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बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं नोबेल विजेता जब बच्चों के लिए बावर्ची बन गए

बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी जी का ज़्यादातर समय बाल आश्रम में मुक्‍त बाल मजदूरों के बीच व्‍यतीत हो रहा है। इस दौरान सत्यार्थी जी की व्यस्तता पहले से कहीं और अधिक बढ़ गई है। वे वेबिनार तथा ज़ूम कॉल के माध्यम से अनेक कार्यक्रमों को संबोधित करते रहते हैं। सत्यार्थी जी के कार्यालय में पूरी दुनिया से आए हज़ारों आमंत्रण पत्र जवाब को प्रतीक्षारत हैं।

फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रन अभियान

बाल आश्रम मुक्‍त बाल मजदूरों का एक पुनर्वास केंद्र है, जो राजस्थान के जयपुर जिले के विराट नगर कस्बे में स्थित है। बाल आश्रम की स्थापना सत्यार्थी जी एवं उनकी पत्‍नी श्रीमती सुमेधा कैलाश ने 1998 में की थी। सत्यार्थी जी उन 17-18 नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेताओं में से एक हैं जो काफी सक्रिय हैं।

उन्‍होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए 88 नोबेल विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एक मंच पर लाने का काम किया है। सभी वैश्विक नेताओं ने दुनिया की अमीर सरकारों से कोरोना से प्रभावित बच्चों की सुरक्षा के लिए एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की धनराशि देने की मांग की है। राशि की मांग फेयर शेयर फॉर चिल्‍ड्रेन अभियान के तहत की गई है।

सत्‍यार्थी जी के द्वारा किया गया विचारोत्तेजक लेखन भी उल्‍लेखनीय है। इसके अलावा उनके व्यक्तिव का एक दूसरा पहलू भी है जो अलहदा है और उनकी असाधारणता को दर्शाता है। उनके व्‍यक्तित्‍व के इस पक्ष का दर्शन मुझे तब हुआ जब पिछले दिनों मैं जयपुर के विराटनगर कस्‍बे के बाल आश्रम में था।

बच्चों ने ब्रेड-पकौड़े खाने की इच्छा जताई

बहुत कम लोग जानते हैं कि सत्‍यार्थी जी एक अच्‍छे बावर्ची भी हैं। अपनी व्‍यस्‍त दिनचर्याओं में से कुछ वक्‍त बाल आश्रम के मुक्त बाल मजदूरों के लिए चुरा लेते हैं। वे बच्चों के साथ कई प्रकार की गतिविधियां करते रहते हैं। कभी सत्यार्थी जी बच्चों के साथ खेलते नज़र आते हैं, कभी उनके साथ गाना गाते हैं और वो डांस करने से भी परहेज़ नहीं करते। पिछले दिनों मैं बाल आश्रम गया था। मेरे सामने वहां एक घटना घटी जो बिलकुल निराली थी।

एक दिन सत्यार्थी जी ने बच्चों से पूछा कि बच्चों, आपको क्या खाना पसंद है? बच्चों ने एकमत से उत्तर दिया, भाई साहब हमको ब्रेड-पकौड़ा खाना पसंद है। बच्चों का उत्तर सुनकर उन्होंने कहा कि वे खुद ही बाल आश्रम के बच्चों तथा कर्मचारियों को ब्रेड-पकौड़ा बनाकर खिलाएंगे। उनकी यह बात सुनकर मुझे अचरज हुआ लेकिन बाल आश्रम के बच्चों तथा कर्मचारियों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी।

सत्यार्थी जी अक्सर बच्चों को अपने हाथों से कई तरह के व्यंजन बनाकर खिलाते रहते हैं। वे प्राय: अपने दोस्तों व कर्मचारियों को अनेक तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाकर खिलाते हैं।

बच्चे सहित सत्यार्थी दंपत्ति सभी बनाने में जुट गए

सत्यार्थी जी तथा उनकी पत्‍नी सुमेधा जी बाल आश्रम के मैदान में ज़रूरी समान के साथ आ गए। बच्चे भी छोटा-छोटा सामान लाने में उनकी मदद कर रहे थे। गैस की भट्ठी, गैस का सिलेंडर, भगोने आदि भारी सामान को लाने में आश्रम के कर्मचारियों ने सहायता की। देखते ही देखते मैदान में ब्रेड-पकोड़े बनाने के सारे सामान इकट्ठा हो गए। सुमेधा जी के आह्वान पर कुछ बच्चे गाना गाने लगे।

गौरतलब है कि सुमेधा जी बाल आश्रम के बच्चों को संगीत की शिक्षा भी देती हैं। वे खुद भी हारमोनियम पर बहुत अच्छा गाती हैं। इस तरह मैदान में पिकनिक का माहौल बन गया। सत्यार्थी दम्पत्ति ने आलू उबालने से लेकर उनको छीलने, बेसन घोलने, नमक मसाला मिलाने का कार्य बच्चों के जिम्‍मे सौंपा। सत्यार्थी जी ने बच्चों के साथ ब्रेडों में आलू की पिट्ठी भरी।

जब सारे ब्रेड में आलू की पिट्ठी भर दी गई तो सत्यार्थी दम्पत्ति लग गए ब्रेड-पकौड़े तलने। सुमेधा जी ने सभी बच्चों के लिए चटनी बनाई। जब ब्रेड-पकौड़े बनकर तैयार हो गए तो सभी बच्चे पंक्तिबद्ध बैठ गए। बच्चे भाई साहब (सत्‍यार्थी जी) व भाभीजी (सुमेधा जी) के हाथों से बने ब्रेड-पकोड़ा खाने को बहुत उत्सुक थे। उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

घटना जिसने मुझे अचंभे में डाल दिया

सभी बच्चों को गरमा-गरम ब्रेड-पकौड़ा परोसा गया। सत्यार्थी दम्पत्ति के हाथों से बने ब्रैड-पकौड़ों को खाकर बच्चे व कर्मचारी बहुत खुश हुए। बच्चों ने पेट भरकर खाया।

मेरे लिए सत्यार्थी जी का यह रूप बिलकुल नया था। अभी तक मैंने सुना था कि वे बाल मजदूरों को मुक्त कराने, उनका पुनर्वास करने तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पीड़ित बच्चों की वकालत करने का काम करते हैं। मगर उनके उपरोक्त कार्य को देखकर मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। सत्यार्थी दम्पत्ति का मुक्‍त बाल मजदूरों को ब्रेड-पकौड़ा बनाकर खिलाने की घटना ने मुझे अचंभे में डाल दिया।

वैसे तो उनके बारे में मैंने ऐसे अनेक किस्से सुने हैं लेकिन वे खुद अपने हाथों से लगभग 100 बच्चों व कर्मचारियों का भोजन बनाकर खिलांएगे, ये बात मेरी कल्पना से बाहर थी।

(लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

 

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