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“देश की जनता को मरने के लिए छोड़, सरकार ने बीते वर्ष ऑक्सीजन का दोगुना निर्यात किया”

देश के कोने-कोने से लोगों की चीख-पुकारें सुनाई दे रही हैं। कोई भूख से बेहाल है, तो कोई अपने घर जाने के लिए तरस रहा है, किसी को ऑक्सीजन नहीं मिल रहा तो किसी को बेड। कोई मदद तो करना चाहता है लेकिन उसके हाथों में कुछ भी नहीं। कोई किसी अपने के मरने के कारण शोक में है। यह दर्द कोई आम दर्द नहीं है, बल्कि उन्हें डर और चिंता इस बात की है कि इस संकट का हम में से कोई और भी शिकार न हो जाए।

बस गाइडलाइंस थोपने भर की ज़िम्मेदारी निभा रही सरकार

लोगों की चीखों को अनसुना करती सरकार केवल अपने गाइडलाइंस को थोपने में लगी है। इस महामारी की दूसरी लहर का पता सरकारों को पहले से था लेकिन उसके लिए केंद्र और किसी भी राज्य की सरकार ने तैयारी नहीं की। मगर पार्टियां चुनाव जीतने के लिए पूरी तैयारी में जुटी रहती हैं। इनका हाल परीक्षा में बैठे उन विद्यार्थी जैसी है, जिसने साल भर कोई पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा केंद्र में सर पर हाथ रखे बैठा हो।

2020 में कोरोना महामारी की पहली लहर के बाद जब धीरे-धीरे कार्यालय, बाज़ार और बाकि अन्य स्थानों को खोला जा रहा था, तब विशषज्ञों ने कहा था कि अमेरिका की तरह भारत में भी कोरोना की दूसरी लहर आएगी जिसको ध्यान में रखते हुए हमें सावधान रहना चाहिए। चुनाव आते ही हमारे नेतागण इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए चुनावी रैलियों में कोरोना दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाते दिखे।

सत्ता में बैठे हुक्मरानों को देश से ज़्यादा अपनी कुर्सी प्यारी है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों ने महामारी से लड़ने की बजाय सत्ता की कुर्सी के लिए चुनावी लड़ाई छेड़ दी है। अपने नेता को देख आम जनता भी लापरवाही करती रही और इसका ध्यान प्रशासन ने नहीं दिया और देते भी कैसे जब वह खुद लापरवाह है।

क्यों बनी हेल्थ इमरजेंसी जैसी सिचुएशन?

आज मीडिया में खबर आई है कि सरकार ने साल 2021 में 9 हज़ार मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया है, जो पिछले साल के मुकाबले दुगना है। यह ज़ाहिर है कि भारत सरकार देश की हालात सुधारने की बजाये मुनाफे की लूट में शामिल है। जिसका फायदा केवल चंद पूंजीपतियों को हो रहा है। आज हालात इतने खराब हैं कि लोग ऑक्सीजन के लिए दर-बदर भटकने को मजबूर हैं।

कोरोना से लड़ने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं लेकिन चुनाव के लिए तैयार थे, जिसका शिकार देश की गरीब जनता हो रही है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में अबतक कोई बदलाव नहीं आया है। एक अस्पताल तक नहीं बना पाए, ना ही डॉक्टरों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई। ऑक्सीजन, टीका और अन्य संसाधनों की कमी यह बताती है कि हमारा प्रशासन कितना मुस्तैद है? कोरोना की पहली लहर में ही स्वास्थ्य क्षेत्र के कपड़े फट चुके थे और अब वह नंगा हो चुका है। हमारा स्वास्थ्य क्षेत्र कोरोना के सामने घुटने के बल बैठ दोनों हाथ ऊपर किए हुए है।

चुनाव में किसी की भी जीत हो, फिलहाल यह देश हार रहा है

आज लोगों को फिर से लॉकडाउन का शिकार होना पड़ रहा है, जिसका कारण सरकार की लापरवाही है। लोगों से मास्क न पहनने पर जुर्माना लिया गया लेकिन नेता व अधिकारी खुद बिना मास्क के देखे पाए गए हैं। कोरोना के कारण आगे होने वाली भयंकर समस्याओं को लेकर किसी भी प्रकार की नीति नहीं बनाई गई।

बंगाल चुनाव में परिवर्तन और खेला होबे नारे लगाने में मस्त नेता जी आज कोरोना के सामने हारे हुए हैं। चुनाव के खेल में किसी की भी जीत हो लेकिन वास्तविकता में हार हम सभी की होगी। लॉकडाउन एक पीड़ा है, जो गरीब तबके को मौत के करीब ले जाता है और जिसका परिणाम हमने 2020 के लॉकडाउन में देखा है। तस्वीरें आज भी हमारे रोंगटे खड़े कर देती है। यह सब देख समझ नहीं आता समाज का गरीब तबका आज भी क्यों खामोश है?

चुनाव प्रचार के लिए कोरोड़ों की धन राशि है लेकिन गरीब जनता की परेशानियों को दूर करने के लिए इनके जेब खाली हैं। जब तक मीडिया में भूख से लोगों की मरने वाली तस्वीरें न आ जाएं, तब तक इनका एक भी कदम गरीब जनता के लिए नहीं होता।

देश के लगभग हर राज्य में लॉकडाउन लगा है या लगाने की तैयारी हो रही है। मगर उन लोगों का क्या होगा जो रोज़ कमाते हैं, रोज खाते है और जिनकी बचत न के बराबर है? ऐसे में जनता को आवश्यक चीज़ें और संसाधन मुहैया कराना सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए।

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