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“मैं लिखता हूं, क्योंकि मुझसे लिखे बिना नहीं रहा जाता”

लिखना किसी का पेशा होता है तो किसी का शौक। कोई कमाने के लिए लिखता है, तो कोई बस ऐसे ही। हर कोई कुछ न कुछ लिखता है। कोई कहानी लिखता है, तो कोई ऐसा कुछ लिखता है जिसपर कहानियां लिखी जाती हैं। लिखना मेरे पेशे से ज़्यादा आदत में है।

मैं चाहकर भी बिना लिखे नहीं रह सकता। कभी किसी बात को लेकर, कभी किसी मुद्दे पर, तो कभी-कभी सिर्फ अपने लिए भी लिखता हूं। लिखने से बहुत सुकून मिलता है। पता नहीं क्यों?

किसी का लिखा पढ़-पढ़कर लिखने का विचार आया

कई लोगों ने कहा कि लिखने से क्या होता है और मैं भी कभी-कभी सोचता हूं कि क्या वाकई कोई बदलाव होता है लिखने से? क्या किसी को कोई कोई फर्क पड़ता है या किसी के विचार में बदलाव आता है? फिर विचार आता है कि अभी जिस वैचारिक स्थिति तक मैं पहुंचा हूं और जो कुछ भी लिख पा रहा हूं, उसमें एक बहुत बड़ा योगदान किसी के लिखे हुए को पढ़ने का है।

बहुत सारा साहित्य पढ़कर ही आज ये विचार विकसित हुए हैं, तो उनसब ने भी यही सोचा होता तो कितनों को शायद रास्ता ना मिलता। बहुत लोगों के जीवन में कई बार ऐसा वक्त आता है, जब उनको कोई रास्ता नहीं सूझता। ऐसे में कभी-कभी किताबें या किसी की कही हुई बातें रास्ता बना जाती हैं। कई बार लिखा हुआ वास्तविक होता है, तो कभी-कभी काल्पनिक लेकिन उस कल्पना में भी एक रास्ता छुपा होता है।

थोड़ा सा ही कुछ बदल जाए इसलिए लिखता हूं

ये सब सोचते ही मुझे भी समझ में आ जाता है कि बहुत कुछ नहीं तो थोड़ा सा तो बदल ही जाए। शायद इस सहारे मैं भी बहुत बदलता रहता हूं लगातार। एक ज़िम्मेदारी के साथ कि जो मैं लिखूंगा वो लोगों के पास पहुंचना चाहिए। उनको समझ आना चाहिए और कुछ ऐसा न हो जो उन्हें कुछ गलत बताए, बल्कि ऐसा हो जो उन्हें अपना निर्णय लेने और समझ विकसित करने में थोड़ी मदद करे।

जब से लिखना शुरू किया तबसे जहां लगा, वहां अपनी रचनाएं भेजता रहा। कहीं से मना कर दिया गया, तो कहीं छप गया। एक दिन ये जगह भी दिख गई। कुछ स्वीकार हुआ, कुछ अस्वीकार। अस्वीकार से समझ आया कि कुछ सुधारना है और स्वीकार से समझ आया कि शायद लोग पढ़ना चाहते हैं।

जो भी हो छपना-छपाना तो सब अपनी जगह है लेकिन लिखे बिना रहा नहीं जा सकता। सबके जीवन में बहुत कुछ ऐसा होता रहता है जो सिर्फ उससे ही नहीं जुड़ा होता है, बल्कि समाज के बहुत लोगों से जुड़ा होता है। तो उनको उनकी बात ना बताकर ये अन्याय करना ठीक नहीं। इसलिए लिखता हूं।

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