आज भी शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी को लेकर खुल कर बात नहीं की जाती हैं. इस विषय पर शिक्षा की कमी, लगातार वर्जनाओं और कलंक, स्वच्छ माहवारी उत्पादों तक सीमित पहुंच और खराब स्वच्छता बुनियादी ढांचे के कराण महिलाओं और लड़कियों को शैक्षणिक अवसरों, स्वास्थ्य और समग्र सामाजिक स्थिति को कमजोर करती है. जिसका नतीजा है कि लाखों महिलाओं और लड़कियों में उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचे से रोक दिया जाता है. ऐसे में माहवारी स्वच्छता महत्वपूर्ण है. एनएफएचएस 5,2019-20 के अनुसार बिहार में 58 प्रतिशत(शहर में 74.7 प्रतिशत, ग्रामीण में 56 प्रतिशत) 15-24 साल की महिलाएं अपनी माहवारी के दौरान सुरक्षा के लिए हाइजिनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं. वहीं मेंस्ट्रुअल हाइजिन मैनेजमेंट डेटा के तहत भारत में 71 प्रतिशत लड़कियों को अपने पहले माहवारी से पहले उसके बारे में कोई ज्ञान नहीं होता है. इस मुद्दे पर काम करने की जरूरत है. सबसे पहले इस प्राकृतिक प्रक्रिया से जुड़ी गलत अवधारणाओं को हम सभी को मिलकर तोड़ना होगा. दूसरा आपस में बात करनी होगी और अपनी चुप्पी तोड़नी होगी और बेटियों को आश्वस्त करना होगा कि वे कोई अपराध नहीं कर रही हैं और तीसरा मासिक धर्म के दौरान किशोरियां स्वच्छ रहने के साथ-साथ कोई संक्रमण ना हो इसे सुनिश्चित करना होगा.
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सामाजिक रूढ़ियां और अंधविश्वास है बड़ी बाधा
यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता बताती हैं कि सामाजिक कारणों या अंधविश्वास के कारण कई लड़कियां सैनिटरी नैपकिन की तरह इस्तेमाल किये गये कपड़ों को धूप में ठीक से सुखाती नहीं है. इसकी वजह से जब वे इसका दुबारा इस्तेमाल करती हैं तो इंफेक्शन का खतरा बना रहता है. इससे बीमारी होने का खतरा है. मेंन्ट्रुअल हाइजिन मैनेजमेंट के एक डेटा के अनुसार दुनिया में 27 प्रतिशत सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतें भारत में होती है, यह वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी है. बीमारी का अध्ययन करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि खराब माहवारी स्वच्छता आंशिक रूप से दोष है.कई जगहों पर अंधविश्वास इस हद तक है कि माहवारी शुरू होने पर लड़कियों को घर के अलग कोने में रहने के लिए बोला जाता है.जबकि माहवारी पूरी तरह से प्रकृतिक है. इसमें किसी तरह की शर्म या झिझक की बात नहीं होनी चाहिए . इस टैबू को अगर तोड़ना है तो सबसे पहले इस महामारी में लॉकडाउन के दौरान सुरक्षित तरीके से माहवारी का प्रबंध हो यह सुनिश्चित करना होगा. इस विषय पर लड़कों और पुरुषों को भी जागरूक करने की जरूरत है.
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जागरूकता के लिए चलाया जा रहा अभियान
रेड डॉट चैलेंज- इस अभियान का उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों को माहवारी संबंधी स्वच्छता संबंधी मुद्दों पर चर्चा करने में सक्षम बनाना है.
– वेबिनार का आयोजन- समय-समय पर बिहार के शिक्षकों के साथ इस विषय पर वेबिनार का आयोजन किया जाता है जिससे किशोर लड़कियों तक मेंन्ट्रुअल हाइजिन को लेकर जानकारी मिलती रहें.
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किशोर-किशोरियों के बीच चलाया जा रहा जागरूकता अभियान
बिहार यूथ फॉर चाइल्ड राइट्स की ओर से पिछले दो साल से लगातार किशोर और किशोरियों के बीच माहवारी को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.इसका सहयोग यूनिसेफ की ओर से किया जा रहा है. प्रियस्वारा भारती बताती हैं कि बिहार यूथ फॉर चाइल्ड राइट्स में कुल 30 बच्चों का समूह है जो 2019 से लगातार मेंन्सट्रुअल हाइजिन को लेकर जागरूतकता अभियान चला रहा है. पिछले दो साल से लगातार ऑनलाइन युवाओं के साथ इस विषय पर जुड़े मिथक और वर्नजनाओं को तोड़ने के लिए कार्य कर रहा हैं. इसमें उनका साथ आदित्य रंजन, रवि रौशन टुड्डु, अभिनंदन गोपाल, सुदीक्षा, नंदिनी और पूरी टीम दे रही हैं.