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किताब समीक्षा : अविस्मरणीय कहानियों का संग्रह- बोहनी

किताब समीक्षा : अविस्मरणीय कहानियों का संग्रह- बोहनी

भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन अनुशंसा से सम्मानित कृति

भारतीय ज्ञानपीठ से छपी और यहीं से ‘नव लेखन अनुशन्सा सम्मान’ से सम्मानित कहानी संग्रह “बोहनी” की लेखिका भूमिका द्विवेदी हैं। नई उम्र के लेखक-लेखिकाओं के समूह में अपनी लेखनी, भाषा और कथानकों की विविधता के कारण वरिष्ठ साहित्यकार लगती हैं। लेखिका के कलम ने अपने आस-पास घटने वाली सामाजिक-पारिवारिक सच्चाइयों को उकेरने का दुर्लभ प्रयास किया है, जो नई वाली हिंदी रचनाकारों में देखने को कम ही मिलता है।

आजकल मसाला रचनाकारों की बाढ़ सी आई हुई है, ऐसे में भूमिका जैसे लोगों की साहित्य और समाज के प्रति ज़िम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, क्योंकि साहित्य को समाज का आईना जो कहा गया है। इस कहानी संग्रह में कहानी के विविध विषयों और प्रकार होने के कारण हम इसे किसी भी एक वाद या विमर्श में नहीं रख सकते, प्रत्येक कहानी अपने कथानक के कारण श्रेष्ठ है और नए प्रतिमान गढ़ रही है।

यदि भारतीय आर्थिक सुधारीकरण, अन्त्योदय या गरीबों के नाम पर हज़ारों-हज़ारों करोड़ों की वारे-न्यारे का करने वाली सरकारों के खोखले वादों का सत्य “दूध” कहानी बड़ी ही सहजता से उद्भेदन करती हुयी दिखती है। इसे केवल यहां तक ही महदूद रखना ठीक नहीं होगा, बाज़ार की सच्चाई या गरीब का कोई नहीं और माँ के प्रेम की अद्वितीयता और निर्तुलनात्मकता का भी भरपूर प्रकटीकरण है।

देश में दंगे होते नही हैं, करवाये जाते हैं। पुलिस की बर्बरता का शिकार दोनों समुदायों के लोगों को झेलना पड़ता है और पुलिसिया बर्बरता का घिनौना वीभत्स रूप कैसा हो सकता है? इसे “मायूस परिंदे” में गजब सलीके से उकेरा है। रेहन पर पांच बेटे, बहुत ही मार्मिक और पारिवारिक जीवन के कलह की कहानी है। इसमें तथाकथित अभिजात्य वर्ग की खोखली परतें उघाड़ती कहानी रस्म-ए-इजरा है।

शीर्षक कहानी “बोहनी” जहां वेश्या और ग्राहक का एक अद्भुत वार्तालाप एक अमर कहानी रच रही है, जो मन्टो की कलम से आगे निकलती दिखाई दे रही है। ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं कहा जाएगा, क्योंकि कहानी पढ़कर समझा और देखा जा सकता है ।

“केसर और कस्तूरी” में स्त्री होने के बाद भी एक परिपक्व प्रौढ़ शराबी की उस मनोदशा और जटिल होती परिस्थितियों का सूक्ष्म चित्रण मैंने अब तक हिंदी साहित्य में अन्यत्र नहीं देखा। “द लास्ट फ्लाइट” प्रभृति मार्मिक सम्बन्धों को बहुत कुशलता से खोलती कहानियां वैविध्य पूर्ण होने के साथ अर्थ पूर्ण भी हैं। इसलिए पाठकों को उबाऊ नहीं, बल्कि कौतूहल और नए आयाम से भरती लगती है।

यदि भाषा की बात करें, तो भूमिका की कलम सर्वोच्चता का अहसास कराती है। ‘हिंदुस्तानी ज़ुबान’ (उर्दू मिश्रित हिंदी) कहीं-कहीं मुहावरा, शेरों-शायरी और श्लोकांश का प्रयोग भी है। किसी भी कहानी संग्रह को श्रेष्ठ बनाने वाली सारी सामग्रियां इसमें हैं। नए मुहावरों को गढ़ती हुई परिपक्व और मंजी हुई कलम किसी सिद्धहस्त साहित्यकार का दर्शन कराती है। क्या लचीली, प्रवाहयुक्त सरल, सहज भाषा, क्या कथानक, कसी हुई चुस्त शैली और कहानी, ये सब एक अमर और हमेशा याद रखी जाने लायक रचना करती है।

इत्तिफाक की ही बात है कि इस किताब का नाम बोहनी है और लेखिका की हिंदी में पहली किताब है। सुबह-सुबह जब दुकानदार पहला सामान बेचता है, तो उसे ‘बोहनी’ करना कहते हैं और हिंदी में भूमिका जी की पहली किताब का नाम भी “बोहनी” है। दुकानदार को ये कहते सुना होगा कि बढ़िया बोहनी हुई है, मेरा मानना है साहित्य की दुनिया में इस “बोहनी” नाम की किताब से एक मील का पत्थर रखने की भूमिका दर्ज़ की जा चुकी है।

 

 

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