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“आंकड़ों के पीछे बहुत ही सलीके से छिपाया जा सकता है कुछ भी”

शीर्षक : आंकड़े
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“1092, 1621, 2023”

आंकड़ों के साथ एक भ्रामक खबर फैलाई गई है

कि आंकड़े दिखाते हैं सत्य

मगर मुझे लगता है आंकड़े

छिपाते हैं सत्य

गोल और सीधी खींची कुछ रेखाओं के पीछे

बहुत सलीके से छिपाया जा सकता है कुछ भी

किसी के पेट की भूख,

किसी व्यक्ति का संघर्ष

किसी परिवार की व्यथा

और लाशें भी

 

अखबार में छपे आंकड़े

लाते हैं डर, चिंता या उल्लास

मगर वो नहीं लाते अपने साथ

करुणा या संवेदना

 

दुर्घटना में मरे 2 लोग

उनकी ज़िंदगी

और उनकी मौत

या मौत के सबब

नहीं रह जाते मुख़्तलिफ़

दोनों मिल कर बन जाती हैं

“रोड दुर्घटना में कल शाम फलां जगह हुई.. 2 मौतें।”

~ सोम

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