बचपन में सुना था कहीं
इश्क़ कोई आग का दर्या है
अब तो आग में भी लाशें हैं और दर्या में भी
क्या मौत से ही इश्क़ हो गया है?
किसी अपने के गुज़रने के बाद
हलक़ेसे छलकनेवाली नीलीसी आँखे
आजकल तो इनमेंसे आँसू नहीं बहते
ज़िन्दा लाशें क़भी रोतीं हैं भला?
ऑक्सिजन सिलिंडर में क़ैद एक जीनी
सबके नसीब में शायद होता ही नहीं
उसे पाने के लिए अलादिन बनना पड़ता है
या ये सब सिर्फ़ कहानियों में होता है?
सोचता हूँ… एक डाक्टर हूँ
मरीज़ों को बचाते बचाते
जिस दिन मुझे कुछ हो जाएगा
तो मुझे कहाँ जगह मिलेगी?
सारे अस्पताल तो भरे पड़े हैं
लाशें जलाने के लिए पेड़ कट रहें हैं
उसी जगह लोग दफ़नायें जा रहे हैं
अब तो पानी में भी जगह नहीं है
सुना है राजधानी में बड़ी इमारत बन रही है
कोई ‘ अत्यावश्यक सेवा’ होगी ज़रूर
चलो, उसी के नीचे दफ़ना दो
या किसी दीवार में चुनवा दो
रामजी का सेतु बनाने के लिए
मदद की थी, जैसे गिलहरी ने
इस देश की आत्मनिर्भरता और गौरव में
मेरा भी तो कुछ योगदान हो!