रही थी, तभी आरोपी ने उसे रास्ते में रोक लिया। उसके साथ ज़ोर-जबरदस्ती कर उसे अपने घर ले गया और वहीं इस अपराध को अंज़ाम दिया। हालांकि, उसने ऐसा क्यों किया? इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है कि दोनों के बीच क्या हुआ था?

वहीं पीड़िता मनीषा ने अपने बयान में कहा है कि रोहित ने मुझे रास्ते में रोका और जोर-ज़बरदस्ती मुझे अपने घर ले गया। वहां एक कमरे में बंद कर पहले मुझसे मारपीट की फिर मेरे गले में दुप्पटा बांधकर आंगन में ले आया।  मनीषा ने आगे कहा उसके परिवार वाले भी वहां मौज़ूद थे और किसी ने मुझ पर केरोसिन डाल दिया और उसने मुझे (रोहित) आग लगा दी।

वहां मौज़ूद उसके परिवार के सभी लोग कह रहे थे, इसे कमरे में बंद कर दो। इसे जान से मार दो। ये यहीं मर जाएगी, किसी को पता भी नहीं चलेगा। वो किसी तरह घर से बाहर निकली और उसे इस हालत में देखकर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए। मनीषा की हालत अभी भी नाज़ुक बनी हुई है, अभी उनके पति और बहन उनकी देखभाल कर रहे हैं।

समाज के नाम पर हम एक मानवता रहित समाज बना रहे हैं 

यह तो हुई घटना! लेकिन क्या अब हम वाकई पत्थर हो गए हैं? क्यों कोई ऐसी जघन्य घटना हमें विचलित नहीं करती? क्यों हर खबर, हर घटना, घटने तक ही हमारे ज़हन में रहती है फिर जैसे हम किसी और बुरी खबर के लिए जगह बना लेते हैं।

ये अभी जांच-पड़ताल का मुद्दा है कि आखिरकार असल विवाद का मुद्दा क्या था? मगर क्या किसी अपराध, किसी घृणा, किसी आपसी विवाद का मतलब यह है कि किसी व्यक्ति पर केरोसिन डालकर उसे आग लगा दी जाए?  किसी व्यक्ति क्यों! मैं साफ कहूं तो एक महिला। हमारे समाज में सबसे सॉफ्ट टारगेट एक महिला ही क्यों होती है?

एक औरत का क्या है? जब किसी को किसी महिला से आपसी रंजिश के चलते बदला लेना हो तो जला दो, रेप कर दो, उसे प्रताड़ित करो, रीति-रिवाज़ के नाम पर उसका खतना करवा दो। अपने तथाकथित सभ्य समाज की मान-मर्यादा पर बन आए तो उसकी योनि को तांबे के तार से सिल दो। यह सब भी ना बन पड़े तो किसी लांछन के चलते उसे डायन-चुड़ैल बना दो, नहीं तो और आसान है आत्मसम्मान के नाम पर उसका, उसके सपनों का गला घोंट दो।

ऐसी घटनाएं हमारे समाज और मानव होने पर प्रश्नचिन्ह हैं 

कितना तो आसान है एक महिला से बदला निकाल लेना। आपको ऊपर लिखा एक-एक शब्द चुभ सकता है, लेकिन सच यही है। ये वो घटनाएं हैं, जिन्हें मैं पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं। हमने ना जाने कैसा समाज गढ़ा है? जहां ना ही इंसानियत रह गई है और ना ही कानून का डर।

यकीन कीजिए, यदि अपराध करने वाले को पता हो कि उसे क्या सज़ा मिल सकती है, तब वो शायद कभी अपराध करने की सोचे भी नहीं। हमारे यहां अपराध कर बच निकलना यह कोई नई बात नहीं है। यदि उस अपराधी को सज़ा हो भी गई तो कुछ महीने, साल में बरी होकर ना सही, ज़मानत पर तो बाहर आ ही जाएगा।

लेकिन, सोचकर देखिए क्या पीड़िता कभी इस दुख से उबर पाएगी? वो लड़की जिसे इतनी भयावहता से जला दिया गया हो, जिसका जीना अब मरने से भी बदत्तर हो गया हो तब उस लड़की के लिए जीवन दोहरी सज़ा भुगतने जैसा  हो जाएगा। क्यों और किसने इस पित्तसतात्मक समाज को इतना सर चढ़ा लिया कि कोई आपके जन्म से लेकर मरण तक आप पर अपना अधिकार थोपे?

क्या एक औरत को इंसान का ही दर्ज़ा नहीं दिया जा सकता? उसे हम इंसान कहकर कभी आंकते ही नहीं हैं। वर्ना हर अपराधी कोई भी अपराध करने से पहले अपने आप में ही ज़रूर कांपता। जैसा कि पीड़ित परिवार की दरकार है और उसे उम्मीद है कि पीड़िता के साथ न्याय ज़रूर होगा।

Exit mobile version