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“बिहार में अफसरशाही पर नकेल कसने के बाद ही यहां विकास देखना संभव हो पाएगा”

बिहार में मुख्यमंत्री कोई भी बने, फर्क नहीं पड़ता। इसलिए कि बिहार की बर्बादी का कारण अफसरशाही है, ना कि राजनीति। सही मायनों में अगर आप नीतीश बाबू का काम उठाकर देखिएगा तो लगभग सारी योजनाएं अच्छी ही आई हैं। जिससे प्रतीत होता है कि वह काम भी करना चाहते हैं लेकिन सारी समस्या के जड़ उनके अफसर हैं।

अधिकारियों के प्रति सम्मान घटता चला गया

देश तो अफसर लोग चलाते हैं लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया चोरी, धांधली और कामचोरी का गणित देखते और सीखते गया, वैसे-वैसे अफसरों के प्रति सम्मान भी घटता चला गया। बिहार में सिर्फ अकेले नीतीश कुमार से काम नहीं चलने वाला है, जो नए चेहरे आ रहे हैं उन्हें भी मौका देने की ज़रूरत है ताकि बिहार की राजनीति में संतुलन बना रहे।

चाहे वह तेजस्वी हों, पुष्पम प्रिया चौधरी हों या फिर कोई और। बिहार में विकास तभी होगा जब राजनेताओं का संतुलन बना रहेगा।

बिहार के अधिकारियों की लापरवाही

बिहार सरकार बिहार स्टार्टअप पॉलिसी लेकर आई। देश का सबसे बड़ा, लगभग 500 करोड़ रुपये का फंड भी सैंकशन हुआ लेकिन अफसर लोग 4 साल तक कुछ काम नहीं किए। जिसका नतीजा है कि बिहार के युवा बाहर जा रहे हैं सब छोड़-छाड़कर। दूसरी बात जीविका के अफसरों की।

जब उन्हें कोई साधारण इंसान या स्टार्टअप मेल करता है, तो साल बीतने के बाद भी औपचारिक तौर पर कोई रिप्लाई नहीं मिलता है। वह ना ही बुला कर पूछना चाहते हैं कि आखिर आपके दिमाग में चल क्या रहा था और हम लोग मिलकर क्या कर सकते हैं?

तीसरे शिक्षा विभाग के अफसर। अगर कोई काम चल रहा है देश दुनिया में तो उसे यह लोग समझना ही नहीं चाहते हैं। बस जो चल रहा है करते रहिए। नीतीश कुमार का निश्चित ही इसके लिए सबसे ज़्यादा रुझान रहा होगा, जो बच्चों को बहुत फायदा पहुंचाता लेकिन इतनी चोरी और बेईमानी है अफसरों में कि कोई कहना ही नहीं। जिसके चलते उस तरीके के बदलाव की उम्मीद दिख नहीं रही बिहार में।

चौथा बिहार राज्य के प्रिंसिपल सेक्रेटरी और अलग-अलग जगह के डीएम, जिनमें कभी भी युवाओं को बुलाकर जानने-समझने और मदद करने की मंशा ही नहीं होती। इनका असर यह है कि बाहर से लौटे हुए युवा भी एक समय के बाद अपना दम और हिम्मत तोड़ देते हैं और फिर से वापस जाने को मजबूर हो जाते हैं।

ऐसी ना जाने कितनी ही बातें हैं, जिसे मैंने खुद के साथ देखा है। जो लोग साथ में काम कर रहे हैं, उनके साथ भी देखा हूं। सच में बिहार अफसरों से परेशान है ना कि राजनेताओं से।

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