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जेरुलसम

पिछले कुछ दिनों से इजराइल फ़लस्तीन विवाद फिर से जोरों पर है लगातार हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है हर कोई हर किसी के पाले में जा खड़ा हो रहा है जिन लोगों को यह तक नहीं पता कि विश्व के नक़्शे में इजराइल कहाँ है वो लोग भी ट्विटर पर इजराइल के समर्थन में पोस्ट डाल रहे है. असल में यह मसला उतना आसान है नहीं जितना दिखाई देता है इजराइल का शहर जेरुशलम दुनिया के तीन प्रमुख धर्मों  ईसाइयों, मुस्लिमों और यहूदियों के लिए पवित्र स्थान है और साथ ही भूमध्य सागर का तटीय हिस्सा होने के कारण सामरिक दृष्टिकोण से भी बहुत अहम देश है. इस देश और जेरुशलम के पीछे के विवाद को जानने के लिए हमें इसके इतिहास में झांकना होगा जो अत्यंत पुराना है. 

 

अब्राहमिक धर्म 

इब्राहिम अल्लाह के भेजे हुए नबी (दूत) थे जिन्होंने एकेश्वरवाद की तरफ लोगों को बुलाया और उनकी नस्लों में कई नबी भी भेजे गए और उन नबियों पर आसमानी किताबें भी नाज़िल की गए. अभी तक दुनिया में चार आसमानी किताबे मानी जाती है.निचे उन चार किताबों के नाम और जिनपर नाज़िल हुई उन नबियों के नाम है. 

  1. तौरात (OLD TESTAMENT) यह किताब हज़रत मूसा (मोसेस) पर उतरी थी.
  2. ज़बूर (Psalms) यह किताब हज़रत दाऊद (डेविड) पर उतरी थी.
  3. इंजील (BIBLE ) यह किताब हज़रत ईसा (जीसस) पर उतरी थी. 
  4. क़ुरआन यह आखिरी किताब थी जो हज़रत मोहम्मद(SAW) पर उतरी थी. 

 

इन चार नबियों के अलावा और किसी नबी पर आसमानी किताब नाज़िल नहीं हुई.इस्लामिक तौर पर देखे तो अल्लाह ने लगभग एक लाख चौबीस हज़ार नबी दुनिया के अलग अलग हिस्सों में भेजे थे.आसमानी किताब आने का मतलब यह नहीं की एक बनी बनाई किताब आसमान से उतर कर आ गई हो. आसमानी किताबों की एक एक आयत अल्लाह के भेजे गए दूतों उप्पर के चारों नबियों पर वक़्त वक़्त पर ज़रूरत के हिसाब से नाज़िल होती थी. अब नाज़िल होने में कई तरीके हो सकते है जैसे एक फरिश्ता आकर सुनाए या उन्हें सपने में या ख्याल में आए इस तरह से एक एक आयत को जोड़कर पूरी किताब बनाई जाती थी और उस नबी के दुनिया से चले जाने के बाद लोगों को वो किताब के सिद्धांतों पर अमल करना ज़रूरी था. 

 

हज़रत इब्राहिम के तीन बेटे थे जिनमें से दो नबी थे उनके नाम 

  1. हज़रत इस्माइल ( ये वही थे जिनकी बलि देने के लिए इनके पिता इब्राहिम को खुदा का हुक्म हुआ और इब्राहिम इन्हें दूर ले गए ताकि इनकी बलि दी जा सके और इनकी जगह पर खुदा ने एक मिन्डे को रिप्लेस कर दिया था और उसी की याद में मुस्लमान आज बकरी ईद पर क़ुरबानी देते है)इस्लामिक मान्यता
  2. हज़रत इस्हाक़ (आइजैक) यहूदी मान्यता के अनुसार इब्राहिम ने इस्हाक़ की क़ुरबानी देने की कोशिश की और वो जगह टेम्पल माउंट ही थी. 

