टाइटल
- 1948 में इज़राईल-फिलिस्तीन विभाजन और इतिहास।
- क्या आप जानते हैं, 11 दिन चले इज़राईल-फिलिस्तीन संघर्ष की जड़ें कहां है?
दो देश जिन पर सम्पूर्ण विश्व दो भागो में बंटा हुआ है। इज़राइल व फिलिस्तीन वैसे ही हैं, जैसे भारत और पाकिस्तान! क्योंकि 1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ और उसके बाद से अब तक दोनों देशो में तनाव बना हुआ है।
ठीक वैसे ही इज़राइल और फिलिस्तीन के 1948 में विभाजन के बाद इसी प्रकार से तनाव बना हुआ है। इस वक़्त पूरे विश्व की नज़र इज़राइल व फिलिस्तीन पर है। यह लड़ाई कोई नई बात नहीं है, सालो पुराना संघर्ष जो चला आ रहा है। यह कई सालों पुराना है।
1948 में हुआ था इज़राईल-फिलिस्तीन का विभाजन
यह लड़ाई शुरू होती है ईसाई और यहूदी धर्म को लेकर। ईसाइयों का कहना था कि यहूदी उनके बच्चो को मारते हैं। उस वक़्त यहूदियो को जितना अपमान सहना पड़ा, उन्हें जितनी घृणा का शिकार होना पड़ा, शायद वह किसी दूसरे देश को कभी नहीं।
उस दौर से पूरे विश्व के यहूदियो को यह एहसास हुआ की हमें एक अपना यहूदी देश बनाने की ज़रूरत है, वरना ऐसे हमें कोई नहीं स्वीकारेगा। यहां से शुरू हुई एक देश की विचारधारा की लड़ाई।
उस वक़्त के एक आस्ट्रियाई-हंगरियाई पत्रकार थियोडोर हर्ज़्ल इन्होंने अपने 1896 के एक पेम्पलेट में कहा था कि यहूदियो को एक अलग देश मिलना चाहिए। हालांकि यह कोई नई बात नहीं थी। इन विचारों को 1870 के करीब से ही पूरा समर्थन मिल रहा था।
यहूदियों ने जेरूसलम के चलते चुना था फिलिस्तीन को
1881 में पहली बार भारी संख्या में यहूदियो का प्रवास शुरू हुआ। कई यहूदी फिलिस्तीन इलाके में जाकर रहने लगे और अपने आपको स्थाई निवासी बताने लगे। यहूदियो ने फिलिस्तीनी एरिया इसलिए चुना,
क्योंकि वहां जेरुसलम उनका पवित्र स्थल माना जाता है। उस वक्त पूरा फिलिस्तीन व उसके आस पास का क्षेत्र उस्मानी साम्राज्य के कब्ज़े में था, जहां पर यहूदी, मुस्लिम व ईसाई शांतिपूर्वक रहते थे।
प्रथम विश्वयुद्ध और ब्रिटिश का सम्राज्यवाद
अब वक़्त आता है 1915 का जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था।
ब्रिटिश, यहूदी और अरबी उस्मानी साम्राज्य के खिलाफ जंग लड़ रहे थे। अब यहां ब्रिटिश एक खेल खेलते हैं, जिसमें वह अरब को कहता है कि तुम उस्मानी साम्राज्य के खिलाफ लड़ने में हमारी मदद करो।
हम तुम्हें एक अपना अरब साम्राज्य विस्तार करने में मदद करेंगे। अरब देश चाहते थे कि उनका एक सयुंक्त अरब बने जिसमें सीरिया से लेकर यमन तक उनका शासन हो।
वहीं दूसरी और ब्रिटिशर्स यहूदियो को एक प्रस्ताव देते है कि तुम इस जंग में हमारी सहायता करो, हम तुम्हें एक यहूदी राष्ट्र बनाने में सहायता करेंगे। फिलिस्तीन के पास। उसके बाद ब्रिटिश ने फ्रांस के साथ एक समझौता कर लिया,
