जब भी हिंदी सिनेमा की चर्चा होगी सागर सरहदी का ज़िक्र ज़रूर होगा। बात जब भी बाज़ार फिल्म की होती है तो कहानी सागर सरहदी पर जाकर रूक जाती है। सागर सरहदी यानी हिंदी सिल्वर स्क्रीन का एक अज़ीम फनकार। बीते सप्ताह एक लंबी बीमारी के कारण 88 साल की उम्र में इनकी मौत हो गई। सरहदी साब हिंदी सिनेमा के जाने-माने पटकथा लेखक, संवाद लेखक और निर्देशक थे। फिल्म इंडस्ट्री में उनकी गिनती बेहतरीन कहानीकारों में होती है।
बॉलीवुड की कई हिट फिल्मों के कहानीकार
सरहदी साहब की गिनती हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन कहानीकारों में होती है। इन्होंने कई हिट फिल्मों की कहानी लिखी। अंधेरी में एक कमरे का उनका दफ्तर था, जहां कोई भी मुंह उठाये आ सकता था। सिर्फ उसमें सागर साहब की गर्मजोशी से भरी गालियों को झेलने वाला नेचर होना चाहिए। मगर वो शानदार शख्शियत थे। हैसियत के हिसाब से फर्क नहीं करते थे, सबको समान रूप से गाली देते थे। चाय पिलाते थे। पुराने किस्से सुनाते थे। सपने साझा करते थे।
Deeply sorry at the passing away of #Sagar Sarhadi.He will be remembered by his work both in theatre n films notable amongst them #Tanhaii n #Bazaar.He drew his inspiration from life travelled by bus n train bcoz he was a writer of d masses.We at IPTA have lost a family member. pic.twitter.com/ifR0LY9cJt
— Azmi Shabana (@AzmiShabana) March 22, 2021
सागर सरहदी जिन्हें सिने-जगत में उनकी यादगार पटकथा और संवाद लेखन के लिए याद किया जाएगा। ज़िंदगी में अपने फन से कलाकारों की न जाने कितनी पीढ़ियों को संवारा। मगर अफसोस ज़िंदगी के ढलते सालों में दरकिनारी का सामना करना पड़ा। जिस रचनात्मकता ने बाज़ार जैसी फिल्म बनाई, उसे अपनी ही अन्य फिल्मों के लिए वितरक न मिलें, या जिनकी कहानियों को प्रकाशित करने के लिए प्रकाशक ही पैसे मांगे, उसकी तनहाई का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए
हिंदी फिल्मों में कुछ ऐसी शख्सियतें भी रहीं जो लेखक होने के साथ-साथ फिल्ममेकर की भी हैसियत रखती हैं। सागर सरहदी उसी क्लास के एक संज़ीदा लेखक और फिल्मकार थे।
जन्म तीस के दशक के शुरुआत में पाकिस्तान में हुआ था। उर्दू में कहानियां लिखने से करियर शुरू किया। गंगा सागर तलवार ने कहानियां लिखनी शुरू की तो अपना पेन नेम सागर सरहदी रख लिया। अभी किशोर ही थे कि भारत का विभाजन हो गया। सागर सरहदी का खाता-पीता परिवार जान बचाकर पहले श्रीनगर और फिर बाद में दिल्ली पहुंचा। फिर रोज़गार की खातिर मुंबई का रुख किया।
सागर साहिब की कलम से इंडस्ट्री के कई फिल्ममेकर बहुत प्रभावित थे। यश चोपड़ा ने उन्हें कई बार लिखने का मौका दिया। पहले इन्होंने फिल्मों के संवाद और फिर कहानी और पटकथा लिखे। पहली फिल्म बासु भट्टाचार्य की ‘अनुभव’ (1971) थी, जिसके संवाद लिखे। मगर यश चोपड़ा से मुलाकात दरअसल इनके फिल्मी जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
चांदनी, सिलसिला और बाज़ार जैसी हिट फिल्मों ने एक अलग पहचान दी
