दिल्ली सरकार के एक आयोग ने हाल ही में रोजगार पर एक सर्वेक्षण किया है। सर्वेक्षण में पाया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रोजगार का संकट बहुत तेजी से बढ़ा है। पिछले साल सितंबर से नवंबर के बीच किए गए आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि रोजगार में भारी गिरावट का मुख्य कारण कोरोना की महामारी और लाॅकडाउन है।
लॉकडाउन में बेरोजगारी दर दोगुनी से भी ज़्यादा
सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली की बेरोजगारी दर जनवरी-फरवरी 2020 की 11.1 प्रतिशत से बढ़कर अक्टूबर-नवंबर में 28.5 प्रतिशत हो गई। ग्रेजुएट्स और पोस्ट ग्रेजुएट्स के विधार्थियों में भी बेरोजगारी तेज़ी से बढ़ी है। रोजगार में खासतौर पर महिलाओं के हिस्सेदारी में भारी गिरावट आई है। दिल्ली सरकार की इस सर्वेक्षण में 44, 226 लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें 32, 052 लोगों की उम्र 15 वर्ष या उससे अधिक थी।
इस रिपोर्ट को Delhi Directorate of Economics and Statistics और Centre for Market Research and Social Development के द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले आठ महीनों में दिल्ली की बेरोजगारी दर में 17.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह बेरोजगारी तब बढ़ी जब देश के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के कारण कई बार लाॅकडाउन और अनलाॅक की प्रकिया चली।
हालांकि, दिल्ली सरकार ने इससे पहले कभी इस तरह का सर्वे नहीं करवाया है, जिससे दिल्ली शहर में रोजगार की स्थिति का पता लगाया जा सके। इससे पहले राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) ने जुलाई 2018 से जून 2019 के दौरान एक सर्वेक्षण किया था। जिसमें पाया गया था कि उपरोक्त अवधि के दौरान दिल्ली में बेरोजगारी की दर 10.4 थी, जो मोटे तौर पर दिल्ली सरकार के सर्वेक्षण के प्री-कोरोना के नंबरों के अनुरूप थी।
महिलाओं के लिए रोज़गार का सबसे ज़्यादा संकट
सर्वेक्षण में स्पष्ट रूप से पता चला है कि महामारी और लाॅकडाउन ने कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी पर एक गंभीर प्रहार किया है। महिलाओं की श्रेणी में बेरोजगारी दर बढ़कर 25.6 प्रतिशत से 54.7 प्रतिशत हो गया है। रिपोर्ट में चिंता ज़ाहिर करते हुए बताया गया है कि सर्वेक्षण के दौरान शामिल महिलाओं में से 83.1 प्रतिशत महिलाएं लेबर फोर्स में नहीं थी। पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 31.6 प्रतिशत है।
लेबर फोर्स से उन लोगों को संदर्भित किया जाता है, जो या तो काम कर रहें हो, या बेरोजगार हों लेकिन काम करना चाहते हैं। ‘लेबर फोर्स से बाहर’ होने का तात्पर्य उन लोगों से है जो न केवल बेरोजगार हैं, बल्कि किसी काम की तलाश में भी नहीं हैं। इस कैटेगरी में आमतौर पर छात्र, पेंशनभोगी या मकान मालिक आते हैं जो किराए से कमाते हैं।
हालांकि, महिलाओं के मामले में आमतौर पर ऐसा होता है कि वे घरेलू कार्यों में ही व्यस्त रहती हैं। सर्वेक्षण में सिफारिश की गई है कि इस मुद्दे पर गहराई से अध्ययन करने के लिए गहन अध्ययन किया जाए।
कोरोना के बीच रोज़गार के लिए बेहतर नीति बनाने की ज़रूरत
जो लोग रोज़गार में थे, उनमें से सात प्रतिशत लोग जनवरी-फरवरी में प्रति माह 5,000 रुपये से कम कमा रहे थे। अक्टूबर तक उनका हिस्सा बढ़कर 13 फीसदी हो गया और 10,000 रुपये से 15,000 रुपये महीना कमाने वालों की हिस्सेदारी 30 फीसदी से घटकर 20 फीसदी रह गई। इसके अलावा, सर्वेक्षण में शमिल लोगों में से 20 प्रतिशत निजी क्षेत्र में नौकरियों में लगे हुए थे, वहीं सात प्रतिशत दिहाड़ी मजदूर और दो प्रतिशत सरकारी और इतने ही लोग कृषि क्षेत्र में थे।
इससे साफ ज़ाहिर होता है कि कोरोना और लाॅकडाउन ने किस तरह से लोगों के जीवन पर असर डाला है और इसके असर से कोई भी क्षेत्र उबर नहीं पाये हैं। सभी क्षेत्रों में प्रोडक्शन और रोजगार सृजन की क्षमता में भारी गिरावट आई है। अभी लोग कोरोना के पहली लहर से उबरने की कोशिश ही कर रहे थे कि इसकी दूसरी लहर के संकट का सामना करना पड़ रहा है। फिर से लाॅकडाउन की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
ज़रूरत है कि सरकार इस परेशानी का सामना बुद्धिमत्ता से करे। योजनाबद्ध तरीके इसका कोई हल निकाले जिससे कोरोना का सामना करने के साथ-साथ आम लोगों के जन-जीवन और रोज़गार की समस्या भी हल हो सके।