इस्हाक़ के एक बेटे का नाम था याकूब ( जैकब) याकूब भी नबी थे और इनका एक और नाम था और था “इजराइल”,  इजराइल का मतलब होता है “सर्वेंट ऑफ़ गॉड”. 

 

अब बेसिकली जो लोग हज़रत याकूब की पुश्तों में से थे उनको बनी इजराइल ( इजराइल की औलादे) और जो लोग इस्माइल की पुश्तों में से थे उन्हें बनी इस्माइल (इस्माइल की औलादें)  कहा जाने लगा. आपको ये दो नाम आखिर तक याद रखने है. 

अब हम तीनों  धर्मों का थोड़ा ब्रीफ देख लेते है. 

 

 

यहूदी  धर्म तीनों अब्राहमिक धर्मों में सबसे पुराना धर्म है।  अब  हुआ कुछ यु कि हज़रत मूसा(मोसेस) का दौर आया (मूसा बनी इजराइल में से थे) उस दौर में मिस्र में एक जालिम बादशाह फिरओन जिसका नाम वालिद बिन मुसअब बिन रैय्यान था (कुछ लोग उस बादशाह को फिरओन ने नाम से जानते है पर मैं आपको यहाँ बता दू कि फिरओन मिस्र के बादशाहों का लक़ब हुआ करता था जैसे हिंदुस्तान में महाराजा)  का शासन था और वो खुद को खुदा बताया करता था (जैसे 300 मूवी में वो बताता है वैसे ही). मूसा फिरओन को एक खुदा की दावत देते पर फिरओन उनकी बात नहीं मानता और एक दिन फिरओन और उसकी कौम हज़रत मूसा का पीछा कर रही थी तभी मूसा के सामने नील नदी आ गई मूसा को अल्लाह की तरफ से हुक्म हुआ और मूसा ने अपने हाथ में पकड़ी एक लकड़ी को नील नदी में मारा और उसमें एक रास्ता बन गया पीछेपीछे जब फिरौन अपनी फौज के साथ नदी में दाखिल हुआ तो वो वही हलाक हो गया. ऐसे दावे है की अभी कुछ टाइम पहले फिरओन की लाश मिली जो मिस्र के पास है मुझे इसकी हकीकत नहीं मालूम इसलिए  बढ़ते है. 

 

मूसा पर किताब नाज़िल हुई और उसका नाम था तौरात मूसा का टाइम कन्फर्म नहीं बता सकता पर यह लगभग 1200-1500 ईसा पूर्व रहा होगा. और इसी तौरात को मानने वाले लोग यहूदी है. 

 

लगभग 700-900 ईसा पूर्व एक और नबी आए और उनका नाम था दाऊद(डेविड) . दाऊद इजराइल के राजा थे और उन्हें जेरुशलम के लोगों को दावत देने के लिए भेजा गया था. हज़रत दाऊद पर भी एक किताब नाज़िल हुई और उसका नाम था ज़बूर और दाऊद भी बनी इजराइल में से ही थे. 

हज़रत  दाऊद के बेटे थे हज़रत सुलेमान ये भी नबी थे और दाऊद के बाद राजा भी थे इतिहास इन्हे किंग सोलेमन के नाम से जानता है इनपर कोई किताब नहीं उतरी पर आप इन्हें याद रखे आगे काम आएगा। 

 

हज़रत ईसा यानी जीसस, इनकी अम्मी का नाम था मरियम यानी मैरी इनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ था जैसा आप सब जानते है. अब बात यह है कि ईसा के कोई पिता नहीं थे यानि मरियम कुंवारी थी जब उन्होंने ईसा को जन्म दिया. वाक़िआ यु है कि अल्लाह ने एक फरिश्ता भेजा जिसने मरियम पर फूंक मारा और ईसा मरियम के गर्भ में पलने और मरियम ने कुछ ही  में ईसा को जन्म दिया. जब वो अपने बेटे को लेकर बाहर निकली तो समाज ने तानाकशी शुरू कर दी याद रखिये यह समाज वही यहूदी है. ईसा बड़े होते गए और खुदा के हुक्म से कारनामें बताते गए. फिर एक दिन बनी इजराइल की कौम ने ईसा को कैद कर लिया क्रॉस पर चढाने के लिए.  माना जाता है कि ईसा का जन्म बेथलेहम में हुआ था. यह शहर जेरुसलम के दक्षिण में 10 किमी के लगभग होगा इसी शहर में दूसरे इस्लामिक खलीफा भी गए थे और उनके नाम पर वहां मस्जिद भी है. 

