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“हिटलर अपने अंतिम दिनों में एक कायर, बेबस और लाचार व्यक्ति से ज़्यादा कुछ भी नहीं था”

उन्नीसवीं सदी में अप्रैल का एक महीना एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक घटना का साक्षी रहा, जब 12 साल जर्मनी ओर 7 साल यूरोप को डरा कर रखने वाला एक तानशाह एकदम अकेला हो गया था। उसको उसी के साथियों ने धोखा दे दिया था, जिसके आगे-पीछे लोगों और रक्षकों की लाइन लगी होती थी। अब वह थोड़े से वफादारों के दम पर बैठ था। जिसके चेहरा पर नूर होता था, अब एक बूढ़ा बीमार लग रहा था।

तानाशाह हिटलर के अंतिम दिनों की कहानी

ये तानाशाह था एडोल्फ हिटलर, जर्मनी का फ्यूहरर और चांसलर। जिसने 1933 में जर्मनी की कमान संभाली और 1945 में उसका साम्राज्य ढह गया था। एक तरफ अमेरिकी और ब्रिटिश, वहीं दूसरी तरफ सोवियत रूस की सेना जर्मनी पर गोले बरसा कर उसे बर्बाद कर रहे थे। वहीं एक हारी हुई सेना उसे बचा रही थी और वह छुपकर बैठा था, जिसको धोका देने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था।

उसे उसके सपने धोका दे रहे थे और फिर खबर आई कि उसके दोस्त और इटली के तानाशाह बेनिटो मुससोलिनी की न सिर्फ हत्या कर दी गई, बल्कि सरे बाज़ार उसकी और उसके लोगों के लाशों पर पत्थर फेंके गए।

खुद का भी ये अंजाम न हो इसलिए उसने आत्महत्या करने की सोची। आत्महत्या करने से एक दिन पहले उसने 29 अप्रैल को अपनी प्रेमिका ईवा ब्राउन से शादी भी की। हालांकि, वो कहता था कि “मैं शादी नहीं कर सकता हूं, क्योंकि मैं जर्मनी का हूं और मेरी ज़िंदगी जर्मनी की है।” आखिर में 30 अप्रैल 1945 को उसने अपनी पत्नी और अपने कुते के साथ मौत को गले लगा लिया। खुद को गोली मारी और अपनी पत्नी और कुत्ते को ज़हर दे दिया और अपने साथियों को ये हुक्म दिया कि उसकी लाश को दफनाने की जगह जला दिया जाए ताकि दुशमनों के हाथ न आए।

हिटलर की मौत की रिपोर्ट तब आई, जब मार्टिन बोर्मन ने कार्ल डॉनट्ज को एक टेलीग्राम लिखकर हिटलर की मौत की सूचना दी। उस पल में और भी बहुत कुछ हुआ। 20 अप्रैल 1945 को हिटलर ने अपना आखिरी जन्मदिन मनाया। अपने बंकर में (जो जर्मनी की संसद ने नीचे बना था) उसने यह जन्मदिन मनाया। जिसमें उसके सारे साथी आये और वो भी जो उसे उस वक्त धोखा दे रहे थे।

जब पार्टी खत्म हुई तब 22 अप्रैल 1945 को हिटलर और उसके सैनिकों की आखिरी मीटिंग हुई, जिसमें हिटलर को यह मानना पड़ा कि वो जंग हर चुका है और अब उसका बचना नामुमकिन है। अब उसे अहसास हो गया कि वो एक हारा हुआ और कमज़ोर आदमी से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। अब उसकी कोई पहचान नहीं रह गई थी। अपनी जान बचाने के लिए भी वो एकदम बेबस और लाचार हो गया था।

सबसे बड़े वफादार भी धोखा देने लगे थे

हिटलर का एक इनर सर्किल था, जिसे लोग ईविल सर्किल बोलते हैं। उसके 2 सबसे खास सदस्य थे, हैरिच और हिमलर। जो उस वक्त जर्मनी के सबसे बदनाम कातिलों की फौज एसएस का प्रमुख था। ये वही फौज है, जिसने 1939-44 तक अनगिनत यहूदियों का कत्ल किया। उनको कॉन्सन्ट्रेशन कैम्प्स में पहले बंधुआ मज़दूर बनाया और फिर जान ले ली।

मगर 1944 के आते-आते हिमलर ये समझ गया था कि अब जर्मनी की हार तय है और जब जर्मनी हारेगा तो वो भी फांसी चढ़ेगा। इसलिए खुद को बचाने के लिए हिमलर ने अलाइड फौज जो अमेरिकी, रूसी और ब्रिटिश फौजों का एक नाम था, उनसे बात करनी शुरू कर दी ताकि कम से कम वो उसे जाने दें। इसी चलते उसने 15 अप्रैल को 1200 यहूदियों को रूसी फौज को सौंप दिया था, जो सीधा हिटलर से धोखा था।

जिसके लिए हिटलर उसे मरवा भी सकता था और स्वीडन की सरकार से उसने डील भी शुरू कर दी, जिसमें शायद वो कामयाब भी हो जाता। उसकी डील चल ही रही थी कि उसे एक बड़ा झटका लगा और वो ये कि उसकी डील का पूरा दुनिया को पता चल गया। अलाइड फौजों ने अपने अखबारों और रेडियो पर खबर चला दी कि हिमलर अलाइड फौजों के साथ डील कर रहा है।

बस हिटलर को पता चल गया और धोखा खाया हिटलर ने हिमलर को मारने के हुक्म दे दिए। मगर तब तक देरी हो चुकी थी। हिमलर को मारने के लिए कोई था ही नहीं। हिमलर सबसे बड़ा वफादार था और अब उसने ही धोखा दे दिया था। हालांकि, हिमलर को कोई फायदा नहीं हुआ। खुद को बचाने के लिए उसने आत्महत्या कर ली।

