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बेहद कम संसाधनों के बीच गांव के इस बच्चे ने बनाया एक अत्याधुनिक डस्टबिन

प्रतिभा की कोई उम्र नहीं होती। छोटी उम्र में भी नौनिहालों को यदि उपयुक्त शिक्षा, परिवेश व सुविधा मिले, तो वह भी अपनी प्रतिभा से देश और दुनिया में नाम रोशन कर सकते हैं। इसके लिए घर-परिवार से ही उनके बालमन को बारीकी से समझना होगा। उनकी हरेक गतिविधियों को मनोवैज्ञानिक ढंग से देखना होगा। इसमें माता-पिता के अलावा विद्यालय की भी ज़िम्मेदारी होती है।

जहां सभी तरह के बच्चे एक साथ पढ़ते हैं लेकिन इसमें कुछ प्रतिभावान बच्चे भी होते हैं, जिन्हें ‘विशेष बच्चा’ कहा जाता है।

2019 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित एक सरकारी स्कूल के बच्चों ने कृषि से संबंधित यंत्र एवं बिना कोयला-पानी के बिजली बनाने का माॅडल पेश किया था, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी।  इस आविष्कार को नीति आयोग ने गंभीरता से लेते हुए उन बाल वैज्ञानिकों को पुरस्कृत भी किया था।

सरकारी स्कूल के उन बाल वैज्ञानिकों की लंबी फेहरिस्त है, जो निरंतर नई-नई चीजों को खोजने में जुटे हैं। उन बाल वैज्ञानिकों में कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से समाज को फायदा पहुंचाने की अनोखी खोज की है। ऐसा ही एक बाल वैज्ञानिक है निशांत।

मुज़फ्फरपुर के निशांत ने एक अत्याधुनिक डस्टबिन बनाया

निशांत को स्कूल में साफ-सफाई की जिम्मेदारी ने कचरा प्रबंधन का नायाब तरीका खोजने के लिए प्रेरित कर दिया। सरकारी उच्च विद्यालय में पढ़ने वाला निशांत स्वचालित स्मार्ट डस्टबिन बनाकर अपने स्कूल, गांव और आसपास के लोगों के लिए बाल वैज्ञानिक के रूप में चर्चित हो रहा है। यह डस्टबिन केवल कचरा ही नहीं, बल्कि डस्टबिन में रखे जाने वाले अवांछित सामग्रियों पर भी कैमरे से नजर रखता है।

इसमें लगे सेंसर ट्रैफिक जाम और आपत्तिजनक वस्तुओं की सूचना पुलिस और नगर निगम के अधिकारियों को देने में सक्षम है। अक्सर यह खबर अखबार और टेलीविजन चैनलों की सुर्खियों में रहती है, कि डस्टबिन से भ्रूण, हथियार आदि आपत्तिजनक चीज़ें बरामद हुई है। अब निशांत का स्मार्ट डस्टबिन उन तमाम गतिविधियों पर नजर रखने में सक्षम है, जिसको लेकर प्रशासन और सरकार के लिए अबूझ पहेली बन जाती है।

पिताजी कहते थे, ‘तुम बेकार के कामों में लगे रहते हो’

बिहार के मुज़फ्फरपुर जिले के कुढ़नी ब्लॉक स्थित छाजन गांव का रहनेवाला निशांत किसान परिवार से है। पिता रंजीत भगत खेतीबाड़ी के साथ-साथ ग्रिल की दुकान चलाते हैं। गरीबी और मुफलिसी की जिंदगी के बीच निशांत विद्यालय की साफ-सफाई तथा कचरा स्टोर करने के लिए सर्वप्रथम कार्टून से डस्टबिन बनाया। इसके बाद उसका अलग-अलग प्रकार का डस्टबिन बनाने का सिलसिला शुरू हो गया।

निशांत के मन मस्तिष्क में कल्पना उड़ान भरने लगी और वह स्वचालित स्मार्ट डस्टबिन बनाने के लिए अग्रसर हुआ। उसका कहना है कि पहली बार तो पिताजी कहने लगे कि तुम बेकार के काम में लगे रहते हो। इस उम्र में पढ़ना चाहिए तो बाल्टी, बैटरी, कैमरा, मल्टीमीटर, इलेक्ट्राॅनिक्स सामान और मोबाइल लेकर बैठे रहते हो। यह सब परीक्षा पास करने में काम नहीं आने वाला। मगर बड़े भाई के सहयोग से चुपके-चुपके काम में लगा रहा।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने किया सम्मानित

कुछ महीने बीतने के बाद लॉकडाउन के दौरान ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ ने ‘इंस्पायर अवार्ड’ के लिए पूरे देश के स्कूली विद्यार्थियों से एक-एक नए प्रोजेक्ट के लिए आवेदन मांगा था। यह प्रोजेक्ट स्थानीय स्तर की जनसमस्याओं के निदान के लिए भेजना था। जिसमें प्रोजेक्ट का चयन होने के बाद प्रत्येक विद्यार्थियों को 10-10 हज़ार की प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। यह राशि निशांत के कार्य के लिए ईंधन से कम नहीं था।

वह उच्च माध्यमिक विद्यालय, छाजन का छात्र है, जहां के प्रधानाध्यापक ने सभी बच्चों के साथ-साथ निशांत का भी ‘इंस्पायर अवार्ड’ के लिए आवेदन किया। इस दौरान वह अपने प्रोजेक्ट वर्क को तैयार करने में जुट गया और दो महीने के अथक प्रयास के बाद स्मार्ट डस्टबिन बनकर तैयार हो गया। इस प्रोजेक्ट को इंस्पायर अवार्ड से नवाजा गया। आज उसके स्मार्ट डस्टबिन के कारण केवल स्कूल बल्कि गांव के लोग भी उसे बाल वैज्ञानिक के रूप में पहचानने लगे हैं।

क्या है इस डस्टबिन की खासियत?