सागर सरहदी के लेखन का सिलसिला जारी रहा। उनके हिस्से में कहानियां आती रहीं, जिनमें ज़िन्दगी और समाज को करीब से देखने-समझने का संकल्प था। फिल्म ‘कभी-कभी’ की जबरदस्त कामयाबी के बाद फारुक शेख और पूनम ढिल्लन की फिल्म ‘नूरी’ आई। जिसे एक बार फिर यश चोपड़ा ने प्रस्तुत किया था। यह नाजुक अहसासों की कहानी थी। गीत-संगीत।
इसके अलावा ‘चांदनी’ और ‘सिलसिला’ भी इनकी ही लिखी फिल्में थीं। सिलसिला को अमिताभ बच्चन, रेखा, संजीव कुमार और जया बच्चन की बेमिसाल अदाकारी और कैमेस्ट्री के लिए आज भी जाना जाता है।
इनकी लेखनी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि इन्होंने व्यावसायिक फिल्मों के लिए भी खूब लिखा लेकिन कभी बाजारू नहीं हुए। इनकी सबसे चर्चित फिल्म बाज़ार ने इन्हें अलग ऊंचाई प्रदान की। लेखक से डायरेक्टर बने। कई साल तक दूसरों के लिए फिल्में लिखने वाले सागर सरहदी को बार-बार लगता था कि उन्हें एक फिल्म तो ऐसी बनाने को मिले जिसमें उनके सिवा किसी और का दखल ना हो। इस तरह फिल्म बाज़ार की बुनियाद पड़ी।
नसीरुद्दीन शाह, फारुक शेख, स्मिता पाटिल, सुप्रिया पाठक जैसे मंझे हुए कलाकारों की उम्दा अदाकारी ने फिल्म को जबरदस्त बनाया। यह फिल्म उन्होंने डायरेक्ट की थी। इसके बाद सरहदी साहिब ने फासले के लिए डायलॉग्स लिखे। फासले फिल्म में उन्होंने संवाद लिखा था। सुनील दत्त, रेखा, फारुक शेख और दीप्ति नवल ने अपने अपने किरदारों के साथ न्याय किया था।
विचारों से मार्क्सवादी थे सरहदी साब
सागर सरहदी हमेशा किसी फिल्म की तैयारी में लगे रहते थे। हमेशा एक अच्छी कहानी की तलाश में रहते थे। उनकी किस्सागोई के साथ बैठना अपने आप में रचना का एक पूरा संसार होता था।
@DirectorsIFTDA mourns the demise of Veteran Filmmaker & Writer #SagarSarhadi. We pray to the Almighty to bless his noble soul & give courage to his bereaved family to bear the irreplaceable loss. @SrBachchan @RajkumarHirani @imbhandarkar @TheFarahKhan @FarOutAkhtar pic.twitter.com/PxK3bXPa8A
— Iftda India (@DirectorsIFTDA) March 22, 2021
सागर साहिब ने शुरुआती दिनों में इप्टा में काम किया। इप्टा के लिए कई नाटक लिखे। भगत सिंह और अश्फ़ाक पर लिखे उनके प्ले बेहद चर्चित रहे। अश्फ़ाक के ऊपर लिखे इनके प्ले को आज भी इप्टा करती है। फिल्मों में इंट्री हुई तो अपनी पहली ही फिल्म ‘कभी- कभी’ के लिये बेस्ट डायलाग राइटर का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
इसके बाद तो जैसे उनकी गाड़ी चल पड़ी। आज के मशहूर फिल्मकार, लेखक-गीतकार गुलज़ार उनके शुरुआती दिनों के साथी के रूप में भी जाने जाते हैं।
सायन में किताबों से भरे घर में अकेले ज़िन्दगी बिताना उन्हें पसंद था। पांचवें दशक की शुरुआत में ही इप्टा से नाट्य लेखक निर्देशक के रूप में जुड़े सागर सरहदी ने फिल्म जगत में लेखक निर्देशक के रूप में ख्याति पाई। समानांतर फिल्म परंपरा को समृद्ध करने में भी अपनी भूमिका निभाई। मार्क्सवादी विचारों को उन्होंने हमेशा तरजीह दी और कभी समझौते नहीं किया। उनका नाम उन सितारों में शुमार था, जिन्होंने अपने दम पर अपने लिए एक अलग मुकाम हासिल करके दिखाया।