 

अब इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार उस वक़्त ईसा को खुदा ने ज़िंदा आसमान में उठा लिया था. और जो बंदा क्रॉस पर मारा गया वो वही शख्स था जिसने ईसा को कैद करवाया पर खुदा ने उस शख्स को ईसा सी शक्ल दे दी थी.

ईसाई मान्यताओं के अनुसार ईसा सूली पर चढ़ा दिया गया था. 

बाइबल के अनुसार जिस जगह पर ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था वो जेरुसलम का ही एक एरिया गोलगोठा था और आज वहां ईसाइयों का एक पवित्र चर्च है जिसका नाम Church of the Holy SepulchrE है. 

 

ईसा के  जाने के लगभग 600 बाद एक और नबी और इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार ये आखिरी थे. हज़रत मुहम्मद जिनके बारे में ओल्ड टेस्टामेंट और न्यू टेस्टामेंट में लिखा हुआ था. जिनके बारे में कई यहूदी नजूमियों ने भविष्यवाणियां की हुई थी और वो सारी सच हुई मक्का में मुहम्मद (SAW ) का जन्म हुआ और उनपर क़ुरान नाज़िल हुआ पर अब यहूदियों के साथ समस्या यह  हुई की मुहम्मद बनी इजराइल में से नहीं थे वो बनी इस्माइल से थे. इस वक़्त तक यहूदी बहुत ज्यादा तकब्बुर में डूब चुके थे और खुद बड़े पढ़े लिखे और सिविलाइज़्ड मानते थे खुदा ने कई नबी और तीन आसमानी किताबें उनकी कौम में से ही भेजी थी तो बाकियों को इंसान मानना ही बंद कर चुके थे. वो  मानते है कि वो खुदा के करीब है और बाकि के लोग तो उनके इस्तेमाल के लिए है जैसे जानवर होते है. वही हुआ यहूदियों ने मुहम्मद (SAW) को नबी मानने से इंकार कर दिया। 

 

हैकले सुलेमानी-टेम्पल माउंट-हरम अलशरीफ और जेरुसलम का इतिहास

 

आपने उप्पर पढ़ा था की एक राजा हुए थे हज़रत सुलेमान, हज़रत सुलेमान ने एक इबादतगाह बनाई थी जिसे मुस्लिम हेकले सुलेमानी कहते है और यहूदी फर्स्ट सोलेमन टेम्पल बोलते है. यह इबादतगाह लगभग 1000-1200  ईसापूर्व में बनाई गई थी परन्तु 500 ईसा पूर्व में बेबीलोनिया(इराक) के शासक नैबुकेड नज़र द्वितीय ने जेरुसलम पर हमला करके तबाह कर दिया था. हमला इतना खतरनाक था कि उस वक़्त नेबूकेड ने पूरा शहर तबाह कर दिया और लाखों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया और कइयों को अपने साथ बेबीलोनिया गुलाम बनाकर साथ ले गया. 136 सालों बाद जब बेबीलोनिया किंगडम और जुड़ाह से हार गया था जुडाह ने यहूदियों को फिरसे जेरुसलम जाने और वहां अपना टेम्पल बनाने की इज़ाज़त दे दी. इसके बाद यहूदियों ने वहां अपना सेकंड टेम्पल बनाया. सन 70 ईस्वी में रोमन बादशाह टाइट्स की सेना ने सेकंड टेम्पल और जेरुसलम को तबाह कर दिया और यहूदियों को शहरबदर कर दिया. टाइट्स ने जब सेकंड टेम्पल तोडा था तो उसकी एक दीवार बाकि रह गयी थी जिसे वेस्टर्न वाल कहते है और आप देखते है यहूदी एक दीवार के सामने खड़े होकर दुआए मांगते है बस यही वो दीवार है. 

