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अस्मिता के भीतर की करुणा ने फुटपाथ की “परी” को दिया जीवनदान

अस्मिता के भीतर की करुणा ने फुटपाथ की "परी" को दिया जीवनदान

करुणा किसी भी मनुष्य का अमूल्य मानवीय गुण है। करुणा और सहानुभूति में बहुत अंतर है। सहानुभूति के माध्यम से हम किसी भी प्राणी का दुख देखकर अफसोस करते हैं, जबकि इसके विपरीत जब हमारे मन में किसी प्राणी के प्रति करुणा के भाव का संचार होता है, तब हम उस प्राणी के कष्टों को महसूस करके, उन कष्टों को दूर करने का कोई उपाय करते हैं।

बाल आश्रम में मुक्त बाल मज़दूरों की दीदी व आश्रम की ट्रस्टी, अस्मिता सत्यार्थी मुंबई में अपने पति सुदीप मित्तल के साथ रहती हैं। उनके पास मुस्तफा नाम का एक गोल्डन रिट्रीवर डॉग है, जो मुंबई में ही अस्मिता व सुदीप के साथ रहता है। अस्मिता किसी भी प्राणी के दुख को देखकर संवेदित हो जाती हैं। एक दिन की बात है कि दोनों पति-पत्‍नी रोजाना सुबह-सबेरे सैर करने जाते हैं। उनको पता चलता है कि मुंबई के विले पार्ले में सड़क के किनारे फुटपाथ पर 5 महीने की एक पप्पी रस्सी से बंधी कराह रही है। दोनों तुरंत उस घायल पप्पी के पास पहुंच जाते हैं और उसे रस्सी से खोलकर गोद में उठाकर प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगते हैं।

अस्मिता तथा सुदीप ने आसपास के लोगों से पता किया किया कि आखिरकार ये पप्पी किसकी है? काफी पूछताछ करने के बाद पता चला कि कोई व्यक्ति इसको यहां बांध कर चला गया था। फुटपाथ पर कपड़ों पर प्रेस करने वाला व्यक्ति इसको कुछ खिला-पिला देता था। प्रेस करने वाले से पता चला कि ये पप्पी दिनभर दर्द से कराहती रहती थी।

अस्पताल में भर्ती परी की तस्वीर , फोटो ; साभार – अरविंद कुमार

पूरी कोशिश करने के बाद भी जब अस्मिता व सुदीप को पप्पी के मालिक का पता नहीं चला, तो वे पप्पी को अपने घर ले आए। उसका नाम रखा परी। अब परी सड़क से उठकर सुविधासम्पन्न घर में आ गई थी। एक तरह से परी का पुनर्जन्‍म हुआ था। अस्मिता व सुदीप ने परी को शैम्पू से नहलवाया और उसको आरामदायक बिस्तर पर सुलाया। परी के बारे में इस दंपति ने पशु चिकित्‍सकों से भी मशवरा किया तथा उनके अनुसार ही इस नन्‍हीं परी को खाना-पीना दिया, लेकिन परी की हालत में सुधार नहीं हुआ। उसे चलने में काफी दिक्कत हो रही थी और लंगड़ाकर बड़ी मुश्किल से इधर-उधर आती-जाती थी।

बाल आश्रम परिसर में परी व मुस्तफा प्रसन्नचित मुद्रा बैठे हुए, फोटो साभार; अरविंद कुमार

यह देखकर अस्मिता व सुदीप चिंतित रहने लगे और परी को डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने कहा कि इसे कोई गंभीर चोट लगी है। डॉक्टर ने परी का एक्स-रे किया। एक्स-रे देखकर डॉक्टर को बहुत आश्चर्य हुआ और बताया कि इसके पिछले सीधे पैर की हड्डी आठ जगह से टूटकर, टेढ़ी-मेढ़ी जुड़ गई है और उसमें खून का संचार बंद हो गया है। डॉक्टर ने आगे कहा कि आप सोच नहीं सकते कि पिछले 5-6 महीने से यह कितने भयंकर दर्द से गुज़र रही है। अगर एक महीने के अंदर इसका ऑपरेशन करके हड्डी नहीं निकाली गई, तो यह मर जाएगी। ऑपरेशन के बाद भी ये ज़िंदगी भर लंगड़ाएगी।

डॉक्टर की बातें सुनकर अस्मिता और सुदीप को गहरा आघात लगा। डॉक्टर ने ऑपरेशन सहित पूरे इलाज का खर्चा पचास हज़ार रुपये बताया। अस्मिता व सुदीप ने ऑपरेशन कराने का निर्णय लेने में एक मिनट भी नहीं लगाया और डॉक्टर को तुरंत ऑपरेशन करने को कहा।

नियत समय पर परी का ऑपरेशन हुआ। परी का ऑपरेशन कामयाब रहा। अस्मिता व सुदीप परी को घर ले आए, लेकिन वह अब भी दर्द से कराह रही थी। उस रात वह बिलकुल भी सो नहीं पाई और लगातार कराहती रही और सुदीप उसके साथ नीचे गद्दे पर ही सो गए। परी घर पर रहते हुए स्‍वस्‍थ होने लगी। कोरोना काल के दौरान अस्मिता व सुदीप दोनों राजस्थान स्थित बाल आश्रम आ गए। बाल आश्रम मुक्त बाल मज़दूरों का पुनर्वास केंद्र है। 4-5 महीने से परी बाल आश्रम में ही रह रही है। यहां पर मुक्त बाल मज़दूर उसके साथी बन गए हैं। वह मुक्त बाल मज़दूरों के साथ खूब खेलती है।

बाल आश्रम में रह रहे मुक्त बाल मज़दूर परी को इस तरह से पहचानने लगे हैं कि जैसे उसको भी खतरनाक फैक्ट्रियों से आज़ाद कराकर पुनर्वास के लिए बाल आश्रम लाया गया है। परी अब लंगड़ाती भी नहीं है, जबकि उसकी पिछली सीधी टांग के ऊपरी हिस्से में हड्डी नहीं है, फिर भी वह खूब तेज़ी से दौड़ती है।

अस्मिता व सुदीप ने समाज के सामने एक मिसाल पेश की है कि करुणा के हकदार सिर्फ हम मनुष्‍य ही नहीं हैं, बल्कि वे पशु-पक्षी भी हैं, जो बेजुबान हैं और अपने दुख-दर्द को हमसे साझा करना नहीं जानते और जिन्‍हें हमारी बेहद ज़रूरत है। आखिरकार करुणा कोई सिलेक्टिव चीज़, तो है नहीं। मनुष्‍य, जिसके प्रति पशु-पक्षी वफादार रहते हैं, आखिर वह मनुष्‍य उनके कब काम आएंगे?

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(लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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