Site icon Youth Ki Awaaz

“आइए जानते हैं फेक न्यूज़ से बचने और उन्हें पहचान करने के तरीके”

"आइए जानते हैं फेक न्यूज़ से बचने और उन्हें पहचान करने के तरीके"

जहां भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, वहीं भारत को आज़ाद हुए 74 साल हो गए हैं। अंग्रेज़ो के शासन से पहले भारत में कई युद्ध हुए, लेकिन वह सब राजतन्त्र तक ही सीमित था। जब भारत ब्रिटिश शासन का गुलाम था, उसी दौरान अंग्रेजों ने भारत में फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई।

ब्रिटिश सरकार ने अपने उद्देश्य को साकार करने के लिए उन्होंने आपस में हिन्दू-मुस्लिम को लड़वा दिया, जो देश के लिए काफी घातक सिद्ध हुआ। पूरे भारत देश में इस तरह के अपवादों को फैलाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई मुद्रण प्रणाली ने। देश में झूठी खबरें और अफवाहों ने कई दंगे ऐसे करवाए जिनका वास्तविकता से कुछ लेना-देना ही नहीं था। अब अगर हम बात करें फिलहाल के दिनों की तो हम देख सकते हैं किस तरह फेक न्यूज़ और झूठी खबरों के माध्यम से देश में आग फैलाई जा रही है।

वातावरण ज़हरीला करने में अहम रोल किसका?

सोशल मीडिया पर एक समुदाय दूसरे समुदाय के लोगों के लिए असभ्य शब्दों  के साथ अपने मन की भड़ास निकालते रहते हैं। वह सोशल मीडिया पर विवादित सामग्री पोस्ट कर उसे अन्य लोगों के लिए साझा करते हैं जिसका परिणाम दंगा और कुछ बेकसूर लोगों की हत्या के रूप में हमारे सामने आता है। इन विवादित सामग्रियों को ही फेक न्यूज़ कहा जाता है।

इस दौर में हम देखते हैं कि किस प्रकार सोशल मीडिया पर लोगों के बीच नफरत फैलाई जा रही है। जो स्वयं में अनारक्षित, त्रुटि से भरे और जानबूझकर भ्रामक रिपोर्टिंग के कई रूपों को समाहित करती है। समाज में फैली अराजकता की इस आग को न्यूज़ एजेंसियां अपने फायदों के लिए हवा दे रही हैं जिससे लोगों की नज़रों में फेक न्यूज़, सेफ न्यूज़ बन जाती हैं। जिन पर लोग भरोसा करने लग जाते हैं।

बहरहाल, कई बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हमेशा से इन बातों पर अपनी बेबाक राय रखते आ रहे हैं। यही नहीं समाज के कई हिस्से भी ऐसी फेक न्यूज़ के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद भी कर रहे हैं। समाज के जागरूक नागरिकों को ऐसे तथ्यों की ओर ध्यान देना होगा और पहचानना होगा कि कौन सी न्यूज़ फेक है? और कौन असली? मैं यहां पर अपने रिसर्च के मुताबिक कुछ ऐसे ही तरीके बताने की कोशिश करूंगा जो आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं। क्योंकि? कौन? क्या? कब? कहां? कैसे? जैसे शब्दों से ही सवाल बनते हैं और इनसे ही हमें हमारे प्रश्नों के जवाब मिलते हैं।

लिखने वाला कौन है?

यह किसने लिखा? लेखक के नाम की जांच करें। क्या नाम उपलब्ध है या गायब है? ज़्यादातर लेखक जो एक अच्छी तरह से शोध किए गए लेख में समय लगाते हैं, उनका नाम संभवतः उनके लेख से जुड़ा होता है। उनकी योग्यता क्या है? यदि लेखक का नाम सूचीबद्ध है, तो पता करें कि वह व्यक्ति कौन है और उसकी साख क्या है? लेखक के नाम पर एक खोज करें, उनके व्यवसाय और उनके द्वारा लिखे गए अन्य लेखों को खोजें।

“हमारे बारे में” अनुभाग ज़रूर देखें। वेबसाइट के ऊपरी या निचले भाग में “हमारे बारे में” नामक एक अनुभाग होना चाहिए। यह खंड वेबसाइट के उद्देश्य को रेखांकित करता है। क्या संगठन के पास पत्रकारों या लेखकों की एक आधिकारिक टीम है?  या वह आम जनता के सदस्यों को योगदान के लिए आमंत्रित करते हैं?  वेबसाइट के होस्ट के बारे में पढ़ना आपको यह निर्धारित करने में मदद करेगा कि क्या यह एक भरोसेमंद स्रोत है या नहीं?