जैसे ही उस्मानी साम्राज्य प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हारा, तभी युद्ध समाप्त होने तक ब्रिटिश-फ्रांस समझौते के तहत मिडिल ईस्ट इलाके को फ्रांस व ब्रिटिश ने बांट लिया, जिसमें पूरा फिलिस्तीन वाला इलाक़ा ब्रिटिश ने अपने अधिकार में ले लिया।
1918 से 1948 तक पूरा फिलिस्तीनी एरिया ब्रिटिश के कब्ज़े में रहा। उसी समय जर्मनी में एडोल्फ हिटलर को राजनीतिक सत्ता मिलती है। उसके बाद से वहां लाखों की संख्या में यहूदियो को मारा जाता है।
हिटलर द्वारा यहूदियो का नरसंहार
उस वक़्त जहां-जहां तक हिटलर का नियंत्रण था, वहां से यहूदी अपनी जान बचाकर अलग-अलग देशो में भागने लगे। कुछ को अमेरिका में शरण मिल जाती है, तो वहीं बड़ी मात्रा में यहूदी फिलिस्तीनी सीमा में चले जाते हैं।
शुरुआत में अंग्रेज सरकार उन्हें आने देती है लेकिन कुछ वक़्त बाद ब्रिटिश उन्हें प्रवेश से रोकने लगते हैं। चारो तरफ़ से परेशान यहूदियो में इसी समय से एक अलग राष्ट्र की प्रबल विचारधारा का उदय होता है। सभी यहूदी अपने अलग देश की मांग को तेज़ कर देते हैं और यहीं से शुरू होता है इजरायली नेशलिज़्म।
इजरायली-फिलिस्तीन और UNO
वहीं दूसरी और मूल फिलिस्तीनी अपने स्वतंत्र देश की मांग शुरू कर देते हैं। दोनों ही पंथ या विचारधारा के लोग यहूदी और अरबी मुस्लिम अपने-अपने देश की मांग को लेकर ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं। वहीं 1948 आते-आते अंग्रेज समझ जाते हैं कि अब इनको रोकना मुश्किल होगा।
तभी अंग्रेज़ यह निर्णय लेते हैं कि अब हम जा रहे हैं और यहूदियो व मुस्लिमो को अपना-अपना देश बना लेना चाहिए। भारत-पकिस्तान विभाजन की तरह ही अंग्रेज़ो ने इज़राइल-फिलिस्तीन विभाजन करवाया और इस विभाजन की जिम्मेदारी दी सयुंक्त राष्ट्र संगठन (UNO) को
उस वक़्त जहां-जहां तक हिटलर का नियंत्रण था, वहां से यहूदी अपनी जान बचाकर अलग-अलग देशो में भागने लगे। कुछ को अमेरिका में शरण मिल जाती है, तो वहीं बड़ी मात्रा में यहूदी फिलिस्तीनी सीमा में चले जाते हैं।
यहूदी-अरबी मुस्लिम विचारधारा की टकराहट
शुरुआत में अंग्रेज सरकार उन्हें आने देती है, लेकिन कुछ वक़्त बाद ब्रिटिश उन्हें प्रवेश से रोकने लगते हैं। चारो तरफ़ से परेशान यहूदियो में इसी समय से एक अलग राष्ट्र की प्रबल विचारधारा का उदय होता है। सभी यहूदी अपने अलग देश की मांग को तेज़ कर देते हैं और यहीं से शुरू होता है इजरायली नेशलिज़्म।