कुछ सालों बाद लगभग 300 ईस्वीमें रोमन बादशाह बेजेन्टाइन ने ईसाइयत कुबूल कर ली और उन्होंने यहूदियों को मारना काटना शुरू कर दिया इस सबके दौरान यहूदियों का जेरुसलम में आना बेन था. 

मुहम्मद (SAW) के साथ मेराज की रात की एक घटना हुई थी जिस रात में वो जन्नत तक जाकर अल्लाह से मिलकर आए थे और जहाँ से मेराज के लिए निकले थे वो जगह वही थी जहाँ कभी हैकले सुलेमानी था. जब आज आप जेरुसलम की फोटो देखते है वहाँ आपको गोल्डन गुम्बद दिखता है बस वही जगह. डॉम ऑफ़ द रॉक कहते है क्योंकि इसी में वो चट्टान है जहाँ से मुहम्मद SAW मेराज को गए थे. इसके अलावा अपने शुरुआती कुछ सालों तक मुसलमानों का क़िब्ला(जिधर मुंह करके नमाज़ पढ़ते है) भी जेरुसलम की तरफ ही था फिर एक नमाज़ के दौरान ही आदेश हुआ और उस दिन से क़िब्ला काबा (मक्का) को बनाया गया.

 

हज़रत मुहम्मद SAW के बाद दूसरे खलीफा बने हज़रत उमर बिन खत्ताब,  इनकी फौज ने 636 ईस्वी में जेरुसलम पर चढ़ाई की इस वक़्त ईसाइयों का शासन था और यहूदियों का शहर में आना मना था.उमर बिन खत्ताब को जेरुसलम के नुमाइंदों ने बिना जंग लड़े ही चाबियां सौंप दी. उस वक़्त हज़रत उमर ने यहूदियों को शहर में घुसने और इबादत की इजाजत दे दी लेकिन बसने की इजाजत नहीं दी. इसी दौरान कई जगहों पर मुसलमानों ने भी उस वक़्त यहूदियों से कई जंगे लड़ी थी. उमर फारूक के कुछ 400 सालों बाद पोप अर्बन के आव्हान पर यूरोप से क्रूसेडर रवाना हुए रोमन भी उनके साथ थे और इन्होंने फिरसे जेरुसलम जीत लिया. इसके कुछ सालों बाद लगभग 1187 में सलाहुद्दीन अय्यूबी जो मिस्र के राजा थे उन्होंने फिर से जेरुसलम जीत लिया.

 

इस सबके दौरान यहूदी कभी जेरुसलम नहीं आ सके. 1900साल के करीब यहूदी अपने सबसे पवित्र शहर से दूर रहे और इस काल को ये डायस्पोरा कहते है. जेरुसलम फिर हमेशा मुसलमानों के हाथों में ही रहा पर पहले विश्व युद्ध में उस्मानिया(ओट्टोमन) ब्रिटेन से हार गए और इजराइल पर ब्रिटेन का कब्जा हो गया. सन 1917 में ब्रिटेन ने बाल्फोर डिक्लरेशन को पब्लिश किया जिसके अनुसार अब यहूदी जेरुसलम और इजराइल जाकर बस सकेंगे. बस फिर यु हुआ कि कुछ कुछ यहूदी इजराइल के आस पास आकर बसने लगे मकानों की गुणा कीमत दी गई और छोटी छोटी सेट्लमेंट्स बनाई गई अलग अलग क्षेत्रों में फिर हिटलर ने इनका नरसंहार किया तब ये जर्मनी से फिर भागे और इजराइल की सरजमीन पर आकर उसी तरह सेट्लमेंट्स बनाने लगे जैसे इनसे पहले आने वालों ने बनाई थी.पूरी दुनिया के यहूदी भाग कर इजराइल में जाने लगे और इजराइल को एक यहूदी स्टेट बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी और अंतत सन 1947 में यूनाइटेड नेशंस ने पलेस्टाइन में इजराइल को मान्यता दे दी और जेरुसलम को इंटरनेशल कण्ट्रोल में ले लिया. 

