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“कोरोना से किसी अपने का चले जाना, हमेशा आंखों के सामने से गुज़रता रहता है”

रात के 1 बजकर 23 मिनट हो रहे हैं। ना आंखों में नींद है और ना ही सोने की चाहत। ना जाने कैसी उलझन सी समा गई है ज़ेहन में। शायद पहली बार किसी अपने को इस महामारी से प्रभावित होने के खतरे को महसूस कर पाई हूं!

किसी का जाना मानो हर पल आंखों के सामने से गुज़र रहा हो

विगत समय में इस महामारी के प्रकोप को अखबारों में पढ़ते एवं अपने आस-पास के लोगों को खुद से दूर होते हुए महसूस कर रही थी। तकलीफ भी होती थी।

इंसान से जुड़ी हर एक अच्छी-बुरी बातें, साथ में किए हुए काम, हर एक चीज़ मानो आंखों के सामने से गुज़र रही हो और दिल ये मानने को तैयार ही नहीं होता कि वो इंसान अब हमसे नहीं मिलने वाला।

यकीनन, उस समय आपकी हर एक कमी, हर एक नकारात्मक गतिविधि आपको अपने आप में ही नकारात्मक व्यक्तित्व होने का एहसास करवाती है। जिसकी ग्लानी आपके मन में आपके जीवन काल तक रहती है, फिर भले ही आप उसे याद करें ना करें। ऐसे समय में, जब वो इंसान आपसे कभी न मिलने वाले सफर पर निकल पड़ता है। यह सब आपको झंझोर कर रख देता देती है, जिसके बाद बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो इससे उबर पाते हैं।

इस महामारी में हर वो इंसान इस तकलीफ से गुज़र रहा है, जिसका पलक झपकाते ही कोई अपना उससे दूर हो जा रहा है। ना कोई आखिरी ख्वाहिश, ना कोई आखिरी चेहरा, न ही आखिरी विदाई।

लोग अभी भी कोरोना के अस्तित्व को नकार रहे हैं

अब तक केवल किताबों में, कहानियों में ऐसे महामारी आदि के बारे में सुनती व पढ़ती आई थी पर आज असल जिंदगी में इसको करीब से महसूस कर पा रही हूं।

कमी तो बस इस बात की है कि आज भी हम में से कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने इस चिंता के विषय को भी किसी और पहलू से जोड़ कर देख रहे हैं। या कहें तो इसके अस्तित्व को ही मानने से इनकार कर रहे हैं। इसमें उनकी भी गलती नहीं है। हम सब ऐसे मानसिक दौर से गुजर रहे हैं जिसमें हमारे सोचने की शक्ति पर हमारा कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया है।

हम वो सोचते हैं जो हम देखते हैं या सुनते हैं। मगर क्या हम अपने तकलीफ, सामने वाले की गलती या कमी, अपने आस-पास के वातावरण व औरों के दलीलों को भूलकर सिर्फ आज की वास्तविकता के बारे में स्वयं के विवेक से नहीं सोच सकते? जिसमें सिर्फ आप और आपके अपनों का साथ व खुशियां महत्व रखती हों।

बच्चों की सुरक्षा ज़्यादा अहम

अपनी जान को ताख पर रखकर चाहे वे पुलिस हों, डॉक्टर्स हों या कोई भी। वो आपकी एवं आपके परिवार की सुरक्षा के लिए ही आपसे निवेदन कर रहा है।

मैं हर दिन अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर देखती हूं। तरह-तरह के मीम्स व मजाक वाले विचार लोगों ने साझा कर रखा है। विद्यालयों के बंद होने को लेकर मैंने अपने साथियों के विचार को सुना, कि कोरोना केवल शिक्षण संस्थानों में ही जाएगा, चुनावी रैलियों आदि में नहीं। कोरोना कुछ नहीं है, ये सब सरकार के चोचले हैं।

मेरा यहां पर किसी भी प्रकार के राजनीतिक मुद्दों को बीच में लेकर आना या उसपर चर्चा करने का उद्देश्य नहीं है।

है तो बस इतना ही कि ज़रा एकबार सोच कर देखो ना, हमारे छोटे भाई-बहन को विद्यालयों में जाने से अगर किसी प्रकार की कोई तकलीफ या परेशानी होती है तो उसका जिम्मेदार हम किसे ठहराते हैं? अध्यापक या विद्यालय प्रशासन को? इस समय हमारे लिए बच्चों की सुरक्षा पहली प्राथमिकता है, ना कि शिक्षा। मेरे लिए तो यही है। बाकी हर कोई स्वयं के विचारों के लिए स्वतंत्र है।

खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों के लिए भी संवेदनशील रहें

सबसे बड़ी बात कि आज हम बच्चों के विद्यालय ना जाने से परेशान हैं। अधिकारियों से मेरा सवाल है कि क्या वो आज की वास्तिवकता को समझने एवं दूसरों को समझाने में सक्षम हैं? अगर होते तो शायद ये विकराल रूप हमें देखने को नहीं मिलता। हमें जागरूक करने के लिए किसी और की ज़रूरत या तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर दूसरे की जेब भरने का मौका दे रहे हो।

अगर यही करना है तो इससे बेहतर है कि घर के बच्चे घर में ही रहें, व्यवहारिक ज्ञान को सीखें और सुरक्षित रहें। ऐसी शिक्षा किसी काम की नहीं जिसको समझने या अपने ऊपर लागू करने के लिए हमें किसी और के सहारे को महसूस कराए।

इसलिये बार-बार मेरा यही कहना है कि हम खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश करें। इससे हम दूसरों को भी बराबर सुरक्षित रख पाएंगे। निवेदन समझो या सलाह पर कृपया सावधानी बरतिये। अपने लिए ना सही, अपने बच्चों व उनके लिए जो आप पर भरोसा कर रहे हैं।

कृपया मेरे इस विचार को किसी अन्य ज्वलंत पहलू से ना जोड़ें। ये मेरे स्वयं के विचार या कह लें कि व्यथा है जो मैं हर पल अपने आस-पास वालों के लिए महसूस कर पा रही हूं। सभी स्वस्थ, सुरक्षित एवं दूसरों के लिए संवेदनशील रहें।

धनयवाद!

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