वहीं दूसरी और मूल फिलिस्तीनी अपने स्वतंत्र देश की मांग शुरू कर देते हैं। दोनों ही पंथ या विचारधारा के लोग यहूदी और अरबी मुस्लिम अपने-अपने देश की मांग को लेकर ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं। वहीं 1948 आते-आते अंग्रेज समझ जाते हैं कि अब इनको रोकना मुश्किल होगा।
तभी अंग्रेज़ यह निर्णय लेते हैं कि अब हम जा रहे हैं और यहूदियो व मुस्लिमो को अपना-अपना देश बना लेना चाहिए। भारत-पकिस्तान विभाजन की तरह ही अंग्रेज़ो ने इज़राइल-फिलिस्तीन विभाजन करवाया और इस विभाजन की जिम्मेदारी दी सयुंक्त राष्ट्र संगठन (UNO) को।
UNO का जेरूसलम पर कब्ज़ा, इज़राइल की जीत
अब 1947 में सयुंक्त राष्ट्र संगठन ने अपना एक पार्टीशन प्लान दिया इस विभाजन प्लान के तहत U.N.O ने इज़राइल को पूरे क्षेत्र का 44% भू-भाग दिया तथा फिलिस्तीन को 48 % हिस्सा दिया। यहां संयुक्त राष्ट्र संगठन ने 8 %, जो कि जेरुसलम यानी उस पूरे क्षेत्र का मुख्य केंद्र माना जाता है, उसे रखा अपने कब्ज़े में।
अब यहां सभी अरब देश इस विभाजन के खिलाफ थे, हालांकि ये दोनों देश इस 8 % हिस्से को अंग्रेज़ों के कब्ज़े में रखने के खिलाफ थे लेकिन वहीं दूसरी और सभी अरब देश इज़राइल निर्माण के विरोध में,
इसी विरोध को लेकर सभी देशो ने इज़राइल पर हमला कर दिया,उस वक़्त इज़राइल नें सभी देशो को परास्त किया, क्योंकि अरब देश लड़ रहे थे जीतने के लिए, लेकिन इज़राइल लड़ रहा था अपने अस्तित्व को बचाने के लिए।
संयुक्त राष्ट्र संगठन ने जेरुसलम को अपने पास रखा, क्योंकि यहां मुसलमानों का भी पवित्र स्थल है और यहूदियो का भी।
1949-1967 दूसरा इज़राईल युद्ध, फिलिस्तीन पर कब्ज़ा
सन 1948 से लेकर 1967 तक कई बार दोनों देशो के बीच झड़प हुई, जिसमें इज़राइल ने 1949 में फिलिस्तीन के कई इलाको पर कब्ज़ा कर लिया, इसी बीच गाज़ा पट्टी का एरिया ईजिप्ट में शरण लेनी पड़ी।
सन 1967 में दूसरी बार अरब इज़राइल युद्ध हुआ। यह युद्ध 6 दिन चला इसे भी इज़राइल जीत लेता है। इस युद्ध में इज़राइल ने गाजा पट्टी वेस्ट बैंक और साथ ही साथ मिस्त्र के बहुत से हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया।
लगातार हो रहे अपने पतन से फिलिस्तीनीयो को एक सुरक्षित देश की आवश्यकता महसूस हुई तब यहां शुरुआत होती है 1964 में P.L.O की जिसका पूरा नाम फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन था। P.L.O की जिसका पूरा नाम फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन था।
इज़राईल समेत कई देशों ने PLO को आतंकवादी संगठन माना
इस संगठन ने शुरुआत में हथियार बंद कार्यवाही की शुरुआत की इसलिए अमेरिका व इज़राइल ने इसे आतंकवादी संस्था घोषित कर दिया। इसके बाद 1973 में तीसरा अरब-इज़राइल युद्ध हुआ, जिसमें ना तो कुछ बदलाव हुआ ना कुछ निष्कर्ष निकला?