दूसरा बड़ा धोखा उसे हरमन गोइरिंग से मिला जो उस वक्त जर्मनी की वायु सेना का प्रमुख था और हिटलर की सरकार में नंबर 2 था। जैसे ही हिटलर के बुरे दिन आये और गोरिंग समझ गया कि अब हिटलर सरकार चलाने की हालत में नहीं है, तो अपने फार्म हाउस में बैठे गोरिंग ने एक टेलीग्राम लिखा। जिसमें उसने हिटलर को कहा कि इस वक्त बुरे हालात चल रहे हैं, अगर हिटलर 24 घंटे में इसका जवाब नहीं देते हैं तो में समझूंगा कि अब वो सरकार चला नहीं सकते है और पार्टी में नंबर 2 होने की वजह से वो फ़्यूहरर का पदभार संभालेंगे।

टेलीग्राम मार्टिन बोरमैन के हाथ लगा जो हिटलर का सेक्रेटरी था एयर हिमलर और गोरिंग का पक्का विरोधी भी। उसने उस टेलीग्राम को हिटलर को दिखाया और हिटलर को भड़काया कि गोरिंग उसे धोखा दे रहा है।

गुस्से में आये हिटलर ने गोरिंग को सारे पदों से हटा दिया और इस धोखे को भी हिटलर बर्दाश्त नहीं कर पाया। बाद में गोरिंग भी पकड़ा गया। उस पर न्यूरेमबर्ग में मुकदमा चला और बेगुनाहों के कत्लों के इल्ज़ाम मैं मौत की सजा मिली। मगर इससे पहले कि वो गोरिंग को मार पाते, गोरिंग ने आत्महत्या कर ली।

मरने से पहले किया अपने उत्तराधिकारी का एलान

हिटलर के मरने से पहले ही अपने उत्तराधिकारियों का एलान कर दिया था, जो उसकी मौत के बाद सामने आया। उसकी तरफ वफादार रहे उसके प्रोपेगैंडा मंत्री जोसफ गोवेल्स को जर्मनी का चांसलर और उसके सेक्रेटरी मार्टिन बोरमन को नाज़ी पार्टी का प्रमुख बनाया गया। मगर सवाल ये था कि राष्ट्रपति कौन बनेगा? जर्मनी का इसका जवाब काफी हैरान करने वाला था, जो किसी ने नहीं सोचा था।

वो था जनरल कार्ल डोनिट्ज़ जो उस वक़्त जर्मनी की नेवी में सबमरीन्स का प्रमुख था। हिटलर के उस पर भरोसे की वजह थी, उसकी यु-बोट द्वारा लगातार हो रही जीत। जब सब हार रहे थे, कार्ल डोनिट्ज़ जीत रहा था। हिटलर की मौत के वक्त वो जर्मनी में नहीं, बल्कि फलेंस्बर्ग मैं अलाइड फौजों से मुकाबला कर रहा था। डोनिट्ज़ हिटलर के इनर सर्किल का भी सदस्य नहीं था पर हिटलर के भरोसेमंद लोगों में से एक था।

जब जर्मनी हारने लगा तो हिटलर के बाद गोबेल्स ने भी अपने पूरे परिवार सहित आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसका मानना था कि हिटलर के बिना उसका और उसके परिवार का कोई भविष्य नहीं है। ये बात उसने अपने बेटे को लिखी एक चिट्ठी में कही थी। जोसफ गोबेल्स के प्रोपेगैंडा मंत्री रहते यहूदियों के खिलाफ अभियान चलाने, जर्मन लोगों को भड़काने और यहूदियों के कत्ल का भी इल्ज़ाम था, जो एक दम सच था।

मार्टिन बोरमन बंकर से निकलने में कामयाब हो गया पर वेरली से कुछ दूर जब अलाइड फौजों ने उसे घेरा तो उसने खुद को गोली मार ली। सालों बाद उसकी लाश 1972 में तब मिली जब एक रेलवे स्टेशन के नीचे की मिट्टी की खुदाई हुई। मार्टिन बोरमन पर भी कई बेगुनाह यहूदियों और रूसी अफसरों की हत्या के इल्ज़ाम थे। न्यूरेम्बर्ग मुकदमे में बकायदा वो दोषी पाया गया था और अगर हाथ लगता तो उसका भी मरना तय था।

तानाशाही साम्राज्य का अंत

जर्मनी के नए राष्टपति कार्ल डोनिट्ज़ ने जर्मनी के आत्म समर्पण का एलान कर दिया और 23 मई 1945 को जर्मनी के राष्ट्रपति पद से भी इस्तीफा दे दिया। फिर न्यूरेम्बर्ग में उसपर भी मुकदमा चला। हालांकि किसी बेगुनाह की हत्या उसने नहीं की थी। उसपर बस यु-बॉट्स के ज़रिए बिना उकसावे के ब्रिटिश मरचेंट शिप्स को डुबाने का आरोप साबित हुआ, जिसकी वजह से उसे 10 साल की सज़ा हुई। जिसे पूरा कर वो 1 अक्टूबर 1956 को रिहा हो गया और कई सालों बाद 24 दिसंबर 1980 को उसकी मौत को गई।

जो सारी ज़िन्दगी ताकत के साथ जीता रहा वो लाचार ही मर गया। ऐसा अंजाम हुआ एक तानशाह का और उसके हर साथी का। इसलिए हर धर्मग्रंथ यह कहता है कि इंसानों को उसके कर्मों की सज़ा भुगतनी ही पड़ती है। ये सारे राक्षस थे और अंत में इन्हें इसकी सज़ा भी मिली।

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