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क्या कोरोना काल में बस लॉकडाउन लगाना ही सरकार की एकमात्र ज़िम्मेदारी है?

जब हमें कोई बीमारी होती है, तो हमें कड़वी दवाइयां लेनी पड़ती हैं। जी हां! इस वक्त भारत भी एक कड़वी दवाई ले रहा है और उसका नाम है, “लॉक डाउन”। कोरोना से बचने के लिए भारत में एक बार फिर से लॉकडाउन की तैयारियां की जा रही है। भारत में कोरोना के आंकड़े जिस तरह से बढ़ रहे हैं, उन पर हमें पुनः विचार करने की आवश्यकता है।

पहला लॉकडाउन 21 दिनों के लिए लगा था। उससे पहले प्रधानमंत्री जी के अनुरोध पर एक जनता कर्फ्यू जो कि जनता के द्वारा ही लगाया गया था।

विभिन्न राज्यों में रिकॉर्ड केसेज़

20 मार्च 2021 तक देश में कोरोना से कुल संक्रमितों की संख्या (टाइम्स नाउ के अनुसार) बढ़कर 1,15,55,284 हो गई थी, वहीं 1,59,558 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। वर्ष 2020 खत्म होते-होते हम इस बीमारी से निकलने की स्थिति में थे लेकिन अब एक बार फिर कोरोना ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया है।

मार्च अंत तक तो स्थिति नियंत्रित थी लेकिन अप्रैल माह के आते-आते टाइम्स नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के महाराष्ट्र में 68,500 से ज़्यादा केस देखने को मिले। वहीं उत्तरप्रदेश में 30,596, दिल्ली में 25,462 से ज़्यादा केस पाए गए। गुजरात में पिछले 24 घंटो में 10,340 से ज़्यादा लोग संक्रमित पाए गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार पता चला भारत के कुल संक्रमितों का 70 फीसदी आंकड़ा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल व उत्तरप्रदेश से मिल रहा है। उन राज्यों की राज्य सरकारें पूर्ण कालिक लॉकडाउन लगाने की तैयारी में हैं। मध्यप्रदेश में भी कोरोना के 12,248 मरीज मिले हैं।
37, 538 सैंपल की जांच में इतने मरीज सामने आए हैं। इस तरह संक्रमण दर 13 फीसद रही।

स्वास्थ्य संचालनालय द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को पूरे प्रदेश में 42 हज़ार 462 सैंपल लिए गए। इनमें 37,538 की जांच की गई, जिसमें 4986 मरीज मिले हैं। पिछले एक महीने में प्रदेश में कोरोना मरीजों की संख्या 10 गुना बढ़ चुकी है। देश में हर दिन मिलने वाले कोरोना मरीजों की संख्या के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति कई दिनों से देश में सातवें या आठवें नंबर पर है।

लॉकडाउन के बाद बेरोज़गारी दर तेजी से बढ़ी

अगर हम लॉक डाउन 2020 की बात करें, तो ज़ाहिर सी बात है लोग घर रहेंगे तो काम धंधा नहीं कर पाएंगे। इसलिए बेरोजगारी दर बढ़ना ही था। आपको 2020 की बेरोज़गारी के कुछ आंकड़े बताते हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2020 में भारत में बेरोज़गारी दर काफी बढ़ी है। आंकड़ों के मुताबिक अगस्त में बेरोज़गारी दर 8.35 फीसदी दर्ज की गई, जबकि पिछले महीने जुलाई में इससे कम 7.43 फीसदी थी।

सीएमआईई की रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त में शहरी इलाके में बेरोज़गारी दर 9.83 फीसदी दर्ज की गई है, जबकि ग्रामीण इलाकों में बेरोज़गारी दर का आंकड़ा 7.65 फीसदी पर रहा है। जुलाई 2020 में शहरी इलाके में बेरोज़गारी दर 9.15 फीसदी थी और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 6.6 फीसदी।

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के असर से झटके खाती भारतीय अर्थव्यवस्था का चालू वित्त वर्ष में उबरना मुश्किल दिख रहा है। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने एक रिपोर्ट में बताया कि पहली तिमाही की जीडीपी विकास दर में आई रिकॉर्ड गिरावट आगे भी जारी रह सकती है। इसके साथ ही साल 2020-21 में भारत के जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर शून्य से 10.9 फीसदी नीचे रहने की आशंका है।

सीएमआईई के मुताबिक, लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है। इनमें फेरीवाले, सड़क के किनारे दुकान लगाने वाले, निर्माण उद्योग में काम करने वाले श्रमिक और रिक्शा चलाकर पेट भरने वाले लोग शामिल हैं। अब अगर लॉक डाउन पुनः लगता हैं तो शायद स्थिति बहुत भयावह होगी। फिर वही लाखो लोगों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ सकता है, जो अभी-अभी अपनी आर्थिक स्थिति को थोड़ा संभाल पाए थे।

बेरोज़गारी दर के भी बढ़ने की पूरी संभावनाएं हैं। वे छोटे दुकानदार या वे मज़दूर जो रोज़ी-रोटी कमाकर खाते हैं, उनके लिए भारी मुश्किलें हो सकती हैं।

