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लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह की वीरता और वर्तमान में लोगों की मानसिकता

लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह की वीरता और वर्तमान में लोगों की मानसिकता

यह घटना 2001 की है, लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह अपनी ड्यूटी के खत्म होने के बाद आराम करने को लौट रहे थे, उस समय वो जम्मू-तवी के क्षेत्र में तैनात थे। गौरतलब है की जम्मू-तवी कश्मीर के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। तब ही अपने रूम की तरफ लौट रहे त्रिवेणी सिंह को खबर मिलती है कि रेलवे स्टेशन पर 4 -5 आतंकवादी घुस आए हैं।

इन्होंने यह खबर पाते ही तुरंत अपनी टीम को अलर्ट पर किया और अपने कमांडिंग अफसर को रेडियो पर इसकी खबर दी। इनके कमांडिंग अफसर ने कहा, लेकिन तुम्हारी तो ड्यूटी खत्म हो चुकी है। इस पर इनका जवाब था कि मैं अपनी टीम के साथ तैयार हूं। उस दिन रेल्वे स्टेशन पर आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में त्रिवेणी सिंह ने दोनों आतंकवादियों को मार कर हज़ारों यात्रियों की जान बचाई, लेकिन स्वयं उस मुठभेड़ में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।

उनकी इस वीरता और अपनी जान की परवाह ना करते हुए हज़ारों निर्दोष यात्रियों की जान बचने के लिए भारतीय सेना एवं सरकार द्वारा इन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। परन्तु, आज यह बड़ी विषम विडम्बना है कि लोग उसी सेना के वीर जवानों की इज्ज़त नहीं करते हैं। वैसे, लोग उनके देशहित एवं लोकहित में शहीद होने पर मोमबत्तियां जलाते हैं, पर यदि जब बात शहीद के परिवार को सपोर्ट करने की आती है तो कोई आगे नहीं आता है।

अभी कोरोना काल से पहले की बात है, मैं अपने परिवार के साथ पटना से अपने गाँव जा रहा था। एक जगह बीच स्थान पर परिवहन चेकिंग था। तब ही मैंने देखा कि चैकिंग पॉइंट पर एक फौजी(भारतीय सेना का जवान) जो गलती से अपना ड्राइविंग लाइसेंस अपने घर छोड़ आया था, उसे वहां के कर्मचारियों और पुलिस ने ड्राइविंग लाइसेंस ना होने के कारण चैकिंग पॉइंट पर रोककर रखा हुआ था।

यह विडंबना ह्रदय को काफी परेशान करती है और यह एक मात्र ऐसी घटना नहीं है। ऐसी अनेको घटनाएं आपको मिल जाएंगी। 

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