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छद्म नारीवाद

टाइटल

नारीवाद को किसी भी सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक आंदोलन के रूप में संदर्भित किया जा सकता है, जिसका उद्देश्य किसी महिला को एक पुरुष के समान दर्जा, अधिकार और अवसर प्रदान करना है।  नारीवाद के विचारों के कई स्कूल हैं।

 

हमारे पास मार्क्सवादी नारीवाद, तीसरी दुनिया का नारीवाद, स्त्रीलिंग नारीवाद, कट्टरपंथी नारीवाद, उदार नारीवाद और भी कई तरह की सूची हो सकती है।

घर चलाने के लिए एक आदमी से ही उम्मीद क्यों

छद्म नारीवादियों का दावा है कि महिलाएं पुरुषों से बेहतर हैं। इस तरह के कट्टरपंथी विचार आने वाले भविष्य में लैंगिक युद्ध का कारण बन सकते हैं। 21वीं सदी में भी, कई लोग मानते हैं कि महिलाएं पुरुषों से नीचे हैं और यह भारतीय समाज के बारे में एक सामान्य धारणा है।  घर से काम करने, कमाने और परिवार चलाने के लिए एक आदमी से यह उम्मीद की जाती है।

नारीवाद का सिद्धांत समानता और स्वतंत्रता के बारे में बात करता है लेकिन इसी का कट्टर रूप बनता है “छद्म” नारीवाद। आज महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कानूनी प्रावधान हैं लेकिन इन अधिकारों का दुरुपयोग अक्सर समाज में महिलाओं द्वारा ही देखा जाता है।  जैसे कि घरेलू हिंसा, वैवाहिक बलात्कार, दहेज आदि के आरोपों के लिए पुरुषों पर नकली मामले दर्ज़  करवा दिए जाते हैं।

दिल्ली रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों पर 60% केस झूठे

दिल्ली पुलिस की एक रिपोर्ट से पता चला है कि घरेलू हिंसा और दहेज के मामलों में 60 प्रतिशत मामले फर्जी बताए गए। कैरियर बनाने की बात आती है, तब एक महिला की तुलना में एक पुरुष पर अधिक मानसिक दबाव होता है। महिलाएं तुलनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं।

यदि वे अपने करियर में असफल भी हो जाती हैं, तब भी वे अभी शादी कर सकती हैं और बाकी जीवन आराम से यापन करती हैं लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं है! कई महिलाएं हर जगह सिर्फ इसलिए विशेषाधिकार की उम्मीद करती हैं, क्योंकि वे महिलाएं हैं।

बात यह है कि अगर आपको हर चीज़ में समानता चाहिए, तब समान व्यवहार, समान व्यवस्था, समान नियम कानून को भी स्वीकार करें। मैं ये नहीं कह रही की महिलाएं खास नहीं हैं! बेशक हैं, लेकिन पुरुषों का भी अपना महत्व है।

जैसा कि हम आगे बढ़ रहे हैं और विकास कर रहे हैं, दोनों वर्गों का योगदान आवश्यक है।  जब कोई अपने अधिकारों का दावा कर रहा है, तब उसे अपने कर्तव्यों को भी जानना चाहिए।  एक समूह या कोई विचारधारा है, जो नारीवाद को कट्टरपंथी स्तर पर ले जा रही है।

इस तरह के कट्टरपंथी मामले आम हैं। हमें इस कुप्रथा और हीनता और लैंगिक समानता के लिए अपनी लड़ाई को रोकना की आवश्यकता है।

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