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बकस्वाहा ,छतरपुर, हीरे की खान

कुछ दिन पूर्व पेपर में और सोशल मीडिया में एक खबर प्रमुखता से दिखाई दी कि छतरपुर जिले के बकस्वाहा कस्बे में हीरे की खदान के लिए 2.15 लाख पेड़ काटे जाने हैं , पहले तो मुझे आश्चर्य हुआ कि 2.15 लाख पेड़ों को पूरी ईमानदारी के साथ गिना किसने है,हो सकता है यह और भी ज्यादा हो, एक रिपोर्ट के अनुसार देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार जो मध्यप्रदेश के पन्ना में हुआ करता था अब इससे भी बड़ा भंडार छतरपुर में मिला है, छतरपुर के बकस्वाहा के जंगल की ज़मीन में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे होने का अनुमान है , और इसे निकालने के लिए 382.131 हेक्टेयर के जंगल को काटा जाएगा मतलब लगभग 1910 बीघा के जंगल को नष्ट किया जाएगा या जो कुछ स्क्वायर फुट जमीन में घर बनाते हैं उनके हिसाब से लगभग 40000000 स्क्वायर फुट ज़मीन के जंगल को काटा जाना है,
ऐसा बताया है यहाँ 40 हज़ार पेड़ सागौन ,तेंदू,जामुन,बहेड़ा,केम ,पीपल जैसे कई अन्य औषधीय पेड़ हैं, और अभी तक यह अनुमान ही है, विल्कुल वैसे ही जैसे किसी समय बालाजी में सोने की खान प्राप्त हुई थी भारत सरकार को, या जैसे प्लाज्मा थेरेपी जैसा अचूक इलाज प्राप्त हुआ था ।
छतरपुर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जिला है ,इसकी स्थापना बुंदेलखंड केसरी व बुंदेलखंड स्वतंत्रता के ध्वजवाहक महाराज छत्रसाल बुंदेला ने की थी व उन्हीं के नाम पर इसका नाम छतरपुर पड़ा ,मुझे पहली बार छतरपुर के बारे में जानने को तब मिला जब मुझे पता चला 2011 मध्यप्रदेश शासन में मेरी पदस्थापना छतरपुर में होने वाली है , पर बाद में मुझे मेरी स्वेच्छा से मेरा ही गृह जिला शिवपुरी मिला ,एवं शिवपुरी में पदस्थापना के दौरान मेरी मुलाकात बकस्वाहा से हुई, जी हाँ वही बकस्वाहा जिसमे यह हीरे की खान मिली है, दरअसल उसी डिपार्टमेंट में मेरे वरिष्ठ अधिकारी एम. बक्स. कार्यरत थे जो हमें प्रशिक्षण में फील्ड में ले जाया करते थे ,उसी दौरान उन्होंने बताया कि वो छतरपुर के बकस्वाहा तहसील से हैं, आम बोलचाल में तहसील और नगरपंचायत को कस्बा कह दिया जाता है क्योंकि यह नगर और ग्रामीण जीवन के बीच की इकाई है, ऐसे ही बकस्वाहा भी छतरपुर जिले की एक तहसील और नगरपंचायत भी है लेकिन बड़ी बारीकी से इसे न्यूज़ सिर्फ कस्वा कहकर संबोधित किया गया है, इसके अपने फायदे हैं, तो इस प्रकार से मैं इस बकस्वाहा से परिचित हुआ और हमारे कुछ साथी कहा करते थे यह बकस्वाहा नाम बक्स सर् के नाम पर ही पड़ा है ।
खैर जो भी हो पर इस समय इसका नाम जिस स्वरूप में सुना है वह विल्कुल सही नहीं है,
इस प्रकार के विकास को हम न्यायसंगत नहीं ठहरा सकते ,इसका खामियाजा आने वाली कई पीढ़ियों को किसी न किसी स्वरूप में भुगतना पड़ेगा, ऐसे मामलों में शासन को स्पष्ठ नियम बनाना चाहिए कि एक विशेष एरिया से ज्यादा पेड़ काटने या प्राकृतिक ढांचे को नष्ट करने या इसका प्लान करने को नाक़ाबिले माफी जुर्म घोषित किया जाए, और यदि सरकार यह नहीं कर सकती तो जनता भी चुनाव में इस प्रकार के मुद्दों पर अपना निर्णय दे सकती है ।
लेकिन जनता के अपने गणित हैं, उसी मध्यप्रदेश में हरसूद के समय भी विरोध नहीं हुआ था शायद आज भी न हो ,ऐसे कई हरसूद, आमोल विकास की भेंट चढ़ जाते हैं, और अब शायद बकस्वाहा भी हो, पर हम सब अपने अपने घर में सस्ती सागौन खरीदने का लाभ लेंगे जिससे घर लक्सरी दिखे और बकस्वाहा से पेड़ कटने पर प्राप्त सस्ती सागौन को ही असली विकास समझें

मनीष भार्गव

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