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आदि शंकराचार्य आज और कल

एक तस्वीर जो आज वायरल हो रही है जिसमें आदिशंकराचार्य महाभाग को जन्म जयंती पर उन्हें 2528 वर्ष पहले जन्मा बताया गया है।

 

 

केरल में जन्मे आदि शंकराचार्य को केवल धार्मिक नेता या वेदांत के अद्वैत मत का प्रतिपादक कहना उनके व्यक्तित्व को केवल धार्मिक खोखे तक महदूद करना ही होगा।ये दीगर मासला है कि उनके द्वारा स्थापित चतुष्पीठ अब राजनैतिक और जातीय अखाड़ों के रूप में परिणत हो गये हैं,और आश्चर्य की बात तो ये है की चारों पीठों में उनके जन्म और मृत्यु के काल को लेकर भारी मतभेद है।जबकि इतिहासकारों का अपना अलग ही राग है अब थोड़ा पढ़ने लिखने वाले लोग इन पाँच – पाँच रागों के उबाऊँ सुर से ऊब कर केवल उनके ग्रंथों की ओर अपना ध्यान केंद्रित किये हुये है वैसे भी साधारण जनता को ये जन्मकाल आदि से कोई ज़्यादा मतलब कभी नही रहा है। यदि वो २५२८ वर्ष पहले हुये तो बौद्धों से बौद्धिक संघर्ष क्या कोरी कल्पना है?और यदि ८०० वर्ष पहले हुए तो उनके द्वारा स्थापित पीठों ने ऐसी भ्रामक स्थिति क्यूँ बनायी? ख़ैर,महापुरुषों  को आदर देने वाला समाज आज भी आदर दे रहा है और उनके सैद्धान्तिक विचारों को अपने जीवन में अनुकरण-अनुसरण करने का प्रयास कर रहा है।
जगद्गुरु शंकराचार्य महाभाग ने केवल अपनी वैचारिक द्वंदता बौद्धों के साथ नहीं दिखायी,उनका वैचारिक मतभेद कौल,कापालिक और हिंसा आधारित संप्रदायों से भी रहा और उसे उपशमित करने के लिए शास्त्रार्थ आदि करने का श्रेय उन्हें जाता है।दक्षिण भारत के गाँव में जन्म लेने वाले आचार्य शंकर मिथिला के वीथियों में घूम रहें हैं और शास्त्रार्थ करने को और कुछ नया सीखने को प्रतिबद्ध हैं,मंडन मिश्र की पत्नी जब काम कला के बारे में पूछती हैं तो निरुत्तर आचार्य रूढ़ नही होते अपितु अनुभव प्राप्त के पश्चात् पुनः शास्त्रार्थ करने की आज्ञा लेते हैं।
काशी के घाट पर शूद्र के साथ बहस और तत्पश्चात् भगवान शंकर का दर्शन देना ये कथानक उनके द्वारा स्थापित पीठों के वर्तमान आचार्यों के लिये आज भी प्रासंगिक होना चाहिये।द्वारका-शारदा द्वय पीठ के वर्तमान आचार्य के प्रतिनिधि जी एक दिन अपने छात्र जीवन की घटना को कुछ लोगों को बता रहे थे :-
वाराणसीस्थ सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वे छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद के लिये कुछ मित्रों के कहा-सुनी पर उम्मीदवार हुये,और वोट माँगने के क्रम में एक हरिजन के यहाँ गये जो दूर से ही देख प्रेम वश जल आदि की व्यवस्था करने लगा;जिसे देख शंकराचार्य के शिष्य ने कहा कि भैया मैं तुम्हारे यहाँ का जल पानी नही कर सकता,ये मेरे परम्परा के प्रतिकूल है,और भैया वोट के लिये आये हैं ज़रा देख लेना।

जब अपने को ज़्यादा प्रबुद्ध दिखाने की होड़ हो तो कौन पीछे रहे,गोवर्द्धन पीठ के शंकराचार्य तो यहाँ तक कह गये कि शूद्र जिस दिन से मंदिरों में दर्शनार्थ जाना बंद कर देंगे उस दिन ही भारत विश्वगुरु बनने की ओर पहला कदम रखेगा और जल्द बन भी जायेगा।आश्चर्य तो तब होता है जब ब्राह्मण और शूद्र की परिभाषा जन्म से करते हैं न कि कर्म से।

विडम्बना ही है कि ‘आदि शंकराचार्य’ जी ने जिन चतुष्पीठों की स्थापना लोक जीवन में परम्पराओं,मूल्यों और धर्म की महत्ता का महत्व जागृत करने के लिए किया था, आज उन पीठों के आचार्यों की  तुलना केवल शहरी ‘अभिजात्य’से या ‘मोटिवेशनल स्पीकर’से किया जाये तो ग़लत नही होगा।

जिस महापुरुष को काशी के घाट पर एक शूद्र द्वारा अहं का उपशमन हो उसके अनुयायी इस प्रकार की बेहूदी बातें करें तो क्या कहा जाये?जिस आचार्य महाभाग ने पूरे भारत का पैदल भ्रमण कर लोकचेतना में वैदिक सिद्धांत की पुनर्स्थापना की हो उनके द्वारा स्थापित पीठ के संरक्षण वाले क्षेत्र में सर्वाधिक मतान्तरण हो तो,क्या कहा जाये?नेपाल का आलम देखिये,भूटान,वर्मा,बांग्लादेश और भारत के पूर्वोतर के राज्य,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल और झारखंड जिन महानुभाव का परिक्षेत्र है,उन्होंने ही ये गर्वीला बयान देके अपने को ब्राह्मणश्रेष्ठ कहलाने का पदक लिया।
एक बात यहाँ आपको बताना चाहता हूँ कि “शंकराचार्य महाभाग” काशी आये थे और कहाँ रुके इसे भी गौण रखा गया।काशी में गंगा किनारे केदार खंड में ही शिवाला घाट पर एक प्राचीन मठ है जिसे “राजगुरु मठ” के नाम से जाना जाता है।मैं काशीस्थ दशनामीयों के कई प्रमुख सन्यासियों और विद्वानो से इस विषय पर चर्चा की जिसका परिणाम निकाला की आदि जगद्गुरु जब काशी आये थे तो राजगुरु मठ ही तत्कालीन समय में उनके आवास था, और वहीं से धर्मध्वजा को चहुंओर फहराने का कार्य किया।

आज आदि जगद्गुरु भगवान शंकराचार्य का जन्म जयंती है हम उन्हें नमन करते हुये आपसे ये अपेक्षा रखते हैं कि आप उनके व्यक्तित्व को किसी जातीय बक्से में न बांधे वो लोक के हैं,चाहे लाख कोशिश हो उनके जन्म,कार्यक्षेत्र और स्थापित मठों को अपने हिसाब से गढ़ने की हम लोकचेतना में उनके व्यक्तिव-कृतित्व को बनाये रखेंगे।

आदि जगद्गुरु श्रीमत्शंकराचार्य महाभाग

शंकरं शंकराचार्यं केशवं बादरायणं ।
सूत्रभाष्यकृतौ वन्दे भगवन्तौ पुनः पुनः ।।

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