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सालभर बाद भी कोरोना के खिलाफ हम एक बेहतर स्थिति में क्यों नहीं हैं?

कहते हैं जिस तन लागे वो ही जाने। कोरोना महामारी ने इस बात को सही साबित किया है और साथ ही यह भी सीखा दिया कि हमारे लिए कोई और नहीं लड़ेगा, कोई भी नहीं। साल 2020 बाद से लगतार देश और दुनिया जूझ रही है, हर रोज़ हर पल। इस महामारी ने न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक तौर पर भी हर एक इंसान को तोड़ा है। इंसान को इंसान से भय है, इससे बड़ा दुःख और क्या हो सकता है?

कोरोना के चलते दूसरी बीमारी वालों को अनदेखा किया गया

बीते वर्ष पूरी दुनिया तैयार नहीं थी कोरोना के लिए। तमाम पाबंदियों और सख्तियों के बावजूद लोग इस बीमारी की चपेट में आए और न जाने कितनों ने अपनी जान गंवाई। मैं फिलवक्त आंकड़ों की बात नहीं करूंगी, क्यूंकि क्या सही और क्या गलत है वो समझ से परे है। मगर ये बात कोई नहीं बदल सकता कि कोरोना से लड़ने के लिए हमारे देश की सरकार ने इस कदर कमर कसने की ठानी कि बाकी बिमारियों से जूझ रहे मरीजों को अनदेखा कर दिया।

कई ऐसे लोगों ने अपनी जान गंवाई है, जिनका बचना मुमकिन और इलाज संभव था। ऐसे मरीजों की गिनती कोई नहीं कर रहा। ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि मैं खुद भुक्तभोगी हूं। मेरे अंकल की जान इसलिए गई, क्योंकि आम मरीजों के लिए हॉस्पिटल में कोई जगह नहीं थी। ऑक्सीजन सिलिंडर कोरोना के मरीज़ों के लिए बचा कर रखे गए थे।

मेरे मुंह बोले भाई की जान डेंगू की वजह से गई, क्यूंकि उसे समय पर खून नहीं मिल पाया। ब्लड ग्रुप कोई रयेर नहीं था, जिसका मिलना नामुमकिन हो और ये दोनों ही केस बिहार की राजधानी पटना के हैं।

सालभर बाद भी हम एक बेहतर स्थिति में क्यों नहीं हैं?

मैं बस केंद्र और राज्य सरकार से बस ये जानना चाहती हूं कि अगर कोरोना जैसी बीमारी से लड़ने के लिए हम इतना ही कमर कस कर बैठे हैं, तो फिर क्यों आज तारीख 16 अप्रैल 2021 को कोरोना के मरीजों की संख्या हर दिन 2 लाख से ऊपर है?

क्यों कोरोना के मरीज़ों के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी हो गई है? क्यों अस्पतालों में बेड की कमी है? क्यों कोवैक्सीन की कमी हो गयी है? क्यों सरकार ने कुम्भ जैसे बड़े आयोजन की छूट दे रखी है? क्यों बीते साल बिहार में चुनावी रैलियों का आयोजन हुआ और इस साल भी कई राज्यों में चुनावी रैलियां हो रही हैं?

सरकार के साथ दोषी आम जनता भी है, जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान भी कोरोना से जुड़ी गाइडलाइंस और प्रीकॉशन्स को फॉलो नहीं किया। आज जब हम न्यू नॉर्मल लाइफ की ओर लौटने की कोशिश में जुटे हैं, तब भी इसे फॉलो नहीं कर रहे। सरकार और जनता दोनों की लापरवाही साफ दिख रही है। मीडिया में सब एक दूसरे का छीछालेदर करने में लगे हैं। आंकड़े समझ से परे हैं। सच-झूठ सब समझ से परे है।

क्या चुनाव और आस्था लोगों की जान से बड़ी है?

2020 में कोरोना के लिए देश तैयार नहीं था पर अब क्या? सालभर बाद भी हम तैयार क्यों नहीं हैं? सरकार ने व्यवस्थाएं क्यों नहीं की? कोरोना के साथ आम बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की जिम्मेदारी कौन लेगा? भारत में मौजूद कोरोना की वैक्सीन क्या रामबाण है? इसके लगते ही क्या इंसान अमर हो जाएंगे? जवाब हम सब के सामने है। वैक्सीन लगने के बाद भी कई लोग कोरोना की चपेट में आ हैं।

इस बात में कोई शक नहीं कि सरकार ने हमसे उन आंकड़ों को नहीं छुपाया है। मुझे हर उस इंसान से जवाब चाहिए जो अंधभक्त बने बैठे हैं। हर उस इंसान से जवाब चाहिए जिनके लिए धर्म और आस्था इंसान की जान से ज़्यादा बड़ी है। क्यों मास्क, सैनिटाइज़र और सामजिक दूरी का पालन करना इतना मुश्किल है?

जो निचले तबके के लोग अब तक संभाले भी नहीं थे, उन्हें वापस क्यों बेरोज़गारी की गर्त में धकेलने को हम आमादा हैं? केंद्र और मेरे राज्य बिहार में बैठी सरकार की जबावदेही क्या है? मुझे जानना है। ये झूठे वादों और दावों का नंगा नाच कब खत्म होगा? मुझे सब जानना है।

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