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“अस्पताल से लेकर श्मशान तक में जगह नहीं, सरकारें अब कब गंभीर होंगी?”

कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए जहां राज्य सरकारें कोरोना नाइट कर्फ्यू लगा रही है, वहीं शादी समारोह में 100 लोगों की उपस्थिति वाली गाइड लाइन भी जारी कर दी है। चुनावों मे रैलियां निकाली जा रही हैं। भारी भीड़ इकट्ठे करे जा रहे हैं। क्या यहां कोरोना के लिए कोई गाइडलाइन नहीं होनी चाहिए थी? क्या कोरोना चुनावों वाले राज्यों में खत्म हो जाता है?

आम जनता के लिए बनाए गए गाइडलाइन से सरकारों पर कोई प्रभाव क्यों नहीं होता? आम जनता की जानों को जोखिम में डालकर जो रैलियां की जा रही है, इसकी भारपाई कौन करेगा? जनता या सरकार?

कुंभ बना कोरोना हॉटस्पॉट

वहीं दूसरी ओर कुंभ का समय चल रहा है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हो रहे हैं। बोला जा रहा है कि सभी ने अपनी कोरोना रिपोर्ट जमा करवा कर कुंभ मे जा रहे हैं। अच्छी बात है पर वहां के लोकल जो शायद किन्हीं वजह से टेस्ट ना करवा पाए हों और आप उनके टच में आ गए, तो फिर क्या होगा?

कितना प्रैक्टिकल है ये कहना कि जांच रिपोर्ट दिखाकर एकत्रित होने वाली लाखों की भीड़ कोरोना से बच जाएगी? सच्चाई तो हालांकि इसके सीधे उलट है।

उत्तराखंड में इन दिनों देहरादून और हरिद्वार दोनों इन दिनों सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बना हुआ है। रोज़ाना कुंभ के कारण वहां से रिकॉर्ड मामले आ रहे हैं। आस्था के चक्कर में अपनी जान तो लोग जोखिम में डाल ही रहे हैं, साथ ही स्थानीय लोगों के लिए भी कई तरह की मुश्किलें खड़ी कर दी है।

यह कैसी आस्था है जिसमें इंसानी जीवन की कोई कीमत ही नहीं? लोग क्यों नहीं समझ रहे कि यहां बस आप खुद के लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी खतरा बन जाते हैं। कुंभ से लौटकर जब अपने घर जाएंगे तो अपने घर और पड़ोस में भी कोरोना बांटेंगे। इतनी भयावहता के बीच भी कोरोना के अस्तित्व को लोग नकार रहे हैं।

कोरोना का दूसरा सबसे बड़ा आउटब्रेक भारत में

क्या इन्हें जमाती नहीं कहा जाना चाहिए? वहां तो ये चीज़ें तब अनजाने में हुई जब केस बहुत कम थे और इनकी संख्या भी आज के मुकाबले मामूली थी। मगर यहां जब रिकॉर्ड 2 लाख केस पार कर जाते हैं तब भी सरकारें कहती है कि कुंभ को बीच में नहीं रोका जा सकता। पूरा सोशल मीडिया कोरोना से जुड़े पोस्ट्स और वीडियोज़ से भर गया है।

लोग दिखा रहे हैं कि कैसे अस्पताल में बेड की व्यवस्था नहीं, श्मशान में लाइनें लग रही है, प्लाज़्मा के लिए चीख-पुकार मची है। टाइम मैगज़ीन में खबर छपी है कि भारत में कोविड का दूसरा सबसे बड़ा आउटब्रेक हुआ है, जो शायद सबसे बड़ा होकर माने। इसमें सबसे बड़ा योगदान हमारी सरकारों की ही होगी जो इस घड़ी में भी पहली प्राथमिकता चुनाव और कुंभ को दे रही है।

पता नहीं यह सब कब और कहां जाकर रूकेगा? सरकारों को कब सद्बुद्धि आएगी पता नहीं। बेहतर यही होगा कि आप इनकी व्यवस्था के भरोसे न रहें और अपनी व्यवस्था खुद करें कि क्या करके आप इस कोरोना से खुद को बचा सकते हैं?

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