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भारत की कोविड टूलकिट

विशाल झा

विशाल झा

कोविड टूलकिट जिसकी भारत कोबहै ज़रूरत

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भारत को टूलकिट की ज़रूरत है क्यों?

 

पिछले कुछ दिनों मे हमने देश भर में लोकतंत्र से लेकर आस्था का मेला देखा। जिसके कारण आज देश दूसरी महामारी से जूझ रहा है। रोज़ाना कितनी मौतें हो रही हैं कह पाना भी मुश्किल है क्योंकि सरकारी आंकड़ा और शमशान या कब्रिस्तान में जाने वाले मृतकों के आंकड़ों में ज़मीन-आसमान का फर्क है। बहरहाल इसी दौरान अचानक टूलकिट की बात शुरू हो गई। 

 

आखिर क्या है टूलकिट? 

 

टूलकिट का मतलब है ऐसे मानक जिससे हम किसी अंजाम तक पहुंच़ लेकिन जब यही टूलकिट राजनीति में घुस जाती है तो तस्वीर कुछ और हो जाती है। हाल में कांग्रेस पर बीजेपी द्वारा आरोप लगाया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की छवि बिगाड़ने के लिए टूलकिट बनाई इस पर कांग्रेस ने भी पलटवार करके उसको फ़र्ज़ी बताया। इसमे रोचक बात यह ही कि बीजेपी के प्रवक्ता डॉ संबित पात्रा द्वारा ट्विट किये गए टूलकिट को खुद ट्विटर ने ‘manipulated media’ यानी हेर-फेर वाली श्रेणी में डाल दिया। 

 

अब सवाल यह आता ही कि संकट के इस समय क्या राजनीती करना सही है? क्या भारत कों कोरोना टूलकिट की ज़रुरत है जो लाखो जान बचा सके तो जवाब हां होगा। क्योंकि भारत गांव म़ बस्ता है।

 

सवाल यह है कि उन गावों में कभी अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं बस सकती। भारत की लगभग दो-तिहायी आबादी गावों में रहती है और करीब 718 ज़िले हैं जिसमें से 200 से 250 ज़िले ऐसे हैं जिनमे संक्रमण दर 30 से 40% प्रतिशत है। इसलिए मैं कहता हुं कि हमें एक टूलकिट की ज़रुरत है जिस की खातिर सरकार को कुछ कार्य करने चाहिए जैसे की भारत में अभी दो स्वदेशी टीके से काम चल रहा है अब तीसरा स्पूतनिक v भी इसमें जुड़ने जा रहा है। तो सरकार को टीके बनाने की विधि भारत की अन्य संगठनों से भी साझा करनी चाहिए और उसकी समयसीमा और प्रभाव पर भी पैनी नज़र बनानी चाहिए।

 

भारत सरकार सीना ठोक क कहती है कि 18 करोड़ टीके लगाने वाला भारत दुनिया का पहला देश है लेकिन एक चीज़ समझनी चाहिए कि भारत की आबादी के हिसाब से यह भी काफी नहीं हैं। फिर भी सरकार की तरफ से दिसंबर तक टीके बढ़ाने के क्रम में कुछ अनुमान जारी किये गए हैं जिसके अनुसार दिसंबर तक 750 मिलियन कोविशील्ड, 550 मिलियन कोवैक्सीन, 350 मिलियन बायोलॉजिकल इ, 50 मिलियन जाईडस कैडीला, 250 मिलियन कोवैक्स, 100 मिलियन नेवल वैक्सीन, 60 मिलियन जिनोवा और 15 मिलियन स्पूतनिक की मौजूदगी होगी। इनके आधार पर ही माना जा रहा है की जुलाई और अगस्त कोरोना टीकाकरण के लिहाज़ से अच्छे साबित होंगे। 

 

भारत में 16 जनवरी से टीकाकरण अभियान शुरू हुआ था जिसमें 2 फरवरी से अग्रिम मोर्चे पर तैनात लोगों के लिए टीकाकरण चालु हुआ। 1मार्च से 60 साल के ऊपर के लोगों के साथ 45 साल के ऊपर के उन लोगों के लिए भी जो गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। फिर 1 अप्रैल से सभी 45 के ऊपर के लोगो के लिए और 1 मई से 18 के ऊपर सभी को बस यही गड़बड़ी हो गयी। 

 

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को 18 से ऊपर के लोगो के लिए टीकाकरण जून या जुलाई से शुरू करना चाहिए था, क्योंकि अचानक से लिए इस फैसले ने न तो 45 के ऊपर के लोगों को उनकी दूसरी डोज़ मिली और ना ही 18 से ऊपर वालो कों टिका | नतीजा यह है कि देशभर में टीकाकरण केंद्रो पर ताला जड़ा है। इन सब के बीच पत्रकारों की भी ज़िम्मेदारी बनती है कु फालतू मुद्दों को अभी तवज्जो न दी जाए और जनता में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी पहुच सके। 

 

सरकार को टीकाकरण किस प्रकार से तेज़ हो इसपर सोचना चाहिए और इसके लिए सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि 12 संघठनों के साथ मिलकर सरकार टीके बनाएगी इसके अलावा राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच ज़रुरी संवाद होता रहे। साथ ही कोई ऐसी व्यवस्था तैयार हो जिससे प्रधानमंत्री कार्यालय और राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सीधा तालमेल बैठ सके। 

 

मौतों पर अधिक पारदर्शिता दिखाने की ज़रूरत है

 

जिस एक चीज़ पर सरकार को अधिक ध्यान देना चाहिए वह है कोविड से होने वाली मौतों म़ पारदर्शिता। अगर कोई कोविड से मर भी रहा है तो छुपाया नहीं जाए बल्कि उसको जनता के सामने रखा जाए। जिससे जनता का सरकार के प्रति भरोसा बना रहे। साथ ही सरकार को गावों में बेहतर स्वास्थ्य उपाय करने चाहिए क्योंकि सरकार बदल जाती है पर गावों में चिकित्सा केंद्रों की दीवारें वही पुरानी की पुरानी हैं। सरकार को राज्य के मुख्यमंत्रीयों से सलाह-मशवरा करते रहना चाहिए तथा उनकी तरफ से दिए गए सुझाव को गंभीरता से लेना चाहिए। 

 

वैसे इस दौरान सारे कैबिनेट मिनिस्टर कों एक सेना की तरह हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। उनको छूट देनी चाहिए ताकि समय रहते जान बचाई जा सके। अगर इस टूलकिट को सरकार अपनाती है तो भारत की स्थिति कोविड के मामलों में बेहतर हो सकती है।

 

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