सन 1974 आते-आते फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को आधिकारिक मान्यता मिल जाती है। यूनाइटेड नेशन की जनरल असेम्बली के द्वारा यह कहकर की यह फिलिस्तीनीयो के रिप्रेजेंटेटिव हैं। कुछ समय पश्चात 1979 में मिस्त्र और इज़राइल के कुछ अच्छे सम्बंध बन जाते है और मिस्र पहला देश बन जाता है इज़राइल को आधिकारिक मान्यता देने वाला।
मिस्र के प्रधानमंत्री का हटना और इज़रायल समझौता
मिस्त्र कहता है कि इज़राइल एक देश है और इसकी अपनी सीमा है। इन्हीं सम्बंधो के चलते इज़राइल मिस्त्र को वह ज़मीन वापस कर देता है, जो उसने ले ली थी और इसी के चलते कुछ समय बाद मिस्र में राइट विंग के लोगों व राजनीतिक पार्टियों द्वारा मिस्र के प्रधानमंत्री को हटा दिया जाता है, यह कहकर की इज़राइल के साथ समझौता क्यों किया?
वहीं सन 1967 से 1980 के बीच कई इज़रायली वेस्ट बैंक में जाकर बस जाते हैं। इज़रायली सरकार भी उन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है। लाखो इज़राइली वेस्ट बैंक में आकर बस जाते है। कई इज़राइलियों का मानना है कि पूरा वेस्ट बैंक उनका है
लेकिन इस सेटलमेंट का इंटरनेशनल कम्युनिटी अब विरोध करने लगी थी उनका कहना है कि ये संयुक्त राष्ट्र संघठन के विभाजन प्लान के खिलाफ है। सन 1992 में इज़राइल में यित्झाक राबिन प्रधानमंत्री बने, इन्होंने पहली बार कहा की P.L.O कोई आतंकवादी संगठन नहीं है। वह तो बस अपना देश चाहते हैं और हमें उनको उनका देश दे देना चाहिए।
तभी इज़राइल फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को अपनी ओर से आधिकारिक मान्यता दे देता है तथा फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन भी इज़राइल को एक देश मानने लगता है। यहां शुरू होते है दोनों देशो के अच्छे सम्बंध सन 1993 में। आपसी सम्बंध को लेकर एक कार्यक्रम में दोनों देश साथ आते हैं।
इज़राइल व फिलिस्तीन प्रधानमंत्री ,एक कार्यक्रम के दौरानऔर यह निर्णय करते हैं कि कैसे दोनों देशो के मध्य बँटवारा हो, जिससे ये संघर्ष बंद हो और स्वतंत्र फिलिस्तीन का निर्माण हो।
फिलिस्तीन राष्ट्रीय समिति और वेस्ट बैंक
उसके बाद पहली बार 1994 में फिलिस्तीन सरकार बनती है, जिसे नाम दिया जाता है फिलिस्तीन राष्ट्रीय समिति लेकिन 1994 आते-आते वेस्ट बैंक के एरिये में बहुत से इज़राइलियों ने अपने घर व कॉलोनियां वहां बसा ली थी।
उस जगह फिलिस्तीनी बहुत कम थे, कुछ गिने चुने रहते थे वह भी टुकड़ो-टुकड़ो में। फिर तात्कालिक सरकारें निर्णय लेती है कि वेस्ट बैंक के एरिये को तीन भागो में विभाजित किया जाएगा। एरिया 1 जिस पर फिलिस्तीन की सरकार अपना नियंत्रण रखेगी। एरिया 2 पर दोनों सरकारो का सामंजस्य रहेगा व एरिया 3 पर इज़राइली सरकार का कंट्रोल रहेगा।
1994 फिलिस्तीन का मिलना और नोबल पुरुस्कार
1994 में फिलिस्तीन को कुछ गिने चुने क्षेत्र मिल जाते हैं, जिससे वह अपना देश बना सके 19934 में ही दोनों देशो को शांति स्थापना के लिए नोबल पृरुस्कार भी मिलता है, लेकिन कुछ समय बाद इज़राइल में तात्कालिक प्रधानमंत्री का कुछ यहूदियो तथा विपक्षी दलों द्वारा विरोध किया जाता है, क्योंकि वे चाहते थे की पूरा जेरुसलम उनके कब्जे में आए।
