कोरोना का ग्राफ घटने की बजाय बढ़ते ही जा रहा है। हकीकत यह है कि कोरोना का ग्राफ कभी घटा ही नहीं था, बल्कि लोगों ने ही उसे हल्के में ले लिया था। कोरोना हमारे देश में चुनाव के समय भी था, कोरोना किसान आंदोलन के समय भी था, लेकिन लोगों का विवेक खत्म हो गया था कि लोग आते हुए खतरनाक संकट को देख ही नहीं सके। ऐसा लग रहा है कि सरकार को दोष देने की जगह पर लोग अगर स्वयं के गिरेबान में झांककर देखेंगे, तब उन्हें समझ आएगा कि आस्था, मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में लोगों ने क्या खोया है?
सरकार आम जनमानस से कहेगी अपनी चुनावी रैलियों में आने के लिए और लोग हंसते-गाते हुए चले जाते हैं, मगर क्यों? लोग अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे कि कोरोना भीड़ से फैलता है, हमें नहीं जाना चाहिए मगर लोग गए। असल बात यह है थी कि लोगों के मन में कोरोना का डर उसकी वैक्सीन की खबर के झुंझुने से खत्म हो गया था।
लोगों ने सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना ही बंद कर दिया, लोगों ने एक-दूसरे से सोशल डिस्टेंसिंग की दूरी बनाना ही बंद कर दिया और इन सबका रिजल्ट आज कोरोना की दूसरी लहर की पूरे देश में फैली भयावहता है, जो अपनों को लीलकर नाच रहा है।
चिताएं जलती जा रही हैं, लकड़ियां धधक रही हैं, आंखों में आंसू हैं। आपको आम जनमानस के दर्द का अंदाज़ा लगाना है ना, तो एक बार किसी रोते हुए व्यक्ति को देख लीजिये या श्मशान जाकर देख लीजिए तब आपको अंदाज़ा होगा कि कोरोना की देश में भयावहता की स्थिति क्या है?
पैसे से क्या खरीद सकेंगे?
कोरोना के आंकड़ों के फेर में पड़ने से अच्छा है आप ज़मीनी स्तर की हकीकत से रुबरु होना, क्योंकि लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भाग रहे हैं। जिनके पास पैसे हैं, वह भी आज ऑक्सीजन की दो बूंद सांसों के लिए तरस रहे हैं। पैसे से आप लोग खरीद लेंगे, लेकिन प्यार नहीं खरीद सकेंगे। पैसे से आप दवाईयां खरीद लेंगे मगर दवा मिलनी भी तो चाहिए। दुकानों से दवाएं गायब हैं, क्योंकि उनकी कालाबाज़ारी शुरु हो गई है। लोगों को लग रहा है कि उन्हें कोरोना नहीं होगा। यह लोगों की गलतफहमी है, जिससे जितनी जल्दी बाहर आएंगे अच्छा होगा।
सांस छूटने के बाद जिन्हें आप अपनों की उपाधि देते हैं, वहीं आपकी डेड बॉडी से दूर भागेंगे क्योंकि उन्हें अपनी जान की भी परवाह है। असल बात अब भी वही है कि लोग नहीं सुधरेंगे, क्योंकि लोगों को लगता है कि उनका जन्म अमर है और उन्हें कुछ नहीं होगा।
सरकार को दोष दीजिए, लेकिन अपने विवेक का भी इस्तेमाल कीजिए
सरकार को दोष देना आपका काम है, मगर दोष देते समय आप क्यों भूल जाते हैं कि राजनीति में कोई अपना नहीं होता, बल्कि राजनीति अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने की जगह है। भारत लोकतांत्रिक देश है, इसलिए अपना नेता चुनने की आज़ादी है, जब हम भारतवासियों को इतना बड़ा अधिकार मिला है, तब हमारा विवेक कहां चला जाता है? वोट देना अधिकार है, जिसे देना है दीजिए मगर अपनी जान की परवाह कीजिए।
आज सबको पता है कि कोरोना महामारी से बचने के लिए हमें मास्क लगाना है, एक-दूसरे से सोशल डिस्टेंसिंग करते हुए दूरी बनानी है, लेकिन पुलिस के रोकने पर लोग कहते हैं, “मैं किस करुंगी, तुम क्या कर लोगे?” लोग ही नहीं समझ रहे, ऐसे में कोरोना हमारे देश में बढ़ेगा या घटेगा ! जहां लोगों को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए था, वहां लोग स्वार्थी हो रहे हैं।
किसी को दोष देने से पहले आप अपने विवेक से काम लीजिए कि जब महाराष्ट्र में कोरोना के कारण वहां के हालात खराब थे, तब लोगों को ही उस समय वहां के चुनावों का बहिष्कार कर देना चाहिए था। जनता को जब प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है, तब बहिष्कार करने का भी संपूर्ण अधिकार है। लोग ही कोरोना की भयानक लहर को रोक सकते हैं।