एक बार फिर मैं हमेशा कि तरह ट्विटर स्क्रॉल कर रही थी और अचानक मेरे हाथ एक ऐसी तस्वीर लगी जिसे देखकर मैं स्तब्ध हो गई, सहसा रुक सी गई। ये तस्वीर थी एक आठ साल की बच्ची की। दरअसल, इस बच्ची का विवाह कर दिया गया है एक 28 साल के युवक से। फोटो थी बिहार की और बच्ची थी नाबालिग। इस तस्वीर को सुबह से सैकड़ों बार देख चुकी हूं समझने की हर नाकाम कोशिश कर रही हूं कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जो बच्ची के मां-बांप ने ऐसा कदम लिया होगा?
इस तस्वीर में मासूम सी बच्ची जैसा कि बिहार में होता है लंबा सा सिंदूर लगाए दिख रही है उसने हाथ में पर्स ले रखा है और सहमी सी अपने पति के बगल में बैठी है। बहुत सोचने पर भी मैं ये समझ नहीं पाई कि आखिर जब शादी की रस्में अदा की जा रही होंगी तो उस बच्ची को कैसा लग रहा होगा, उसके दिमाग में क्या चल रहा होगा, वो क्या सोच रही होगी। यकीनन उसे तो ये गुड्डे-गुड़ियों के खेल की तरह लग रहा होगा, उसे तो ये भी नहीं पता होगा ना कि अब उसका एक पति है जो उम्र में उससे 20 साल बड़ा है। ये कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि उसे ये 28 साल का युवक अपने भाई या चाचा सा लग रहा होगा।
तस्वीर वायरल होने के बाद ट्विटर पर कई लोगों को लिखते देखा कि ये बिहार सरकार यानी नितीश सरकार की नाकामी है। मेरा मानना है कि अगर आजादी के 70 साल बाद भी ऐसा कुछ हो रहा है तो समाज के तौर पर ये नितीश सरकार के साथ-साथ मेरी, हमारी, इस देश के हर नागरिक की 135 करोड़ लोगों की नाकामी है! ऐसे में अब हमारे देश के नेताओं को लड़कियों की रिप्ड जीन्स के अंदर उनके घुटने झांकने के बजाय उनके मौलिक अधिकारों पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है। साथ-साथ हिंदुत्व और बेटी बचाओ के नारों से भी काम होने वाला नहीं है इसके लिए राष्ट्रवादी नेताओं को जमीनी सच्चाई का आभास भी अनिवार्य हो चला है।
इसके अलावा ट्विटर पर एक बड़ा तबका ये भी कह रहा है कि बच्ची के मां-बाप की जरूर ही कोई बड़ी मजबूरी रही होगी जिसके चलते उन्होंने इतना बड़ा कदम लिया होगा। हालांकि मैं इस तबके की इस बात से किसी भी तरह का इत्तेफाक नहीं रखती! किसी भी मां-बाप की इतनी बड़ी कोई मजबूरी नहीं हो सकती कि वो अपनी बेटी को ही ‘बेच’ डाले। ‘बेटी है वो कोई खिलौना नहीं, अगर पाल नहीं सकते तो पैदा ही क्यों करते हो’
मैं बस आशा करती हूं कि ये फूल सी बच्ची अपना बचपन जी पाए जिसकी ये हकदार है मेरी और आप सबकी तरह!