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गोंड आदिवासियों की भाषा, संस्कृति और चिन्ह 750 का महत्व

भारत में बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं। कई छोटे समुदाय हैं, तो कई काफी बड़े। भारत में गोंड आदिवासी समाज बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक हैं। 2001 की जनगणना में इस समुदाय की जनसंख्या 1 करोड़ से भी ज़्यादा थी।

गोंड आदिवासियों की भाषा, संस्कृति और चिन्ह

गोंड आदिवासी समाज के कई चिन्ह-प्रतीक होते हैं। जैसे इनकी भाषा, जिसे गोंडी कहते हैं। इस भाषा की राज्य और जिले के हिसाब से अलग-अलग बोलियां होती हैं। उदाहरण के तौर पर बस्तर में रहने वाले गोंड आदिवासियों की बोली अलग होती है। कोरबा जिले में रहने वाले गोंडी आदिवासियों की बोली अलग होती है। हमारी गोंडी भाषा मध्य व पूर्व भारत के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है।

इसे बोलने वाले तो लाखों लोग हैं लेकिन इस पुरानी भाषा का कोई शब्दकोश नहीं है। समय के साथ-साथ हमारी मातृभाषा लुप्त होने लगी है। अगर हमने हमारी गोंडी भाषा को नहीं बचाया, तो भाषा के साथ साथ हमारी संस्कृति, सभ्यता, लिपि, धर्म सबकुछ मिट जाएगा। भाषा ही हमारी पहचान बनाती है और अपनी पहचान बचाने के लिए हमें अपनी गोंडी भाषा को बोलने और जानने का निरंतर प्रयास करना चाहिए।

गोंड आदिवासियों के लिए 750 का क्या महत्व है?

भाषा के साथ-साथ गोंड समाज में ऐसे कई चिन्ह-प्रतीक होते हैं, जो हर क्षेत्र के गोंड आदिवासियों में समान होते हैं।

इन चिन्हों में से एक है 750 की संख्या। यह 750 का चिन्ह सिर्फ संख्या नहीं है, बल्कि यह मनुष्य से संबंधित जीवन के बारे में जानकारी देता है।सभी गोंड आदिवासियों को अपने मूल्य चिन्ह 750 के बारे में जानकारी होती है। इस अंक में सभी मनुष्य से संबंधित उनके विवाह से लेकर उनके मरण तक का ज्ञान छिपा होता है।

इस ज्ञान का हम गोंड आदिवासी अपने दैनिक जीवन में हमेशा पालन करते आ रहे हैं। 750 अंक महान और पूजनीय हैं।

7 का अर्थ होता आत्मा गुण

मनुष्य को अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिए विवाह सूत्र में बंधना पड़ता है। जब विवाह होता है, तो 7 दिनों को साक्षी मानकर 7 वचन के साथ-साथ 7 फेरे लेते हैं। इसलिए यह अंक शुभ माना जाता है।

5 का अर्थ होता है शरीर

शरीर 5 तत्वों से मिलकर बना होता है- आकाश, धरती, पानी, अग्नि और हवा। मृत्यु के बाद शरीर दफनाने से पहले 5 फेरे लगाए जाते हैं। तत्पश्चात उसे गड्ढे में डालकर 5 बार प्रत्येक व्यक्ति 2 मुट्ठी मिट्टी डालते हैं। इसपर फिर 5 उरई का पौधे लगा देते हैं। उरई का पौधा छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी क्षेत्रों में पाया जाता है। जिसका उपयोग किसी के मृत्यु के बाद ही किया जाता है।

यह पौधा मृत शरीर को दुर्गंधित होने से बचाता है। यह रूढ़ि प्रथा गोंड आदिवासियों में अनादि काल से चली आ रही है। आदिवासियों का कहना है कि मृत शरीर को दफनाने के बाद 5 तत्वों की क्रिया-प्रक्रिया करके उसमें 9 शक्तियां उत्पन्न होती हैं। यह शक्तियां पृथ्वी के अंदर पानी की धारा में बहते हुए नदी, तालाब आदि में बहती हैं।

0 का अर्थ होता है निरंकार

जिसका कोई आकार नहीं होता है। यह 0 पृथ्वी के समान गोल होता है। आदिवासियों का कहना है कि माँ के पेट में जब बच्चा अवतरित होता है, तब माँ का पेट गोलाकार दिखाई देता है। जिसे पृथ्वी का रूप बताया गया है। अतः इस गोलाकार रूप पृथ्वी में जीवन और मृत्यु होती है। इसलिए तीसरा अंक शुभ और पूजनीय होता है।

750 अंक है देव संख्या से जुड़ा

7 + 5 + 0 को जोड़ने से 12 अंक प्राप्त होते हैं। हम गोंड आदिवासियों में 12 ज्योतिर्लिंग होते हैं। हमारे गोंडवाना समाज में 12 गोत्र देव संख्या होते हैं। जिनके नाम एक देव, दो देव से लेकर से बारह देव होते हैं। इनके गोत्र की संख्या 750 होती है। गोंड आदिवासियों की देव गोत्र संख्या 1 से लेकर 7 देव संख्या में 100 गोत्र होते हैं।

8 से लेकर 12 देव संख्या में 10 गोत्र होते हैं। इन सभी देव संख्या को जोड़ने से 750 देव गोत्र का अंक प्राप्त होता है। जो गोंड आदिवासियों की प्रमुख चिन्ह होता है। इसी प्रमुख चिन्ह से गोंड आदिवासियों को पहचाना जाता है।

750 गोंड आदिवासियों का बहुमूल्य चिन्ह होता है। इसमें संसार में रहने वाले सभी लोगों के जीवन के बारे में वर्णन होता है। गोंड आदिवासियों को अपने संस्कृति, भाषा और चिन्ह को हमेशा याद रखना चाहिए। हमारी संस्कृति में अमूल्य ज्ञान बसा है। इस पर हमें गर्व होना चाहिए और इसे लुप्त होने से बचाना चाहिए।

 

यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है। इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।

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