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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अहंकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अहंकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार

पिछले कई सप्ताह से प्रदेश के मौजूदा हालात की खबरें सामने आ रही हैं, जो राज्य की चरमराती स्वास्थ्य  व्यवस्था की पोल खोल रही हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के अहंकार के आगे यह सब नज़र नहीं आ रहा है। यह हाल जनता के बीच ना पहुंचे इसके लिए वो आए दिन कुछ ना कुछ घोषणा कर देते हैं, तो कहीं यह भी कह देते है कि राज्य के कोरोना को लेकर हालात काबू में हैं। यहां किसी भी चीज़ की कमी नहीं है चाहे वो फिर ऑक्सीजन हो या बेड हो  या और कोई ज़रूरी चीज़ हो।

यही खबर अखबार वालों के लिए पहले पन्ने की लीड स्टोरी बन जाती है और  अखबार के पाठकों को भी यही लगता है कि सब अंडर कंट्रोल है, लेकिन उन्हें अपने बगल के शहर के बारे में भी नहीं पता चल पाता कि वहां श्मशान में अंतिम क्रिया करने के लिए वहां के प्रशासन को लोगों को टोकन बांटना पड रहा है और आम जनमानस को कालाबाज़ारी का सामना करना पड़ रहा है।

कालाबाज़ारी पर नज़ीर अकबराबादी लिखते हैं 

 बैठे हैं आदमी ही दुकानें लगा-लगा।
और आदमी ही फिरते हैं रख सर पे खोमचा॥
कहता है कोई ‘लो’ कोई कहता है ‘ला रे ला’।
किस-किस तरह की बेचें हैं चीज़ें बना-बना॥
और मोल ले रहा है सो है वह भी आदमी॥

ऑक्सीजन और बेड की भारी कमी

प्रदेश के हॉस्पिटल्स में कोरोना मरीजों के लिए पर्याप्त संख्या में बेड नहीं हैं, ना ही वहां उनके लिए पर्याप्त मात्रा में  ऑक्सीजन की आपूर्ति है जिसकी अभाव में मरीज़ दम तोड़ रहे हैं, तो किसी को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है। लोगों को अस्पताल तक लाने के लिए एम्बुलेंस नहीं हैं और लोग इन हालातों के चलते मजबूर होकर अपने मरीज़ को गाड़ी या साईकिल से ले हॉस्पिटल ले जाने के लिए मजबूर हैं।

 लेकिन, अस्पताल पहुंचते-पहुंचते मरीज़ रास्ते में ही अपनी दम तोड़ देता है और योगी जी अपने दरबारी अखबारों को लीड स्टोरी देने के चक्कर में ऐसा कह देते हैं कि प्रदेश के हालात पूर्ण रूप से काबू में हैं।

इलाहबाद हाईकोर्ट ने लगाई फटकार 

प्रदेश के ऐसे हालातों को देखते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने 26 अप्रैल, को योगी सरकार से पूर्ण लॉकडाउन लगाने के लिए 5 शहरों के नाम बताए जिनमें प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर जैसे मुख्य शहर शामिल थे, लेकिन योगी सरकार के अहंकार के आगे हाईकोर्ट की यह बात जनता से सही आंकड़े छुपाने जैसी हो गई और योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए जहां इस बात  पर रोक लगा दी गई और फैसला सरकार के पक्ष में दिया गया।

सरकारी आंकड़े और ज़मीनी हकीकत 

प्रदेश में महामारी अपने चरम पर थी और अभी भी है। पिछले कई दिनों से कोरोना के नए मामले लगभग 30 हज़ार के पार आ रहे हैं और अगर हम बीते 24 घंटे की बात करें, तो कोरोना से मरने वालों की संख्या 265 है और नए मामले लगभग 32 हज़ार के आस-पास हैं। यह आंकड़े डराने वाले हैं, लेकिन यह आंकड़े सरकारी हैं इससे इतर प्रदेश की ज़मीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर बयां करती है।

पिछले दिनों कानपुर में मौत का सरकारी आंकड़ा सिर्फ 3 था, लेकिन श्मशान घाट पर हकीकत कुछ और ही थी।  लल्लनटॉप की रिपोर्टर स्वाती मिश्रा की रिपोर्ट में मौत का आंकड़ा 3 से कहीं ज़्यादा था या यूं कहे लगभग 100 के आस-पास का था, यह हाल प्रदेश के शहर सिर्फ कानपुर का है, तो बाकी शहरों का क्या होगा?

प्रदेश में मातम के बीच पंचायत चुनाव 

प्रदेश में इस समय सभी जगह मातम का माहौल है, लेकिन सम्पूर्ण प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव जोर-शोर से चल रहे हैं। जो किसी उत्सव से कम नहीं हैं, लेकिन चुनावों में उम्मीदवारों एवं मतदाताओं के लिए सरकार की तरफ से एक गाइडलाइन भी होती है जिसका पालन करना होता है। लेकिन,प्रदेश में ऐसी महामारी के बीच हो रहे चुनावों में ऐसी गाइडलाइन्स का कहीं भी पालन नहीं हो रहा है। 4 चरणों में होने वाले पंचायत चुनाव अब तीन चरण के हो गए हैं। अभी प्रदेश के पंचायती चुनावों का एक चरण होना बाकी है, लेकिन ड्यूटी कर रहे 135 शिक्षकों, शिक्षामित्रों और अनुदेशकों की कोरोना संक्रमित होने से अपनी जान भी गवानी पड़ी है। अब इसका ज़िम्मेदार  कौन होगा राज्य की सरकार या चुनाव कराने वाला आयोग?

हाईकोर्ट ने इस मामले में फिर दखल दिया और सरकार से सवाल पूछा कि प्रदेश के पंचायत चुनावों में किसी भी  गाइडलाइन्स का पालन क्यों नहीं हुआ? और इस बार हाथ जोड़ कर अहंकारी योगी सरकार से प्रदेश के बड़े शहरों में 14 दिनों का पूर्ण लॉकडाउन लगाने का सुझाव भी दिया है।

हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ना पद की गरिमा को कुछ समझते हैं और ना ही प्रदेश को बस अपनी इमेज बिल्डिंग के काम में लगे हुए हैं। वो आए दिन घोषणा करते रहते हैं और आंकड़े छिपाना और व्यवस्था को सही बताना अब उनके पास यही काम रह गया है, लेकिन चीखती आवाज़ों और प्रदेश से उठते लाशों के धुंए को कैसे छिपाएंगे?

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