डेढ़ किलोग्राम की क्षमता वाला यह डस्टबिन बाल्टी के समान है। यह कई अत्याधुनिक तकनीकों से लैस है। डस्टबिन के पास कचरा ले जाने पर उसका शटर (दरवाजा) न केवल स्वतः खुल जाता है बल्कि उसमें कचरा डालने वाले व्यक्ति का फोटो-विडियो भी रिकार्ड हो जाता है।

डस्टबिन में हथियार, कारतूस या आपत्तिजनक सामान रखते ही उसमें लगा सायरन बजने लगता है और तत्काल 100 नंबर पर काॅलिंग होने लगता है। इस काॅल के माध्यम से पुलिस आसानी से चोरों को पकड़ सकती है। इतना ही नहीं, उसका यह स्मार्ट डस्टबिन भ्रूण हत्या करने वालों की पहचान में भी मददगार साबित हो सकता है। निशांत का कहना है कि कभी-कभार डस्टबिन में भ्रूण हत्या करके डाल दिया जाता है, ऐसी स्थिति में डस्टबिन में लगे सेंसर रीड कर लेता है और सायरन बजने लगता है।

इसके अतिरिक्त स्वचालित डस्टबिनन पूरी तरह से भर जाने के बाद नगर निगम को भी फोन काॅलिंग के माध्यम से जानकारी दे सकता है। इस स्वचालित डस्टबिन को बनाने में जिन सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया उनमें एक बड़ी बाल्टी या डस्टबीन बाॅक्स, सेंसर, सर्वो मोटर, 9 वोल्ट की बैट्री, कंट्रोल सर्किट, फिंगर स्केनर, सोलर पैनल, छोटी एलसीडी, इलेक्ट्राॅनिक घड़ी, मैगनेट, चार्जिंग केबल, लाॅक, स्वीच, आइसी, ट्रांजिस्टर, रिले, गेयर मोटर, जंपर वायर, मोबाइल की-पैड आदि चीजों को एकत्रित करके आसानी से बनाया जा सकता है। इसको बनाने में 3500-5000 रुपए तक खर्च आता है।

भौतिकी के क्षेत्र में अनुसंधान का सपना

इस संबंध में निशांत का कहना है कि

ऐसे तो देश में कई प्रकार के डस्टबिन बनाए गए हैं, परंतु इतनी सुविधा देने वाला डस्टबिन मौजूद नहीं है। मैंने इसे पूरी तरह से डिजिटल बनाने की कोशिश की है। यदि सुविधा मिले तो इससे भी बेहतर बनाऊंगा। इस काम में मेरे परिवार और विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने प्रोजेक्ट के लिए हमेशा सकारात्मक ऊर्जा दी है। मुझे मौका मिले, तो भौतिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करके देश और प्रकृति के लिए अनुसंधान करना चाहूंगा।

उसके इस अनोखे प्रयोग पर ग्रामीणों और शिक्षकों का कहना है कि उसने अपने डस्टबिन के माध्यम से वातावरण की सफाई रखने का नया तरीका ढूंढा है। इस काम से आसपास के बच्चों में भी पढ़ने और कुछ करने की ललक जग गई है। हमारे बच्चे भी चाहते हैं कि पढ़-लिखकर देश के लिए कीर्तिमान स्थापित करें। स्कूल के प्रधानाध्यापक राम स्नेही कहते हैं कि यह निशांत वाकई प्रतिभावान है। इसे आगे की पढ़ाई का मौका मिले, तो भौतिकी के क्षेत्र में नया अनुसंधान कर सकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभा की कोई नहीं, ज़रूरत है अवसर देने की

दरअसल इंस्पायर अवार्ड केंद्र के विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के माध्यम से विज्ञान के क्षेत्र में मेधावी विद्यार्थियों को रोजगार चुनने, शोध करने, विज्ञान के प्रति रुझान पैदा करने के लिए आरंभ किया गया है। 11वीं पंचवर्षीय योजना के तहत देश के तीस लाख युवाओं में विज्ञान के प्रति उत्कृष्ट कार्य व प्रोत्साहन के लिए इंस्पायर अवार्ड की शुरुआत की गई है। इस अवार्ड के लिए माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों से प्रोजेक्ट मांगा जाता है।

चयनित विद्यार्थियों को प्रोत्साहन राशि के तौर पर दस हज़ार रुपए दिए जाते हैं। सर्वश्रेष्ठ प्रोजेक्ट को इंस्पायर इंटर्नशिप भी दिया जाता है। ‘इंस्पायर अवार्ड’ प्रतिभावान छात्रों में विज्ञान के प्रति आकर्षित करने में महती भूमिका निभा रही है। इस अवार्ड से कम-से-कम ग्रामीण भारत के बच्चों में विज्ञान के क्षेत्र में नया अन्वेषण, शोध व रचनात्मक कार्य करने का प्रोत्साहन मिल रहा है।

बहरहाल, निशांत का यह मॉडल वैज्ञानिक सलाह, सरकारी सहायता तथा प्रोत्साहन की बाट जोह रहा है। शिक्षकों तथा आसपास के लोगों के लिए डस्टबिन कौतूहल का विषय बना हुआ है। यदि इस बाल वैज्ञानिक को उचित मंच प्रदान किया जाए तो समाज और राष्ट्र के लिए मिसाल बन सकता है। निशांत का यह अनोखा खोज इस बात को साबित करता है, कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिभा की कमी नहीं है। कमी है तो उसे पहचानने और बढ़ावा देने की।

यह आलेख मुज़फ्फरपुर, बिहार से अमृतांज इंदीवर ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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