सोशल मीडिया से मिलने वाली हर खबर भी एक लिंक के साथ होती है, अगर कोई खबर बिना किसी लिंक के है तो उसकी विश्वसनीयता पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

क्या लिखा गया है?

क्या लेख आपको विषय के सभी पक्षों से अवगत कराता है? कोई भी समाचार लेख आपको विभिन्न दृष्टिकोणों से तथ्यों को प्रदान करना चाहिए। यदि लेख तर्क के केवल एक पक्ष को प्रदर्शित करता है, तो पाठकों को ध्यान रखना चाहिए कि वह पूरी कहानी नहीं देख रहे हैं और लेख पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है। जैसे- आजकल हिन्दू-मुस्लिम।

टिप्स: कहानी में दावों का समर्थन करने वाले लेख में उद्धृत सूत्रों की जांच करें। ऑनलाइन स्रोतों के लिए उन्हें इंटरनेट पर खोजें।

क्या सामग्री लेख के शीर्षक से मेल खाती है?

एक शीर्षक से आपको यह पता चल सकता है कि पूरा लेख किस बारे में है, लेकिन इसका उपयोग आपको लेख पढ़ने से पहले किसी बात पर विश्वास करने के लिए भी किया जा सकता है। लेखक इसका उपयोग अपने लाभ के लिए कर सकते हैं और लोगों को पूरा लेख पढ़ने के लिए या लेख को पढ़े बिना दावे पर विश्वास करने के लिए अपनी सुर्खियों में फंसा सकते हैं।

टिप्स: शीर्षक के अलावा, पाठ में किसी भी वर्तनी या व्याकरण संबंधी त्रुटियों की अच्छे से जांच करें। अच्छी तरह से शोध किए गए लेख आमतौर पर पोस्ट करने से पहले पढ़े लेख या खबरें दो बार पढ़ी जाती हैं।

खबर कब लिखी गई?

यह लेख कब प्रकाशित हुआ था? पुराने लेखों में अप-टू-डेट तथ्य शामिल नहीं हो सकते हैं और लिंक टूट सकते हैं। एक पुराने लेख को साझा करने वाले व्यक्तियों को पता चल सकता है कि लेख में कुछ जानकारी अप्रतिष्ठित या फेक है। क्या लेख को दोबारा अपडेट किया गया? अपडेट की गई सामग्री लेख के आरंभ या अंत में एक अस्वीकरण होती है। यदि कोई खबर वर्तमान घटना से संबंधित है, तो समाचार संगठन किसी लेख का पुनर्निमाण कर सकते हैं। इसमें तारीखों का भी विशेष योगदान रहता है।

कहां से ली गई है खबर?

क्या यह वेब पता (URL) सही है?  गलत वेब पते पर टाइप करने से आप एक ऐसे वेबपेज पर पहुंच जाएंगे, जहां आप जाने का इरादा नहीं कर रहे थे। यह आपको कंप्यूटर वायरस वाले पृष्ठों पर ले जा सकता है। आधिकारिक या वास्तविक दिखने के लिए बनाई गई नकली वेबसाइट URL से सावधान रहें। एक आकर्षक दिखने वाली वेबसाइट में नकली समाचार हो सकते हैं। फोन नंबर के समान, एक छोटी सी गलती आपको पूरी तरह से अलग वेबसाइट पर ले जा सकती है।

उनके डोमेन यानी .com, .in आदि सहित कुछ अपवाद URL के साथ, किसी को भी खरीदा जा सकता है। कई डोमेन में पंजीकरण की कोई आवश्यकता नहीं होती है। कुछ व्यक्ति किसी संगठन की आधिकारिक साइट की नकल करने के लिए डोमेन नाम का उपयोग करके उपयोगकर्ताओं को बरगलाते हैं।

टिप्स: यदि आप URL नहीं जानते हैं, तो सर्च इंजन का उपयोग करें और उन परिणामों के लिए की गई खोज की समीक्षा करें जिन्हें आप खोज रहे हैं।

क्या मुझे यह सोशल मीडिया पर मिला?

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स समाचार संगठन नहीं हैं। ये लोगों के वहां सामग्री बनाने या साझा करने के प्लेटफॉर्म हैं। फर्ज़ी खबरों की निगरानी वस्तुतः सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और ब्लॉग पर नहीं होती है। सबसे ज़्यादा फेक न्यूज़ का संचालन सोशल मीडिया के द्वारा ही होता है। यहां पर कोई भी वीडियो और पिक्चर का इस्तेमाल अराजकता फैलाने के लिए किया जा सकता है। तस्वीरों के साथ हेरफेर किया जाना आज के दौर में आम बात हो गई है।

नोट: फोटो/वीडियो को एडिट करने के लिए कुछ सॉफ्टवेयर जहां फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को जीवन के समान वातावरण बनाने की अनुमति देते हैं। वहीं यह सॉफ्टवेयर किसी को भी अपनी कहानी को फिट करने के लिए एक छवि/वीडियो में हेरफेर करने के लिए समान उपकरण प्रदान करता है। गूगल रिवर्स इमेज सर्च इंजन का उपयोग यह देखने के लिए करें कि कोई भी तस्वीर कहां से ली गई है और वह किन-किन साइट्स पर अपलोड है।

क्या मुझे यह ब्लॉग वेबसाइट पर मिला?