वे इस शांति से सहमत नहीं थे उसी वक़्त एक यहूदी ने यित्जाक रॉबिन को 1995 में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। वहीं दूसरी और लगभग 5 साल पहले सन 1987 में फिलिस्तीन में भी बग़ावत की आवाज़ उठी वहां के कट्टर पंथियों ने कहा की फिलिस्तीन मुक्ति संघर्ष वाले ज़्यादा ही सेकुलर बनते है, हमें यह समझौता बिल्कुल स्वीकार नहीं।
कट्टरपंथ विचारधारा! हमास
उन्होंने 1987 में कट्टरपंथी विचारधारा वाले अपना एक अलग संगठन बनाया, जिसका नाम था हमास! यहां समझने वाली बात यह है कि एक तरफ़ यहूदी कट्टर लोगों का विद्रोह, वहीं दूसरी तरफ हमास जैसे संगठन का गठित होना। हमास, फिलिस्तीन में ना सिर्फ़ 1996 के चुनाव का बहिष्कार करता है, बल्कि इज़राइल में बमबारी भी करवाता है, जिसमें 25 से ज़्यादा इज़राईली मारे जाते है व अधिक संख्या में घायल हो जाते हैं।
उसके बाद से ही इज़राइल-फिलिस्तीन में भयानक दुश्मनी हो जाती है। कुछ पहले से थी ही औऱ कुछ हमास की पहल ने बड़ा दी थी। इसके बाद सन 2002 में एक झड़प फिर होती है जिसमें दोनों देशों के 100 से ज़्यादा व्यक्ति मारे जाते हैं।
फिलिस्तीन का हमास 2006 का चुनाव लड़ता है और जीत जाता है और यहां फ़तह पार्टी की हार हो जाती है। आगे चलकर 2007 में दोनों ही पार्टियों के समर्थक आपस में लड़ते हैं। देश में गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर देते है।
बेटल ऑफ गाज़ा
यहां पर फिलिस्तीन दो हिस्सों में बंट जाता है, जिसे बेटल ऑफ गाज़ा भी कहा जाता है। गाज़ा पट्टी वाला हिस्सा हमास के पास रहता है और जो फतह पार्टी थी, उसे वेस्ट बैंक वाला हिस्सा मिल जाता है।
दोनों में फर्क इतना था कि फतह पार्टी अपना शासन सुव्यवस्थित चला रही थी व हमास एक आतंकवादियो की तरह देश चला रहा था। अगर बात करें इस वर्तमान खूनी संघर्ष की तो ये जितना भी विवाद हो रहा है इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है।
अगर आप फिलिस्तीन का नक़्शा देखेंगे तो कहेंगे ये किस तरह का विभाजन हुआ था। अगर बात करें वर्तमान गाज़ा पट्टी की तो वहां फिलिस्तीनी सरकार का नियंत्रण नहीं है बल्कि वहां हमास का नियंत्रण है।
पूरा विश्व हमास को लेकर तीन भागों में बंटा हुआ है। पहला भाग जिसमें अमेरिका, इज़राइल, यूरोपियन यूनियन, जापान जैसे देश हैं, वे मानते हैं कि हमास एक पूर्ण आतंकवादी संगठन है। वहीं, दूसरी और कुछ देश हमास के सिर्फ एक भाग को आतंकवादी भाग मानते है, जिनमें यूनाइटेड किंगडम व ऑस्ट्रेलिया जैसे देश आते है।
वहीं तीसरा भाग जिसमें चीन, टर्की, ईरान जैसे देश मानते हैं कि हमास बिल्कुल भी आतंकवादी नहीं हैं। वह एक राजनीतिक संगठन है।
7 मई से शुरू हुआ संघर्ष
