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राजस्व न्यायालय और न्यायिक संरक्षण के सिद्धांत

राजस्व न्यायालय और न्यायिक संरक्षण के सिद्धांत

यह मुद्दा पिछले कई वर्षों से चल रहा है, एक दिवस पूर्व मध्यप्रदेश शासन द्वारा इस संबंध में आदेश जारी कर सिविल न्यायालयों को न्यायिक संरक्षण की बात दोहराई गई है। हालांकि, यह नई बात नहीं है। यह पूर्व से ही कानून में दिया गया है, बस पुलिस अधिकारियों के द्वारा इसकी व्याख्या अपने तरीकों से की जाती थी।

क्या होता है न्यायिक संरक्षण?

इस विषय पर मैं अभी ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा इसके लिए आप गूगल कर सकते हैं या यूं समझ सकते हैं कि जैसे ज़िला या अन्य सभी न्यायालयों में न्यायाधीश को जो अधिकार या संरक्षण दिया जाता है ठीक वैसा ही राजस्व अधिकारी भी कुछ आंशिक रूप से चाहते हैं। यदि हम सरल भाषा मे कहें तो उनके द्वारा दिये गए निर्णयों  के विरुद्ध अपील तो हो सकती है पर कानूनी कार्यवाही जैसे FIR नहीं हो सकती है।

पहला प्रश्न तो यह है कि क्या राजस्व न्यायालय सच में न्यायालय हैं? हां, यह महज़ प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं हैं वरन उन्हें प्रशासनिक अधिकारों के साथ-साथ न्यायिक अधिकार भी होते हैं। यही इस कैडर का आकर्षण भी है, जो PCS की तैयारी और उसमे सबसे ऊपर इसकी प्राथमिकता को तय करता है।

सभी राजस्व अधिकारी संरक्षण तो न्यायिक चाहते हैं पर अधिकार प्रशासनिक, क्योंकि न्यायिक संहिता उन्हें या उनके रुतवे को शूट नहीं करती है। इसके अलावा कुछ हद तक इसकी जरूरत भी है क्योंकि जब न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील का प्रावधान है, जो सभी न्याय के सिद्धांतों के लिए अनिवार्य है तो फिर निर्णय के लिए किसी को व्यक्तिगत दोष देना ठीक नहीं है। इसके अलावा निर्णय कभी व्यक्तिगत नहीं होता, सभी निर्णय भू राजस्व संहिता के नियम और निम्न कर्मचारियों के प्रतिवेदन व अनुभवों को समेटे हुए रहते हैं।

सरकार द्वारा राजस्व न्यायालयों की अनदेखी की जाती है 

इसके अलावा जिस जगह सरकार को सबसे ज़्यादा काम करने की जरूरत है उस पर सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता है। राजस्व न्यायालयों में वर्क लोड इतना ज़्यादा है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। वो एक ऐसे अधिकारी ,कर्मचारी हैं जिनसे सरकार द्वारा कोई भी अन्य कार्य कराया जा सकता है।

उनका व्यक्तिगत जीवन इस से पूरी तरह से प्रभावित रहता है। इसके साथ ही उन्हें न्यायिक प्रशिक्षण ना के बराबर दिया जाता है जिससे कई बार उनके व्यक्तित्व या उनके निर्णयों में न्यायिक कमी दिखाई देती है।

सरकारी कार्यालयों में संसाधनों का अभाव बड़े पैमाने पर होता है। ऑफिस में कर्मचारी नहीं हैं, एक फाइल मंगाने तक का बजट तहसील कार्यालयों में नहीं होता है। संसाधन, प्रशिक्षण और पुलिस से तालमेल या संयुक्त प्रशिक्षण जो पुलिस में भी राजस्व की समझ विकसित करे, हमें इसकी बहुत जरूरत है।

सरकार उन्हें उनके हाल पर ना छोड़े बल्कि, एक व्यवस्थित, भरोसेमंद (सभी पक्षों से सहमत),पारदर्शी व्यवस्था बनाए व इस पर गौर करे। 

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