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यासिर अराफात: फिलिस्तीन के दिग्गज राजनेता जिनकी भारत से थी ख़ास दोस्ती

पिछले कई दिनों से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष चल रहा है जिसने अभी तक डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं इन हवाई हमलों में सबसे ज्यादा नुकसान फिलस्तीनी इलाकों का हुआ है वही संयुक्त राष्ट्र ने दोनों देशों को शांति बहाल करने का आह्वान किया है।

 

जब कभी भी फिलिस्तीन और इजराइल के संघर्ष की बात होती है तो उसमें एक नेता की छवि सबसे पहले सामने उभरती है वो है यासिर अराफात वह फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन के मुखिया थे जिसका काम फिलिस्तीनी लोगो के अधिकारों का संरक्षण करना था। अराफात एक बेहतरीन वक्ता और शानदार व्यक्तित्व वाली शख्सियत थे। 

 

यासिर अराफात का निजी जीवन

 

यासिर अराफात का जन्म मिस्र की राजधानी कायरों में एक फलस्तीनी परिवार में हुआ था इनके पिता का संबंध फलस्तीन के गाजा शहर से था वही इनकी माता की पृष्भूमि मिस्र से थी। अराफात कायरो की किंग फाद यूनिवर्सिटी से स्नातक पूरा होने के बाद 1948 के इजरायल- अरब युद्ध में भाग लेने फलस्तीन पहुंच गए थे इस युद्ध के दौरान वह मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थन में थे हालांकि उन्होंने निजी तौर पर युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था। अराफात हमेशा फौजी लिबास के साथ सर पर केफियेह पहना करते थे इसके अलावा वह अपने साथ एक बंदूक भी रखा करते थे। वह कोट सूट कभी नहीं पहनते थे क्योंकि अराफात इसे पश्चिमी सभ्यता की देन मानते थे। साल 1990 में यासिर अराफात ने ईसाई सोहा अरफात से शादी की थी।

 

सियासी दांव पेंच के काफ़ी माहिर खिलाड़ी थे यासिर अराफात 

 

यासिर अराफात नेतृत्व क्षमता के काफी धनी थे इसराइल जैसे ताकतवर मुल्क के सामने उन्होंने मजबूती से सियासी दांव पेंच खेलें अपनी शानदार बारगेनिंग पावर के दम पर वह अपनी बात मनवाने में कामयाब हो जाया करते थे। 1974 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने के लिए बुलाया गया था यह पहला मौका था जब किसी राष्ट्राध्यक्ष के अलावा अन्य किसी नेता को संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने बुलाया गया था। उनके भाषण में गोरिल्ला चरमपंथियों की उनकी छवि को बदल दिया करीब एक साल बाद अमेरिका ने माना कि अरब-इजरायली शांति प्रक्रिया की तलाश में फलस्तीनी हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती। साल 1994 में यासिर अराफात ने अमेरिका में इसराइल के साथ ओस्लो समझौता किया जिसमें इसराइल को उन फिलिस्तीनी इलाकों से हटने को कहा गया जिन पर इस देश ने कब्जा कर रखा था इसके बाद गाजा और वेस्ट बैंक के इलाकों में फिलिस्तीनी स्थानीय प्रशासन कायम हुआ इस ऐतिहासिक समझौते के बाद गाजा में यासिर अराफात का शानदार स्वागत हुआ था।

 

इंदिरा गांधी को बड़ी बहन मानते थे यासिर अराफात

 

भारत और फिलस्तीन के बीच कूटनीतिक रिश्ते लगभग छह दशक पुराने हैं भारत उन देशों में शामिल हैं जिन्होंने सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दी थी 1960 के दशक में फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन का अरब के बाहर पहला दफ्तर दिल्ली में खुला था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ यासिर अराफात के काफी अच्छे संबंध है अराफात इन्हे  बड़ी बहन कहकर बुलाते थे। इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री बने उनके बेटे राजीव गांधी के साथ भी यासिर अराफात के संबंध अच्छे रहे थे कहा जाता है कि एक बार तो उन्होंने राजीव गांधी के लिए भारत में चुनाव प्रचार करने का भी प्रस्ताव दिया था। 

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब सारे अरब मुल्क पाकिस्तान के पक्ष में थे जब यासिर अराफात ही थे जिन्होंने बांग्लादेश के आंदोलनकारियों का समर्थन करते हुए भारत की कार्रवाई को सही ठहराया था।

 

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