ब्लॉग में अनौपचारिक रूप से लिखी गई सामग्री होती है और एक व्यक्ति या छोटे समूह द्वारा संचालित की जाती है। कोई भी व्यक्ति ब्लॉग के लिए पंजीकरण कर सकता है या वेबसाइट बना सकता है। कई बार ऐसा होता है कि  खबरों को देखने के लिए हम ब्लॉग पर क्लिक करते हैं और दूसरा पेज खुल जाता है। ऐसा अक्सर आज कल लोग पैसा कमाने के लिए कर रहे हैं। जितनी बार आप पेज खोलेंगे उतनी ही ज़्यादा उनकी आमदनी होती है। जिस ब्लॉग पर आपको 2 से अधिक प्रचार दिखें तो ऐसे ब्लॉग्स से और साइट्स से सावधान रहें।

टिप्स: किसी अन्य वेबसाइट का उपयोग करके आपके द्वारा पाई गई जानकारी को सत्यापित करें। जानकारी के मूल स्रोत का पता लगाएं। इस बात से अवगत रहें कि व्यक्ति एक ही वेबसाइट पर अपनी नकली खबरें पोस्ट कर सकते हैं।

क्या मुझे यह समाचार मीडिया में मिला?

समाचार पत्र और नेटवर्क/केबल समाचार पत्रकारों को समाचारों पर तथ्य इकट्ठा करने और उन्हें रिपोर्ट करने के लिए नियुक्त करते हैं। ये समाचार संगठन सख्त नीतियों और मानकों का पालन करते हैं। उनमें ब्रेकिंग न्यूज़ पर रिपोर्ट करने के लिए एक ऑनलाइन उपस्थिति भी शामिल है। समाचार मीडिया में वर्तमान विषयों पर विभिन्न दृष्टिकोणों की पेशकश करने वाले व्यक्तियों के साथ चर्चाएं भी हो सकती हैं।

यह समाचार क्यों?

क्या लेख आपको कुछ बेचने की कोशिश कर रहा है? कुछ ऑनलाइन लेख आपको एक उत्पाद खरीदने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। कभी-कभी, एक समाचार लेख की तरह जो दिखता है वह वास्तव में एक विज्ञापन होता है।  कभी-कभी वह “प्रायोजित सामग्री” या “विज्ञापन” के बगल में, समाचार लेखों के साथ-साथ मौज़ूद होते हैं। क्या आप मुझे उन में अंतर बता सकते हैं?

व्यंग्य और नकली समाचार एक ही बात नहीं हैं। व्यंग्य विशेष रूप से वर्तमान मामलों में, पाखंड को उजागर करने के लिए अतिशयोक्ति या विडंबना जैसी रणनीतियों का उपयोग करता है। जो आमतौर पर मज़ेदार है।

एक लेखक के लिए अपने दर्शकों को एक चीज़ या किसी अन्य पर विश्वास करने के लिए मनाने की कोशिश करना बिल्कुल भी असामान्य नहीं है। क्या आप बता सकते हैं कि कोई चीज़ कब प्रेरक होती है? अपने आप से पूछें, लेखक का दृष्टिकोण क्या है? क्या यह उद्देश्य है? क्या यह पक्षपातपूर्ण है? फिर अपने आप से पूछें कि लेखक के पास वह दृष्टिकोण क्यों है? वह आपको एक या दूसरे तरीके से सोचने के लिए क्यों कह रहा है? आप जब भी कोई खबर देखें या सुनें तो उसके पीछे जाने की कोशिश करें कि इस खबर से फायदा किसको हो रहा है?

मैं चाहता हूं मेरा यह संदेश देश में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के पास पहुंचे और लोग फेक न्यूज़ और झूठी खबरों के प्रति जागरूक हो सकें। जिस तरह से आज देश की बागडोर डगमगा रही है उसमें मीडिया और फेक न्यूज़ का बहुत बड़ा रोल है। ज़्यादातर न्यूज़ एजेंसी आजकल पैसों के लिए यह काम कर रही हैं और वे सिर्फ देश में  आम जनमानस के लिए नफरत, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या परोसती हैं।  

Exit mobile version