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“जब प्रणब मुखर्जी प्रोटोकॉल तोड़कर, सत्यार्थी जी के साथ बच्चों के मार्च में शामिल हुए थे”

बात सन् 2015 की है, जब नोबल शांति पुरस्‍कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने बच्चों के लिए एक कार्यक्रम करने का विचार किया। इस कार्यक्रम में दुनियाभर के नोबेल विजेता तथा वैश्विक नेता शोषित बच्चों की आवाज़ बने। कार्यक्रम के बारे में तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी जी को जब पता चला, तब उन्‍होंने सत्‍यार्थी जी को राष्‍ट्रपति भवन में कार्यक्रम करने का प्रस्‍ताव दिया, जो वहां आयोजित भी हुआ।

बहुत कम लोग इस बात को भी जानते होंगे कि सत्यार्थी जी के अनुरोध पर नोबेल पुरस्‍कार वितरण समारोह में, एक कुर्सी इसलिए खाली रखी गई थी ताकि किसी बाल मज़दूर या शोषित बच्चे को उसपर बैठाकर उनकी एक प्रतीकात्‍मक उपस्थिति दर्ज कराई जा सके। सत्यार्थी जी की इस इच्छाशक्ति के सामने सभी को झुकना पड़ा।

मुक्त बाल मज़दूरों के लिए कार्यक्रम

सत्यार्थी जी ने नोबेल विजेता साथियों व वैश्विक नेताओं से उपरोक्त कार्यक्रम के बाबत बात की। तब कई ने पूछा कि कैलाश जी क्या हम सड़कों पर पैदल चलेंगे? यह कैसे हो सकता है? सत्यार्थी जी की इच्छाशक्ति के आगे फिर सभी को झुकना पड़ा और ज़्यादातर नोबेल विजेता उनके विचार से सहमत हो गए। सत्यार्थी ने उस कार्यक्रम का नाम ‘‘लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’’ रखा।

चूंकि बच्चों के लिए यह अपनी तरह का पहला कार्यक्रम था, इसलिए सत्यार्थी जी इस कार्यक्रम की तैयारियों में महत्वपूर्ण लोगों की राय भी ले रहे थे। उनके सामने यक्ष प्रश्‍न यह था कि कार्यक्रम किस देश में और कहां आयोजित किया जाए? कई लोगों का यह मंतव्‍य आया कि चूंकि यह पहला कार्यक्रम है और सत्यार्थी स्‍वयं इसके प्रणेता तथा आयोजक हैं, इसलिए ‘‘लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’’ सम्‍मेलन भारत में ही होना चाहिए।

राष्ट्रपति भवन में हुआ लॉरिएट्स एंड लीडर्स फ़ॉर चिल्ड्रन सम्मेलन

बहरहाल फिर बारी थी वह जगह तलाशने की जहां इसका आयोजन होना था। कार्यक्रम के आयोजन स्थान के लिए सत्यार्थी जी के सामने कई सुझाव आए, जिनमें पांच सितारा होटल और रिज़ॉर्ट आदि प्रमुख थे। गौरतलब है कि आयोजन में कई अति-विशिष्ट व्यक्तियों जैसे राजा-रानियों, पूर्व व वर्तमान राष्ट्राध्यक्षों तथा नोबेल विजेताओं के पधारने की संभावना थी। इसलिए यह तय किया गया कि कार्यक्रम को दिल्ली के किसी पांच सितारा होटल में किया जाए।

इसी दौरान एक दिन सत्यार्थी जी भारत के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंच गए। उल्‍लेखनीय है कि उनका मुखर्जी जी के राष्‍ट्रपति बनने से पहले से ही एक आत्‍मीय रिश्‍ता बना हुआ था। यह आत्‍मीयता तब और प्रगाढ़ हो गई थी जब उन्होंने अपना नोबेल पदक राष्‍ट्र के नाम समर्पित करते हुए राष्ट्रपति के नाते उन्हें सौंप दिया था। जो अब राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में रखा हुआ है।