कोरोना की दूसरी लहर और लॉकडाउन की तैयारी

अमेरिका की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में सबसे ज़्यादा युवा भारत में हैं। लगभग 30 फीसदी युवाओं का भविष्य भी इस लॉक डाउन की वजह से दांव पर लगा हुआ है। लगभग एक लंबे दौर के बाद हमें कोरोना जैसी महामारी से थोड़ी राहत मिली थी। भारत की प्रभावी वैक्सीन भी वितरित होने लगी थी। मगर एक बार फिर कोरोना अपने पैर पसार रहा है और राज्य सरकारें लॉकडाउन लगाने की तैयारी कर रही हैं।

हमे अब यह सोचना होगा कि क्या लॉकडाउन ही कोरोना से बचने का एकमात्र रास्ता है? पिछले वर्ष लाखों मज़दूरों के पलायन की जो भयावह तस्वीरें सामने आई थी, उसे देखकर तो लगता है कि लॉकडाउन आपातकाल के समान है। नौकरी करने वाले घर पर रह सकते हैं लेकिन यहां सवाल उस बड़े तबके का है जो रोज कमाता है रोज खाता है।

दिन भर की मज़दूरी से उसके शाम का खाना आता है। ऐसे लोग जो पहले ही बेरोज़गार हैं, जैसे-तैसे उनको कहीं से कुछ रोज़गार मिलता हैं, वह भी लॉकडाउन की वजह से ठप्प हो जाएगा। राजनीति में पक्ष-विपक्ष की राजनीति हमेशा अनैतिक ही रही हैं। ऐसे में सवाल ढेरों हैं लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं।

चुनाव हो सकते हैं, तो छोटे दुकानदार दुकान क्यों नहीं चला सकते?

सवाल तो यह भी है कि बंगाल और असम में कोरोना के आंकड़े क्यों छुपाए जा रहे हैं? सिर्फ इसलिए कि वहां चुनाव हैं? राजनैतिक पार्टियां अपनी सत्ता के लोभ में लाखों की भीड़ एकत्रित करती हैं। चुनावी रोड शो हो रहे हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर क्या एक मज़दूर मज़दूरी करके अपना पेट नहीं भर सकता?

क्या वे छोटे दुकानदार जो अपनी दिन भर की कमाई उस चाय या किराने की दुकान से करते हैं, वह दुकान नहीं खोल सकते? उन असंख्य परिवारों को ध्यान में रखते हुए कोई फैसले लेने चाहिए। कोरोना वैक्सीन की देश में सही आपूर्ति नहीं हो पा रही हैं और सरकार समझौते के नाम पर विदेशों में वैक्सीन वितरित कर रही है। ऐसे कई सवाल मौजूदा सरकार पर खड़े होते हैं लेकिन सरकार इससे भागती दिख रही है।

आम जनता के मुंह से अक्सर ये बात सुनी जा रही हैं कि अमीर ठीक होकर घर आ रहे हैं व गरीब की मौत हो जा रही है। मुझे नहीं पता कितनी सच्चाई है इस बात में लेकिन सवाल तो इस पर भी खड़ा होता है।

क्या लॉकडाउन ही एकमात्र उपाय है?

कोरोना, आज के दौर की गंभीर समस्या है। इसके आगे सभी बड़ी से बड़ी बीमारियां नीचे मुंह करके बैठी हुई हैं। इस दौरान हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि सामाजिक दूरी बनाए रखे व सभी नियमो का पालन करें। आम जनता के रक्षक ‘पुलिस- प्रशासन’ ने इस कोरोना काल में जनता की जो सेवा की वह बेशक प्रशंसनीय हैं लेकिन कहीं-कहीं पुलिस की जो अमानवीयता दिखी वह घोर निंदनीय है।

एक बार फिर भारत लॉकडाउन जैसे बेहद खौफनाक दौर से गुजरने वाला है। फिर वही हाल की आशंका है। मज़दूरों, गरीबों एवं युवाओं के लिए रोज़गार संकट की आशंका है। मज़दूरों का भोजन के लिए तरसना सच में रूह कंपा देता है। मज़दूरों का वह हज़ारों किलोमीटर इस तपती धूप में पैदल सफर करना लॉकडाउन के बारे में सोचने पर विवश कर देता है।

अब अगर लॉकडाउन दोबारा लगता है तो फिर से बड़े- बड़े शहरों में जो कारखाने चल रहे हैं, वह दौबारा बंद होगी तथा वहां काम कर रहे मजदूरों को पलायन और भूख जैसी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं। छात्रों की नियमित कक्षाएं जो अभी कुछ समय पहले ही चालू हुई थी वह भी कोरोना के प्रकोप को देखते हुए सरकार ने बंद कर दिया है।

जिससे छात्रों को अपने नियमित अध्ययन में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। अब ऐसे में सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि उन मज़दूरों व गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था करें। अब सवाल यह उठता है कि क्या लॉकडाउन ही वो एकमात्र उपाय है जिससे हम कोरोना से बच सकते हैं? अगर हां तो 2020 के लॉकडाउन से क्यों कुछ असर नहीं हुआ इस बीमारी पर?

क्यों वैक्सीन लगवाने के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं? इन तमाम सवालों के बीच आम जनता की भी ये जिम्मेदारी बनती है कि मास्क लगाए रखें और सरकार के द्वारा जारी की गई गाइडलाइन को फॉलो करें। ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी सुरक्षित रहें व स्वस्थ्य रहें।

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