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“ज़मीन छीनने से नहीं, वंचितों को व्यवस्था में जगह देकर आत्मनिर्भर बन सकेगा भारत”

सन 1881 में पहली बार ब्रिटिशों ने भारत में जनगणना शुरू की और तब से यह लगातार होती आ रही है। उससे पहले राष्ट्रीय आय या प्रति व्यक्ति आय की भी गणना नहीं होती थी। इंडिविज़ुअल एस्टिमेटर्स जैसे दादाभाई नौरोजी, विलियम डिग्बी, वी.के.आर.वी. राव गणनाएं करते थे।

जब सन 1921 और उसके बाद डेमोग्राफिक ट्रांज़ीशन्स हुए, तब भारत में जनगणना के असल मायने समझे गए और कई चीज़ें सामने आईं। आइये उनका मिलान हम आज के भारत से करते हैं और परखते हैं कि हम कितना आगे बढ़े हैं?

● शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate)

तब : 1000 में से 218 नवजात बच्चों की मृत्यु हो जाती थी
अब : 1000 में से 40 नवजातों की मृत्यु होती है

संख्या कम ज़रूर हुई है लेकिन अभी भी हमारी मेडिकल फैसिलिटीज़ में बेहद सुधार की आवश्यकता है।

● जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy)

तब : 44 वर्ष की उम्र का औसत जीवन था
अब : 68 वर्ष की उम्र का औसत जीवन है

लाइफ एक्सपेक्टेंसी में 22 वर्षों की बढ़त हुई है लेकिन अभी-भी हमें बेहतर सुविधाओं, खासकर ग्रामीण-आदिवासी इलाकों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता है।

● साक्षरता दर (Literacy Rate)

तब : 16 प्रतिशत साक्षरता दर, जिनमें से महिलाओं की साक्षरता केवल 7 प्रतिशत
अब : 74 प्रतिशत साक्षरता दर, जिसमें से महिलाओं की साक्षरता 65%

साक्षरता दर में बढ़त का श्रेय पूरी तरह से “आरक्षण” व्यवस्था को दिया जाना चाहिए। इस व्यवस्था के चलते शिक्षा अमीर कुनबों की जकड़न से छूटकर निचले तबकों तक भी पहुंची।

● कृषि क्षेत्र (Agricultural Sector)

सन 1921 के आसपास 70-75 प्रतिशत लोग इसी क्षेत्र से जुड़े थे, लेकिन ज़मींदारी सिस्टम के कारण सारा मुनाफा ब्रिटिश सरकार और ज़मींदार लोग लेते थे। किसानों पर तमाम टैक्स लगाए गए थे और उन्हें रिवेन्यू देना होता था। आज भी कुछ ऐसा ही है। ज़मींदारी सिस्टम हट चुका है लेकिन फिर भी धन्ना सेठों, ठेकेदारों की कमी नहीं है.

अभी भी सारा मुनाफा उनके हाथों में रह जा रहा है। किसान-मज़दूर का 10 रुपया उनके हाथ में आते-आते 2 रुपये में तब्दील हो जा रहा है।

● औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Sector)

अंग्रेजों ने भारत के हथकरघे और हस्तनिर्मित वस्तुओं के उद्योग को डुबा दिया, ताकि उनके बनाये हुए माल की भारत में बिक्री हो। ब्रिटिशों ने रॉ मटेरियल यानी कच्ची सामग्री भारत से ली और उसी से तैयार माल को भारत में आकर बेचते और मुनाफा कमाते थे। आज भारत के पास अपने उद्योग हैं और उद्योगपति हैं लेकिन इनकी भी फितरत वही है। मज़दूर-किसान की ज़मीनों पर अपने उद्योग-धंधे चलाते हैं।

अभी कुछ साल पहले “स्टेच्यू ऑफ यूनिटी” बनाने के लिए कितने ही मज़दूरों-किसानों-आदिवासियों की ज़मीन हड़पी गई और तो और इसकी खबर चलाने वाले चैनल का भी सरकार ने लाइसेंस रद्द कर दिया।

कैसे आत्मनिर्भर बनेगा भारत?

कुल मिलाकर एक नटशेल पर हम यह कह सकते हैं कि ब्रिटिश राज में स्थितियां बहुत बुरी थीं। मगर पिछले 7 दशकों के विकास को भी हम खारिज़ नहीं कर सकते। हम आगे बढ़े हैं, लेकिन अभी भी बहुत से रोड़े हैं। सामाजिक और आर्थिक दिक्कतें हैं, जिनसे पार पाया जाना अभी बाकी है।

मूर्तियां बनाने से अच्छा है कि उस ज़मीन पर नए हथकरघे और नए उद्योग शुरू किए जाएं। ग्रामीणों-आदिवासियों को साथ लेकर और उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चला जाए। व्यवस्था में उन्हें जगह और तरज़ीह दी जाए। तभी तो स्वराज आएगा और तब जाकर बनेगा “आत्मनिर्भर” भारत!

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