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“कुछ ही मिनटों में जब बरसों के सपने खाक हो गए”

"कुछ ही मिनटों में जब बरसों के सपने खाक हो गए"

14 अप्रैल की दोपहर दक्षिण दिल्ली स्थित जामिया नगर के नूर नगर के झुग्गी-झोपड़ी निवासियों के लिए बगैर बताए किसी बड़ी मुसीबत की शक्ल में आ खड़ी हुई। दोपहर के दो बज रहे थे। सभी अपने कामों में व्यस्त थे। कोई रिक्शे की सवारी से सौ-दो सौ कमाने के लिए घर से बाहर था, तो कोई पास की कोठियों में झाड़ू-पोंछा करके रोज़ी-रोटी की तलाश कर रहा था।

अचानक तब ही एक इलेक्ट्रिक शॉक से आग लगी और महज़ दस मिनट के भीतर करीब सौ झोपड़ियां राख में तब्दील हो गईं। घंटे-डेढ़ घंटे के बीच दिल्ली फायर सर्विस पहुंची, मगर तब तक सभी झोपड़ियां आग के हवाले हो चुकी थीं। इन सब में राहत की बात यह रही है कि इस हादसे में किसी की जान को नुकसान नहीं हुआ है।

शबाना बेसुध-बेखबर अपनी हालत पर रोती हुई कहती हैं कि हमारा सब कुछ इस आग में  बर्बाद हो गया। हमारे पास कुछ बाकी नहीं रहा। हाथ में रखे राख के कुछ ढेर को दिखाते हुए शबाना आगे कहती हैं यह बीस हज़ार रुपए हैं। इस हादसे की आग में बीस के बीस हज़ार रुपये जलकर राख राख हो गए। अपनी बहन की शादी के लिए दिन- रात एक करके संजोए थे यह पैसे। वहीं दूसरे हाथ में जले हुए प्लास्टिक बैग्स में कुछ गहनों को दिखाते हुए शबाना रोने लगती हैं।

वे कहती हैं कि अब मैं अपनी बहन की शादी कैसे करूंगी? मेरे परिवार में कोई नहीं है कमाने वाला। कोठियों में झाड़ू-पोंछा करके बहन की शादी के लिए बीस हज़ार रुपए और कुछ गहने इकट्ठा किए थे। इनमे एक वाशिंग मशीन भी शामिल थी। इस आग में सारा के सारा सामान जलकर राख हो गया है।

40 वर्षीय मोहमद इमरान बताते हैं कि आगज़नी की ख़बर सुनकर वह दौड़ता हुआ आया। अपने बच्चों को जल्दी- जल्दी झोपड़ी से बाहर निकाला। हमारे बच्चे दो मिनट भी अंदर रह जाते तो उनका नामोनिशान तक नहीं बचता। हमारे पास इतना समय भी नहीं था कि हम अपने लिए दो जोड़ी कपड़ा भी निकाल सकें। हमने जो कपड़े अभी पहने हैं उसके अलावा हमारे पास कोई दूसरा कपड़ा नहीं है। आग में जलकर सब राख हो चुका है।

मोहम्मद इमरान बताते हैं कि हमारे पास एक रुपया तक नहीं बचा है। झोपड़ियों में रहने वाले अधिकतर लोग ई- रिक्शा चलाते थे। आग लगने से जितने रिक्शे पार्किंग में लगे थे सब जलकर ख़ाक हो गए। ऐसे में हमारे पास अब रोज़गार का कोई साधन नहीं बचा है। हमारे बच्चे भूखे हैं। मैं ज़ख्मी हूं। इलाज के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं। अब हम कहां जाएंगे! कैसे हमारे परिवार का गुज़र-बसर होगा?

रुखसाना खातून बताती हैं कि जब आग लगी तो मैं कोठी से काम करके वापस घर लौटी ही थी। अचानक शोर मचा। मैं बच्चों को लेकर बाहर निकल आई। मैं बुरी तरह से डरी हुई थी। आग के शोले आसमान को छू रहे थे। नज़रों के सामने अपने बरसों की मेहनत को खाक होते हुए देख रही थी। मेरे चार छोटे-छोटे बच्चे हैं। इनको लेकर कहां जाऊंगी? मेरा घर नहीं बचा। सरकार ने पास के स्कूल में रहने का इंतज़ाम किया है। रमज़ान का महीना चल रहा है। वक्त पर सेहरी और अफ्तारी नहीं मिल पाती है। उसके लिए भी हमें अलग जद्दोजहद करनी पड़ती है।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि विधायक अमानतुल्लाह खान आए थे। उन्होंने प्रत्येक परिवार को 25 हज़ार देने का वादा किया है। मोहम्मद इमरान कहते हैं की दो दिन बीत चुके हैं। मगर अब तक हमें कुछ आश्वासन नहीं मिला है कि हमें पैसे कब तक मिलेंगे?

वहीं आसिया ख़ातून कहती हैं कि आज शाम हम लोग स्थानीय विधायक अम्नतुल्लाह खान के पास मदद की गुहार लगाने जाएंगे। हमें सरकार से कुछ नहीं चाहिए। हम एक नए सिरे से अपनी ज़िंदगी की शुरुआत करना चाहते हैं। बस सरकार हमें रहने के लिए एक घर मुहैया करा दे।

  

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