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“विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव क्या इंसानी जान से ज़्यादा कीमती हैं?”

"विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जनता के हितों की सुरक्षा ज़रूरी है या चुनाव?"

एक बार फिर पूरे विश्व को इस कोरोना महामारी ने जोर-शोर से जकड़ लिया है। 1 मार्च, 2020 को पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगाया गया था, लेकिन एक साल बाद यानी 2021 में फिर से कोरोना वायरस लगातार बढ रहा है। इस बीच पूरी दुनिया में वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना की वैक्‍सीन पर शोध जारी है। वर्तमान में भारत, रूस समेत अन्‍य देशों ने इसकी वैक्‍सीन जारी की है।

हमारे देश भारत द्वारा 2 वैक्‍सीन का निर्माण किया गया है। कोविशील्‍ड वैक्‍सीन, इस वैक्‍सीन का उत्‍पादन भारत में सीरम इंस्‍टीट्यूट द्वारा किया जा रहा है। कोवैक्‍सीन, इस वैक्‍सीन का उत्‍पादन भारत बायोटेक द्वारा किया जा रहा है। सरकार एव कई सामाजिक संगठन लोगों में जागरूकता फैलाने का भी काम कर रहे हैं, लेकिन क्या केंद्र एवं राज्य सरकारें इस बार इस मामले में अपनी असफलता का परिचय दे रही हैं?

मोदी सरकार और राज्य सरकारों द्वारा नागरिकों के लिए सिर्फ वादे, दावे के आधार पर ही हर तरह की योजना लागू की गईं हैं, शायद पिछले वर्ष सरकार ने इस महामारी से निपटने की लिए अच्छे से पूर्ण तैयार नहीं की थी। इसलिए ही उस समय पूरे देश में चरणीयबद्ध लॉकडाउन लगाया गया था। जनता ने तमाम परिस्थितियों के बावजूद भी केंद्र और राज्य सरकारों का साथ दिया, लेकिन इस बार फिर दोनों केंद्र एवं राज्यों की सरकारें कोरोना से निपटने की लिए समय रहते हुए अलर्ट नहीं हो पाईं जिसका आम जन को प्रतिफल यह मिला कि देशभर में एक बार फिर से नाईट कर्फ्यू एव लॉकडाउन जैसी परिस्थितियां पैदा हो गईं हैं।

जिसका खामियाजा देश के हर मध्यम एव गरीब वर्ग को भोगना पड़ रहा है जो रोज़ कुंआ खोदकर रोज़ पानी पीने की तर्ज पर कार्य करते हुए परिवार का पालन पोषण करते हैं। लेकिन, इस महामारी का प्रकोप इतना फैल चुका है कि उसका खामियाजा प्रत्येक देशवासी को भोगना पड़ रहा है। प्रत्येक ज़िले के सरकारी आंकड़ों के अनुसार चार से पांच मौतें रोज़ हो रही हैं, लेकिन मुक्तिधाम (शमशान) में जलती असंख्य चिताएं  और उसके बाहर लगी लाशों की लाइनें सरकार के इस झूठ का पर्दाफाश कर रही हैं।

 इस महामारी के बीच सरकार का चुनावी दंगल जारी है   

 महामारी के बीच में कई राज्यों में विधानसभा एव अन्य चुनावों की तैयारिया चल रही हैं। इसी बीच कई जगह कोरोना के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है, लेकिन सरकार अपनी धुन में देश को छोड़ सत्ता के मोह में चुनावों एवं रैलियों में व्यस्त है। बंगाल में वर्तमान में चुनाव चल रहे हैं और अभी वहां चार चरणों की वोटिंग होना बाकी है। चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। चुनाव प्रचार की रैलियों में लाखों, हज़ारों की संख्या में लोग बिना मास्क के नज़र आ रहे हैं।

चुनाव आयोग ने फरमान जारी किया कि चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं हुआ तो कड़ी कार्रवाई होगी और चुनावी रैलियों पर रोक लगाई जा सकती है। उम्मीदवारों, स्टार प्रचारकों के चुनाव प्रचार करने पर रोक लगाई जा सकती है। आयोग ने यह फरमान तब जारी किया जब असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के चुनाव खत्म हो चुके थे, लेकिन आयोग के फरमान का किसी भी पार्टी पर जरा भी असर नहीं हुआ और बंगाल के चुनाव प्रचार में पहले जैसा ही नज़ारा है। चुनाव आयोग ने अब तक ना तो किसी नेता की रैली पर रोक लगाई गई और ना ही किसी पार्टी ने आयोग से इस बारे में कोई शिकायत ही की है।

जाहिर है कि कोई शिकायत करे भी तो कैसे? क्योंकि नियमों का मखौल उड़ाने में कोई भी पार्टी किसी दूसरे दल से कमतर नहीं है। मतलब साफ है कि किसी भी दल को चुनाव आयोग के फरमान की ना परवाह और ना ही कोई डर है, लेकिन सरकार को इन सब चीज़ों से थोड़ी कोई फर्क पड़ता है उन्हें तो हर प्रदेश में अपनी सरकार बनानी है। चुनावी रैलियां करनी हैं, लेकिन साथ विपक्ष को भी कहां कोई फर्क पड़ता है उन्हें भी सिर्फ अपनी रोटियां सेकनी हैं।

चुनाव आयोग की निष्क्रिय भूमिका 

ऐसे में सवाल उठता है कि चुनाव आयोग आखिर और क्या करे कि सभी पार्टियों में उसका डर बैठे और कोरोना नियमों का सख्ती से पालन हो? दिल्ली हाइकोर्ट के एडवोकेट व संविधान विशेषज्ञ अनिल अमृत कहते हैं कि चुनाव आयोग के पास यह विधायी अधिकार नहीं है कि वह सम्पूर्ण रुप से चुनाव प्रचार पर रोक लगा सके, लेकिन चूंकि कोरोना महामारी एक अभूतपूर्व स्थिति है। ऐसे में वह चुनावी राज्यों के सभी डीएम व कलेक्टर को यह निर्देश दे सकता है कि यदि उनके इलाके में पीएम से लेकर चाहे कितने ही बड़े मंत्री, नेता की रैली या रोड शो होता है, तो उसमें कोरोना नियमों का सख्ती से पालन हो।

अगर ऐसा नहीं होता है, तो आयोग उनके खिलाफ सख्त कारवाई करेगा। इसका असर यह होगा कि तब डीएम या कलेक्टर बगैर किसी भय के इन नियमों का पालन करवाने से हिचकेंगे नहीं और किसी भी चुनाव के दौरान ज़िले  के रिटर्निंग ऑफिसर ही चुनाव आयोग के आंख,कान व नाक होते हैं। वह कहते हैं कि यह भी हैरानी की बात है कि जब सभी राज्यों से कोरोना मरीजों के आंकड़े प्रतिदिन सार्वजनिक किए जा रहे हैं तब ऐसे में बंगाल के मरीजों की संख्या को आखिर किसलिए छुपाया जा रहा है?

हर परिस्थिति में जनता सरकार का साथ कंधे से कन्धा मिलाकर दे रही है, लेकिन इन सभी चीज़ों से सरकार और प्रशासन को कहां फर्क पड़ता है? पता नहीं ! इस विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जनता के हितों की सुरक्षा ज़रूरी है या सत्ता के लिए चुनाव?                                                                                                                                        

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