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देश में मध्यम एवं निम्न वर्ग के साथ हो रहा है धोखा

देश में मध्यम एवं निम्न वर्ग के साथ हो रहा है धोखा

आज एक भविष्यवाणी के तौर पर लिख लेना, जो हो भी रहा है यह देश के मध्यम वर्ग के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। चाहे दवाइयां महंगी हो, इंजेक्शन महंगे हो, ऑक्सीजन महंगे हो या हॉस्पिटल महंगे हो वो उच्च वर्ग सरकारी व प्राइवेट जुगाड़ लगा कर उसकी आपूर्ति आसानी से कर लेगा और कर भी रहा है पर मध्यम वर्ग के लिए मुश्किलें अपार हैं।

आज जो हॉस्पिटल के बाहर बेड के लिए, ऑक्सीजन की लाइनों में, इंजेक्शन की लाइनों में जो व्यक्ति लगा है, वो मध्यम वर्ग है, क्योंकि मध्यम वर्ग मेरे नज़रिये से वो है जो दिल्ली की छोटी-छोटी तंग गलियों में कुछ सस्ते फ्लैटों में या कुछ अपने निजी मजबूत मकानों में रह रहा है। यह भी कई वर्गों में बंटा हुआ है, जो एक चार पहिए गाड़ी के साथ अपने परिवार के साथ 30 से 40 हज़ार की तनख्वाह में जी रहा है। एक वो जो 15 से 25 हज़ार की तनख्वाह में बाइक और इसमें से 30 प्रतिशत अपने निजी मकान के साथ जी रहा है। आखिर में वो है जो 10 हज़ार महीने की तनख्वाह में छोटी गलियों में सुबह शाम की रोटियों के साथ किराए के मकान में जी रहा है। यह सभी मध्यम वर्ग का हिस्सा हैं।

आज के हालातों के अनुसार यह सभी मध्यम वर्ग में बंटे लोग सड़कों पर हैं और ऑक्सीजन, बेड, इंजेक्शन की मदद मांग रहे हैं, लेकिन ना इनके लिए बेड है ना इंजेक्शन है और ना अस्पतालों में कहीं जगह।

दिल्ली व केंद्र सरकार के खोखले वादे सुनिए कि ऑक्सीजन आ रही है, बेड नए लगवाए जा रहे है, सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं, लेकिन इनके मूर्खतापूर्ण रवैया को यह नहीं पता यह सुविधाएं जिनको प्राप्त हो रही हैं, वो एक वर्ग है जिसे समाज में हमेशा से उच्च वर्ग की श्रेणी में गिना जाता रहा है। यह वो हैं, जो करोड़पति की गिनती में आते हैं।   समाज में जान बचाना सबकी महत्वपूर्ण है, पर सबके लिए समान सुविधाओं का होना भी बहुत ज़रूरी है।

मेरा सीधा-सीधा कहना यह है कि हॉस्पिटलों के बाहर लाइनों में खड़ा मध्यम वर्ग इस देश की रीढ़ की हड्डी है।  उनके लिए व्यवस्थाएं व सुविधाएं भी बहुत ज़रूरी हैं। सरकार टीवी पर और अपने वादों में सीधा दिखा रही है कि सबके लिए बेड़ों की तैयारी हो रही है सबके लिए नई-नई सुविधाएं आ रही हैं, परंतु मिल किसको रही हैं? यह गंभीरता से सोचने की बात है।

आप सोच रहे होंगे कि मैं क्यों निम्न वर्ग की बात नहीं कर रहा? जो रोटी खाने तक ही सीमित है,  ना उसकी ज़िन्दगी में अच्छे से सुख है और ना ही वह अपना दुख किसी को बयां कर सकता है। क्योंकि, यह वर्ग हॉस्पिटल के गेटों पर भी पहुंचने में असमर्थ है। यह रेहड़ी-पटरियों वाला लेबर क्लास है।

यह इस देश की असल सच्चाई है कि तीनों वर्गों की स्थितियों को समझे बिना देश में एक तरफ आम जनमानस की जानों को गवाना ही पड़ेगा।

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