गाज़ा पट्टी के आस पास पूरे क्षेत्र में सभी देशो नें गाज़ा का आर्थिक बहिष्कार कर रखा है, जिसकी वज़ह से वहां की बेरोज़गारी दर सबसे ज़्यादा हैं। हाल ही में 7 मई 2021 को कुछ फिलिस्तीनी अपने -अपने घरों के लिए प्रोटेस्ट कर रहे थे, तभी वहां उन्ही के द्वारा पथराव होता है, इस दौरान इज़राईली पुलिस ने स्थिति नियंत्रण में करने की पूरी कोशिश की जिसमें कई लोग घायल हुए।
10 मई की बात है दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मस्ज़िद अल-अक्सा मस्जिद में वहां के कुछ मुस्लिम प्रार्थना के लिए एकत्रित हो रहे थे तभी इजराइल पुलिस वहां जाती है और इज़राइल पुलिस और जनता में झड़प हो जाती है, जिसमें कई फिलिस्तीनी घायल हो जाते हैं।
हालांकि इज़राइल पुलिस कहती है कि उन्हें ख़बर मिली थी की मस्जिद में कुछ लोग पत्थर इकठ्ठे कर रहे थे, उन लोगों पर फेंकने के लिए जो अपने लिए प्रोटेस्ट के लिए रैलियां निकाल रहे थे। झड़प के बाद मस्ज़िद वाली घटना सुनकर हमास ग्रुप इज़राइल सरकार को एक अल्टीमेटम देता है और कहता है कि इज़राइल सरकार तुरंत मस्ज़िद से पुलिस हटा लें वर्ना हमास इज़राइल पर हमला बोल देगा, उस अल्टीमेटम के बाद गाज़ा पट्टी से इज़राइल पर कई हवाई हमले हुए तथा इज़राइल नें भी जवाबी कार्यवाही में गाज़ा में हज़ारों हवाई हमले किए।
नेतन्याहू ने ठुकराया बाईडेन का प्रस्ताव
इंडिया टुडे के अनुसार भारी पब्लिक प्रेशर के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने इज़रायली प्रधानमंत्री नेतनयाहू को गाजा पर हमले को कम करने को कहा था, जिसे नेतन्याहू ने यह कहकर ठुकरा दिया कि ऑपरेशन तब तक चलता रहेगा, जब तक कि वह लक्ष्य नहीं पा लेता
लेकिन अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में इज़राइल के पक्ष में वीटो करने की अपनी पुरानी रणनीति में बदलाव नहीं किया है। जबकि भारत के द्वारा फिलिस्तीन मुद्दे पर अपने दशकों पुराने स्टैंड पर क़ायम रहते हुए UNSC में इज़रायल के खिलाफ वोट करने के बाद भी भारत में उसे राइट विंग की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
11 दिनों तक दोनों देशों में चले खूनी संघर्ष थमा
इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच आखिरकार संघर्ष विराम पर सहमति बन गई है। करीब 11 दिनों तक दोनों देशों में चले खूनी खेल के बाद सीज़फायर की घोषणा पूरी दुनिया के लिए राहत की बात है, क्योंकि इस लड़ाई के विश्व युद्ध में बदलने की आशंका लगातार तेज होती जा रही थी। इज़रायली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के सुरक्षा मंत्रिमंडल ने गाज़ा पट्टी में 11 दिनों के सैन्य अभियान को रोकने के लिए संघर्ष विराम को मंजूरी दे दी है।
हमास के एक अधिकारी ने भी सीज़ फायर की पुष्टि की है, उन्होंने बताया कि यह संघर्ष विराम शुक्रवार तड़के 2 बजे से प्रभावी हो गया है। दो देशों की इस जंग में तुर्की, रूस और अमेरिका की प्रत्यक्ष एंट्री की संभावना काफ़ी बढ़ गई है, जिसकी वज़ह से माना जा रहा था कि ये जंग वर्ल्ड वॉर का रूप ले सकती है। हाल ही में लेबनान की तरफ से भी इज़रायल पर रॉकेट हमला किया गया था।
न्यूज़ एजेंसी ANI के अनुसार इस 11 दिवसीय युद्ध में 227 फिलिस्तीनी व 11 इज़राइल मारे गए।