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आखिर कब तक हम महिलाओं को उनके कपड़ों के आधार पर, उनके चरित्र का आकलन करेंगे?

आखिर कब तक हम महिलाओं को उनके कपड़ों के आधार पर, उनके चरित्र का आकलन करेंगे?

आज हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं, लेकिन लड़कियों को लेकर हमारे समाज कि मानसिकता कल भी वही थी और  आज भी वही है कि लड़कियों को उनके आचार-विचार, रहने, कपड़े पहनने के तरीकों, सभ्यता एवं संस्कृति के नाम पर जज करना। मुझे नहीं लगता कि हमारे समाज की यह दूषित मानसिकता हम लड़कियों को लेकर कभी खत्म भी होगी, क्योंकि तुम एक लड़की हो, तो लड़की की तरह रहो। ये टीशर्ट-जींस, वेस्टर्न कपड़े, लड़कों से बात मत करो, देर रात बाहर ना जाओ, तुम लड़की हो, पढ़कर क्या करोगी? ऐसे मत रहो वरना लोग क्या कहेंगे? यह सब हमारे समाज में लड़कियों को लेकर कही गई आम बात हैं। जो उन्हें उनके अधिकारों, उनकी स्वतंत्रता और उनकी इच्छानुसार जीवन जीने पर रोक लगाती हैं।

नमस्ते, मेरा नाम निशु भारद्वाज है। मैं एक छोटे से गाँव से हूं और मैं लड़कों की तरह ही और उनकी वेशभूषा में रहती हूं और मैं हमेशा ऐसे ही रहना चाहती हूं,  पर गाँव एवं समाज के अन्य लोग इस कारण मुझे हमेशा जज करते रहते हैं। मेरे पापा हमेशा मेरे साथ खड़े रहते हैं, इसलिए मेरा हौंसला बना रहता है।

मैं बी. ए फर्स्ट ईयर में हूं और अपने कॉलेज पैंट-शर्ट पहनकर जाती थी, एक बार कॉलेज में  एक क्लास के दौरान मेरे टीचर ने मुझसे पूछा कि तुम्हारा यही सिविल ड्रेस है? मैंने कहा हां, यही है, तो फिर उन्होंने मुझ से पूरी क्लास के सामने कहा कि अब तुम कॉलेज में आ गई हो, तो अब यह सब मत पहन कर आया करो। तुम सूट-सलवार पहन कर कॉलेज आया करो, जैसे सभी अन्य लड़किया पहन कर आती हैं।

मैंने उनके इस निर्णय को मानने से मना कर दिया, तो उन्होंने मुझे कॉलेज आने से मना कर दिया। जब हमारे 21वीं सदी के भारत के शिक्षित समाज के शिक्षक लड़कियों को लेकर लैंगिक भेदभाव के अपने दूषित विचार और ऐसे दृष्टिकोण रखेंगे, तो समाज में  महिलाओं को लेकर व्याप्त संकीर्ण एवं लैंगिक भेदभाव की  मानसिकता कैसे मिटेगी?

हम किसी के कपड़ों से उसकी मानसिकता या चरित्र को नहीं आंक सकते हैं, ज़रूरी नहीं है कि जो लड़की, लड़कों की तरह कपड़े पहनती है, तो उसका चरित्र या मानसिकता गलत है।

जब तक हमारे देश की शैक्षणिक संस्थाओं के शिक्षक, हमारे समाज की सभ्यता एवं संस्कृति के नाम पर होने वाले लैंगिक भेदभाव के खिलाफ उठने वाली हमारी आवाज़ में साथ नहीं देंगे, तो हम अन्य किसी से क्या उम्मीद रख सकते हैं? हर विद्यालय मे हर एक बच्चे को लैंगिक भेदभाव से इतर ऐसी शिक्षा देनी चाहिए और उन्हें यह बताना चाहिए कि कपड़ों के आधार पर आप कभी भी किसी की मानसिकता या चरित्र को आंक नहीं सकते।

यह बच्चे ही आगे जाकर हमारे एक नए समाज का निर्माण करेंगे, तभी हमारे समाज की महिलाओं को लेकर संकीर्ण एवं लैंगिक भेदभाव की मानसिकता समाप्त होगी कि किसी महिला को उसके कपड़ों की वजह से जज करना उचित नहीं है। अगर कोई महिला अगर सूट-सलवार पहन रही है, तो इसका मतलब है कि वह संस्कारी है और कोई महिला जीन्स और टी-शर्ट पहनती है, तो मतलब वह संस्कारी नहीं है। आखिर कब तक हम समाज में अपनी संकीर्ण दूषित मानिसकता से महिलाओं और लड़कियो को जज करते रहेंगे?

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