 14 मई 1948 को यहूदियों के प्रमुख डेविड बेन गुरियन ने इजराइल स्टेट की घोषणा कर दी एक यहूदी राज्य उसी जमीन पर जहाँ पहले से एक अरब राज्य है और अमेरीका ने उसी दिन इस नए राज्य को मान्यता दे दी और अपनी और से तमाम आर्थिक, राजनैतिक सपोर्ट भी दिए. 

इसके बाद कई युद्ध हुए उन्हें एक एक डिस्क्राइब करने में बहुत लम्बा हो जाएगा पर ये समझ लीजिये की उनमें से लगभग सारे युद्ध इजराइल ही जीता और युद्ध सिर्फ पलेस्टाइन से ही नहीं आस पास के अरब देशो से भी हुए उनमे हुआ यु की पलेस्टाइन का बहुत बड़ा हिस्सा इजराइल ने अपने हाथ में ले लिया और जेरुसलम को भी हथिया लिया. 

 

THRONE OF SOLOMAN/ तख़्त ए सुलेमानी 

 

वही तख़्त है जिसपर दाऊद और सुलेमान की ताजपोशी हुई थी. आज यह तख़्त कहाँ है इसको लेकर कई अलग अलग मत है कहने वाले कहते है कि जब बेबीलोनिया ने हमला किया तब वो ले गए. कहने वाले तो यह भी कहते है कि रूमी ले गए थे वही कहने वाले कहते है कि वो आज भी इंग्लैंड की महारानी के तख़्त में जड़ा है कहने वाले बहुत कुछ कह गए खेर इस तख़्त का इस सब से क्या मतलब? मतलब ऐसे है कि यहूदियों में यानी ओल्ड टेस्टामेंट में एक भविष्यवाणी है जिसके अनुसार उनका एक मसीह आएगा जो पूरी दुनिया में यहूदियों का राज ले आएगा और उस मसीह की ताजपोशी हेकले सुलेमानी 3RD (जिसको बनाने की योजना है) में तख़्त ए दाऊद या तख़्त ए सुलेमानी पर होगी वही ईसाइयों का मानना है कि इसा मसीह फिरसे जन्म लेंगे और उनकी ताजपोशी इसी तख़्त पर होगी।  अब मुस्लमान यह मानते है कि जो यहूदियों का मसीह है वो दज्जाल( एक शैतान) होगा जिसकी कई भविष्यवाणियां है और वो क़यामत से पहले आएगा। मुसलमानों  के  अनुसार आने को तो ईसा भी आएंगे पर वो पैदा नहीं होंगे क्योंकि ईसा को ज़िंदा उठाया गया था तो वो उसी उम्र में जिस उम्र में उठाए गए शाम की एक मस्जिद की मीनार पर उतरेंगे। 

ईसा आएंगे और मुस्लमान उनके पीछे दज्जाल से अपनी जंग लड़ेंगे। फिर ये दुनिया खत्म। टाटा बाय बाय 

 

अच्छा अच्छा  एक  लास्ट की अगर उनके ईसा के आने बाद लड़ना है तो अभी क्यों हिंसा हो रही है? अभी लेटेस्ट मामला यह है की इजराइल पलिस्तीनियो को जेरुसलम से जबरदस्ती डरा धमका कर निकालना चाहता है बैसिकली यह सब कुछ तैयारियां है हैकले सुलेमानी को फिर से बनाने की और उसके बाद होने वाली उस बड़ी जंग की

 

  

 

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