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“सबसे बड़ा कोविड आउटब्रेक और जनसभा में भीड़ देख लहालोट होते प्रधानमंत्री”

हिंदी साहित्य में सामाजिक राजनीतिक आलोचना के एक बड़े कवि हुए अदम गोंडवी साब। उन्होंने एक शेर लिखा था जो आगे चलकर बड़ा मशहूर हुआ। जब भी सरकारें कोई दावा करती है या जनता को आंकड़ों में कुछ घोटाला दिखता है, तो वह शेर स्वतः अपनी उपस्थिति दर्ज करा लेता है। शेर है कि,

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं और ये दावा किताबी है

कोरोना के नए लहर ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को एक बार फिर से सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा हर दिन नए रिकॉर्ड तोड़ रहा है, वहीं कोरोना से होने वाली मौतों ने कई शहरों में ‘श्मशान संकट’ खड़ा कर दिया है।

श्मशान में भी लंबी कतारें

कोरोना से मरने वाले मरीजों का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किया जाना है और इसके लिए हर शहर में कुछ श्मशान घाट चिन्हित किए गए हैं। मगर लखनऊ, भोपाल, रांची, रायपुर, जबलपुर समेत कई शहरों में अंतिम संस्कार के लिए भी कतार में घण्टों इंतजार करना पड़ रहा है।

महामारी की चपेट में आकर जान गंवा चुके सैंकडों लोगों के पार्थिव शरीर को भी सरकारी बदइंतज़ामी का शिकार होना पर रहा है। वहीं उनके परिजन संक्रमण के खतरे के बीच सड़कों पर भटकने को मजबूर हैं। श्मशानों के अलावा कब्रिस्तानों की भी यही स्थिति है। अधिक एक्टिव मरीजों वाले शहरों के श्मशानों में 8 से 10 घंटे तक की वेटिंग अब सामान्य हो चली है।

अकेले अहमदाबाद में बीते एक पखवाड़े में लगभग तीन हज़ार शवों का दाह संस्कार किया गया है। छत्तीसगढ़ में कोरोना के भयावहता का अंदाजा इससे लगाइए कि राजधानी रायपुर में अंतिम संस्कार के लिए तीन से चार दिन तक इंतज़ार करना पड़ रहा है।

मौत के सरकारी आंकड़ों में भारी झोल

भास्कर अखबार की खबर के मुताबिक सिर्फ रायपुर में ही सात दिनों के अंदर 338 मौतें हुई हैं। लखनऊ से कोविड संक्रमित मरीजों के शवों के अंतिम संस्कार की जो वीडियोज़ सोशल मीडिया पर हैं, वो बेहद भयावह और विचलित करने वाली हैं। हर रोज़ एक साथ सैंकड़ों शवों का दाह संस्कार किया जा रहा है।

लोग जलती शवों की संख्या न जान सकें इसलिए बैकुंठधाम श्मशान घाट के चारों ओर टीन की ऊंची दीवार खड़ी कर दी गई है। शवों की संख्या और विज़ुअल्स छुपाने में पूर्ण चुस्ती से लगा प्रशासन अगर इतनी ही तत्परता स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचागत बदलाव में दिखाता, तो न ये शव होते, न इन शवों को जलाने के लिए कतारें होती।

इन सबके बीच भोपाल के भगभदा विश्राम घाट की गुरुवार शाम की तस्वीर ने सरकारी आंकड़ों को भी सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शहर में उक्त दिन कोरोना से सिर्फ 4 मौतें हुई थी लेकिन उस दिन भगभदा घाट पर ही 72 कोविड मरीजों का दाह संस्कार हुआ था।

इसके अलावा सुभाष नगर विश्रामगृह पर भी 30 शवों को जलाया गया तथा वहीं पर झदा कब्रिस्तान में 10 शव दफनाए गए। बताते चलें कि ये श्मशान कोविड प्रोटोकॉल से अंतिम संस्कार के लिए चिन्हित किए गए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जिस शहर में आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 4 जानें कोविड की वजह से गई हैं, वहां 112 शवों का कोविड प्रोटोकॉल से अंतिम संस्कार क्यों और कैसे हुआ?
अब आप ये तय कीजिए कि विभागीय आंकड़े सच बोल रहे हैं या दहकती चिताएं!