सत्यार्थी जी समय-समय पर मुखर्जी जी से मिलने राष्ट्रपति भवन आते-जाते रहते थे। खैर, सत्यार्थी जी ने श्री मुखर्जी के साथ विस्तार से उपरोक्त कार्यक्रम की चर्चा की। मुखर्जी जी को जब इस कार्यक्रम के बारे में पता चला तो वे बहुत खुश हुए और कार्यक्रम के महत्व को देखते हुए, यह तय हुआ कि पहला लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन सम्‍मेलन राष्ट्रपति भवन में ही किया जाए।

श्री मुखर्जी ने कहा कि आयोजन के सभी मेहमान राष्ट्रपति भवन के अतिथि होंगे। इस तरह से 10 व 11 दिसंबर, 2016 में पहला लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन सम्‍मेलन राष्ट्रपति भवन में होना निश्चित हो गया।

सम्मेलन में विश्वप्रसिद्ध हस्तियों की मौजूदगी

भारत के इतिहास में यह पहला मौका था, जब कोई गैर-सरकारी कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में आयोजित हो रहा था। महामहिम राष्ट्रपति उस कार्यक्रम की मेज़बानी भी कर रहे थे।

खैर, निश्चित समय पर विश्‍व इतिहास का पहला लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन सम्‍मेलन राष्ट्रपति भवन में आरंभ हुआ। जिसमें विश्‍वप्रसिद्ध आध्‍यात्मिक नेता श्री दलाई लामा सहित दुनियाभर से 24 नोबेल विजेताओं व विश्‍वनेताओं ने शिरकत किया। खास बात यह थी कि एक काबिले तारीफ मेज़बान की तरह श्री मुखर्जी खुद भी मेहमानों का विशेष ख्‍याल रख रहे थे।

कार्यक्रम को राष्‍ट्रपति भवन के सभागार में प्रणब मुखर्जी, कैलाश सत्‍यार्थी और दलाई लामा समेत कई अन्‍य विशिष्‍ट अतिथियों ने संबोधित किया। वहां बाल अधिकारों पर काम करने वाले दुनियाभर के सैकड़ों विशेषज्ञ और कार्यक्रता की भी मौजूदगी थी।

सम्मेलन के दूसरे दिन समापन-सत्र में महामहिम राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में ‘‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’’ अभियान का उद्घाटन किया। इस अभियान के तहत 100 मिलियन शोषित बच्चों की ज़िम्मेदारी 100 मिलियन विशेषाधिकार प्राप्‍त नौजवान ले लिया था।

प्रोटोकॉल तोड़कर बच्चों के साथ मार्च में शामिल हुए राष्ट्रपति

अभियान में पूरी दुनिया से कई हज़ार युवाओं ने भाग लिया था। सभी युवा राष्ट्रपति भवन में दरबार हॉल के सामने वाले मैदान में एकत्रित हुए थे। गौरतलब है कि दरबार हॉल राष्ट्रपति भवन का एक ऐसा स्‍थान है, जहां पर प्रधानमंत्री व भारत के मुख्य न्‍यायाधीश को राष्ट्रपति शपथ दिलाते हैं।

दूसरी ओर श्री मुखर्जी की बच्‍चों के प्रति करुणा, दरियादिली और लगाव ही था कि उन्‍होंने अपने बराबर में मंच पर गुलामी से मुक्‍त एक पूर्व बाल मज़दूर को भी बिठाया था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह शायद पहली घटना होगी जब गुलामी से आज़ाद कोई बच्चा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति के साथ मंच साझा कर रहा था।

जब “100 मिलियन फॉर 100 मिलियन” अभियान की रैली का उद्घाटन हरी झंडी दिखाकर श्री मुखर्जी ने किया, तो हज़ारों युवाओं के साथ वह स्‍वयं भी प्रोटोकॉल तोड़कर रैली के साथ चले। इस अवसर पर उन्‍होंने यह साबित कर दिया कि उनके लिए बच्चे किसी भी प्रोटोकॉल से ऊपर हैं।

इन घटनाओं से पता चलता है कि श्री मुखर्जी चाहते थे कि आज के बच्चे कल के होनहार नागरिक बनें। जिससे देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हो। वे बच्चों और युवाओं में नेतृत्‍व का गुण विकसित होते हुए देखना चाहते थे और उसके लिए उनके दिल में करुणा और कर्तव्‍य के भाव हमेशा संचारित होते रहते थे।

(लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं)

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