भारत एक विशाल देश है जहां विभिन्न धर्मों के जाति व वेशभूषा धारण करने वाले लोग निवास करते हैं। मसलन अनेकता में एकता हमारी पहचान और गौरव है लेकिन अनेकता, अनेक समस्याओं की जननी भी है।
जाति, भाषा, रहन-सहन व धार्मिक विभिन्नताओं के बीच कभी-कभी सामंजस्य स्थापित रखना दुष्कर होता है। देश में व्याप्त प्रांतीयता, भाषावाद, संप्रदायवाद तथा जातिवाद इन्हीं विभिन्नताओं का दुष्परिणाम है, इसके चलते आज देश के सभी राज्यों में दंगे-फसाद, मारकाट, लूट-खसोट आदि के समाचार अमूमन सुनने व पढ़ने को मिलते हैं।
अंधविश्वास और रूढ़िवादी प्रथाओं में जकड़ी महिलाएं
नारी के प्रति अत्याचार और बलात्कार का प्रयास हमारे समाज की एक शर्मनाक समस्याएं हैं। प्राचीन काल में जहां नारी को देवी माना जाता था, आज उसी समाज एवं देश में नारी की भावनाओं को दबा कर रखा जाता है। पुरुष का अहम नारी को अपने समकक्ष स्थान देने के लिए विरोध करता है।
दहेज़ प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियां आज भी हमारे तथाकथित सभ्य समाज में नारी को कष्टमय व असहाय जीवन जीने के लिए बाध्य करती हैं। केवल अशिक्षित ही नहीं अपितु हमारे कतिथ सभ्य समाज में भी दहेज़ का ज़हर व्याप्त है जिसके कारण प्रतिदिनना जाने कितनी ही नारियां दहेज़ प्रथा के कारण समाज की बर्बरता का शिकार हो जाती है या जिंदा जला दी जाती हैं।
अंधविश्वास और रूढ़िवादिता राष्ट्र की प्रगति में बाधक
किसी भी समाज में व्याप्त अंधविश्वास व रूढ़िवादिता जैसी बुराई किसी भी देश की प्रगति को पीछे धकेल देती हैं।अंधविश्वास और रूढ़िवादिता हमारे नवयुवकों को भाग्यवादिता की ओर ले जाती है। इसके फलस्वरूप वे कर्महीन हो जाते हैं और अपनी असफलताओं में अपनी कमियों को ढूंढने के बजाय वे इसे भाग्य की परिणिति का रूप दे देते हैं।
भ्रष्टाचार भी हमारे देश में एक जटिल समस्या का रूप ले चुका है। सामान्य कर्मचारी से लेकर उच्च पदों पर आसीन अधिकारी तक सभी भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके हैं। जिस देश के नेतागण भ्रष्टाचार में डूबे हुए हों और सामान्य व्यक्ति उससे परे कब तक रह सकता है यह भ्रष्टाचार का ही परिणाम है कि देश में महंगाई और कालाबाज़ारी के ज़हर का स्वच्छंद रूप से विस्तार हो रहा है।
हमारे समाज में जाति एक अहम प्रश्न है
जातिवाद की जड़े समाज में बहुत गहरी हो चुकी हैं। ये समस्याएं आज ही नहीं अपितु सदियों, से हमारे देश में पनप रही हैं। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक विषमता पनपती है, जो देश के विकास में बाधक बनती है। इसके अतिरिक्त भाई-भतीजावाद व कुर्सीवाद समाज में असमानता व अन्य समस्याओं को जन्म देता है। भारत की सियासत में समस्याओं के समाधान के लिए सामाजिक स्तर पर जद्दोजहद करने की आवश्यकता है।
इन समस्याओं का हल ढूंढना केवल सरकार का ही दायित्व नहीं है अपितु यह पूरे समाज व समाज के पूरे नागरिकों का उत्तरदायित्व है। इसके लिए जनजागृति आवश्यक है, जिससे लोग जागरूक बनें व अपने कर्तव्य को समझें। देश के युवाओं व भावी-पीढ़ी पर यह ज़िम्मेदारी और भी अधिक बनती है और यह दरकार है कि देश के सभी युवाओं को समाज में व्याप्त बुराईयों को मिटाने का प्रयास करना होगा अगर यह प्रयास पूरे मन से होगा तो उन सामाजिक बुराईयों को अवश्य ही जड़ से उखाड़ फेंका जा सकता है।