अस्पतालों में बेड्स की भारी कमी

कोरोना वायरस के नए म्यूटेंट्स के कहर के बीच संक्रमण दर आसमान छू रहा है, वहीं अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में भी भारी इज़ाफा हुआ है।

कोविड मरीजों के लिए अस्पतालों में बेड हासिल कर पाना एक बड़ी चुनौती बन गई है। तमाम सरकारी दावों के इतर ज़मीनी हकीकत यह है कि मरीज बेड के अभाव में अस्पतालों के बाहर ही दम तोड़ रहे हैं। महाराष्ट्र में बेड्स की इतनी कमी है कि होटलों को कोविड फैसिलिटी में बदला जाने लगा है।

वहीं दिल्ली में सर गंगाराम समेत 14 अस्पतालों को डेडिकेटेड कोविड फैसिलिटी में बदलने का निर्णय लिया गया है। इस कारण से अन्य स्वास्थ्य सेवाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।

एम्स समेत कई बड़े अस्पतालों में रूटीन ओपीडी और ओटी सेवाएं फिलहाल बंद है। निजी अस्पताल या तो बेड की कमी बताकर कोविड मरीजों को दाखिल नहीं कर रहे या मुहमांगी कीमत वसूल रहे हैं।

1700 बेड वाला दिल्ली का जीटीबी अस्पताल पूरी तरह से भरा हुआ है। वहीं राजीव गांधी अस्पताल भी पूर्ण रूप से भरा है। ऐसे में दिल्ली सरकार होटलों और बैंकेट हॉल्स को कोविड फैसिलिटी में तब्दील कर रही है। बंगलौर में भी कमोबेश यही स्थिति है। बैंगलोर मिरर अखबार के एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर में ऑक्सिज़न फैसिलिटी वाले आईसीयू बेड हासिल करने में औसतन 12 घंटे तक का इंतज़ार करना पड़ रहा है।
वहीं लखनऊ की हालत और बदत्तर है। शहर के अस्पतालों में क्षमता से ज़्यादा कोविड मरीज हैं। उत्तरप्रदेश के कानून मंत्री का एक पत्र भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों को बेड की कमी के लिए फटकार लगाया है।

ऑक्सीजन और एंबुलेंस के लिए मची चीख-पुकार

अस्पतालों में बेड की बारी तो बाद में आती है, कोविड मरीजों का अस्पताल पहुंचना ही अपने आप में एक चुनौती बन गया है। कई शहरों में एम्बुलेंस की कमी है। मरीजों के परिजन बता रहे हैं कि 108 पर कई कॉल करने के बावजूद एम्बुलेंस नहीं पहुंचती। वहीं निजी एम्बुलेंस चालक मनमानी कीमत वसूल रहे हैं।

वहीं लगभग सभी शहरों से मेडिकल ग्रेड ऑक्सिज़न के कमी की खबर है। गुजरात सरकार ने आदेश दिया है कि राज्य में उत्पादित कुल ऑक्सिज़न का 70 प्रतिशत मेडिकल यूज़ के लिए भंडारित किया जाए इसके बावजूद भी अस्पताल ऑक्सिज़न की कमीं से जूझ रहे हैं।

खासकर जिला और तहसील स्तरीय अस्पतालों में ऑक्सिज़न की सुचारू सप्लाई नहीं हो पा रही है, जिससे कोविड समेत अन्य मरीजों की जान भी खतरे में है। पंजाब के अस्पताल भी ऑक्सिजन की कमी से जूझ रहे हैं। अमृतसर में आमतौर पर 20 हज़ार सिलिंडर की खपत होती है, जो अब बढ़ कर 50,000 हो गई है।

मुंबई के नालासोपारा के अलग-अलग निजी अस्पतालों में कथित रूप से 10 मरीजों की जान ऑक्सिजन की कमी के वजह से हो गई, जिसके बाद परिजनों ने जमकर बवाल काटा। ये दोनों अस्पताल महामारी के शुरुआती दौर से ही विशेष कोविड केंद्र हैं। मध्यप्रदेश के इंदौर समेत कई शहरों में भी ऑक्सिज़न की कमी और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव देखने को मिल रहा है।

बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था फिर एक बार वेंटिलेटर पर

बिहार में पहले से लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के हाथ-पांव भी फूलने लगे हैं। राजधानी पटना के बड़े अस्पतालों में प्रतिदिन क्षमता से अतिरिक्त मरीज आ रहे हैं। विशेष कोविड अस्पताल के रूप में चिन्हित नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल (एनएमसीएच) में स्थिति और बदत्तर होती जा रही है।

इस अस्पताल के डॉक्टर अजय कुमार सिन्हा ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या पिछली बार से बहुत अधिक है और अधिकतर मरीज जटिल परिस्थितियों में अस्पताल पहुंच रहे हैं। अधिकतर मरीजों को ऑक्सिज़न सपोर्ट की आवश्यकता है और ऐसे में अस्पताल की स्थिति ‘बहुत अच्छी’ नहीं है।

बेड और मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं के कमी से जूझ रहे बिहार के सामने एक चुनौती डॉक्टरों की कमी की भी है। कोविड के बढ़ते मामले और डॉक्टरों की कमी को देखते हुए बिहार सरकार ने सैन्य मेडिकल सेवाओं के आगे मदद की गुहार लगाई है। बिहार सरकार ने रक्षा सचिव को पत्र लिखकर 50 अतिरिक्त डॉक्टरों की मांग की है।

स्वास्थ्य सचिव प्रत्यय अमृत के मुताबिक इन डॉक्टरों को बिहटा स्थित 500 बेड के ईएसआई अस्पताल का जिम्मा दिया जाएगा। पटना के तीन बड़े अस्पताल जिनमें एम्स, आइजीआइएमएस और एनएमसीएच शामिल है, में कुल मिलाकर 400 आईसीयू बेड भी नहीं हैं।

ऐसे में राज्य सरकार ने पटना के 14 अन्य निजी अस्पतालों को कोविड मरीजों के इलाज का आदेश दिया है। बताते चलें कि एक दर्जन से अधिक निजी अस्पताल पहले ही कोविड मरीजों की भर्ती ले रहे हैं।

पटना में स्वास्थ्य सुविधाओं के हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जिस दिन स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे एनएमसीएच के दौरे पर पहुंचे, उसी दिन उस अस्पताल के बाहर एक पूर्व फौजी ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया।

सरकारें गंभीर होती तो आज ये स्थिति कभी न आती

कुल मिलाकर मौजूदा हालात को देखें तो ऐसा लग रहा है कि बीते कुछ महीनों की लापरवाही ने हमें ऐसी स्थिति में लाकर डाल दिया है, जहां से पीछे लौट पाने का कोई उपाय दिख नहीं रहा है। आंकड़े अब शक के घेरे में है। प्रयास अब बौने साबित होते हुए दिख रहे हैं और व्यवस्थाएं अब धराशाई होने की कगार पर है या लगभग हाथ खड़े कर दिए हैं। वायरस के इस नई लहर ने स्वास्थ्य सुविधाओं को घुटनों पर ला पटका है और पिछले 12 महीनों की तैयारियों को धत्ता बता दिया है।

एहतियात बरते की बजाय सरकारें हमेशा ये बताती रही कि कोविड को विश्व में सबसे अच्छा मैनेज उसी ने किया है। कई तरह के फर्जी दावे किए गए कि कभी टाइम ने तारीफ की, तो कभी हार्वर्ड ने। सरकार के इस झूठ ने लोगों के मन में ये डाल दिया कि कोरोना कुछ भी नहीं है और आज जनता उसी झूठ का परिणाम भोग रही है।

कुंभ और बंगाल चुनाव को देखें तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि ये भारत के ही किसी हिस्से में हो रहा होगा। जब प्रधानमंत्री जनसभा को संबोधित करते हुए भीड़ को देख लहालोट होते हैं, तो यकीन ही नहीं होता कि ये भारत के ही प्रधानमंत्री हैं। सरकारें तब भी गंभीर नहीं हैं, जब भारत कोरोना का सबसे बड़ा आउटब्रेक झेल रहा है। मतलब संदेश स्पष्ट है और वो ये कि आप सरकार के भरोसे न रहें।

ये नकारात्मकता नहीं, सच है और इस सच को बदलने का बस एक ही तरीका है। वो ये कि सरकारों की ओर से व्यवस्था सुधारने का युद्घ स्तर पर प्रयास, खुद भी थोड़े गंभीर होने और जनता की ओर से कोविड प्रोटोकॉल के समूचे पालन का संकल्प।

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