आज कल मैं युवा कथाकार व उपन्यासकार भूमिका द्विवेदी की अब तक प्रकाशित सम्पूर्ण रचनाओं को पढ़ रहा हूं। भूमिका को वर्तमान हिंदी साहित्य जगत में सर्वोत्कृष्ट व सर्वाधिक वैविध्यपूर्ण लेखिका कहा जाए, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
आज आसमानी चादर, जो उनका पहला उपन्यास है। उसको पढ़ा और इस उपन्यास को एक शराबी लड़की की बौद्धिक आत्मकथा कहा जाए या अपने घर से कोसों दूर किसी शहर में अध्ययन के लिए गई लड़की की विश्वविद्यालयी ज़िंदगी का संस्मरण या जेएनयू की फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाली लड़की की कहानी है। बहरहाल जो भी कहा जाए उपन्यास की भाषा और विविधता आकर्षक और गंभीर, तो है ही और इसके साथ नए-पुराने का बेहतरीन समायोजन भी है।
इस उपन्यास में तीन-तीन विश्वविद्यालयों, कई शहरों-देशों का मिलन, बार से विष्णु मंदिर हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के मज़ार तक की यात्रा में साथ-साथ चलते रहना, किसी लड़की की शादी नाबालिग होने पर भी होना, गृह क्लेश और माँ-बाप में अलगाव की स्थिति में बेटी को केवल माँ का संरक्षण प्राप्त होना आदि कहने का अभिप्राय यह है कि उपन्यास में बहुत सारा घटनाक्रम चल रहा है और उसके साथ-साथ प्रेम भी निर्बाध रूप से चल रहा है, जो इसे उत्कृष्ट, गंभीर, सरल और सामान्य से बहुत उत्कृष्ट बनाता है।
यह उपन्यास मीरा स्मृति पुरस्कार से सम्मानित है, मैंने थोड़ा इसकी तह तक जाने का प्रयास किया, तो प्रयागराज के कुछ साहित्य प्रेमी लोगों से मालूम हुआ कि चयन समिति में दूधनाथ सिंह जैसे दिग्गज और वरिष्ठ साहित्यकार भी थे। इस पुरस्कार को देने के दौरान ममता कालिया जैसी वरिष्ठ लेखिका ने मुक्तकंठ से इस उपन्यास की प्रशंसा की, मेरे यहां इसके बारे में चर्चा करने का अभिप्राय इसके बारे में एकपक्षीय दृष्टि से आपको अवगत कराना कतई नहीं है।
भारतीय समाज की रूढ़ता को कैसे प्रेम उन्मूलन कर रहा है? इसे भी आप यहां एक प्रसंग में देख सकते हैं। जातिवाद के घातक कीटाणु कैसे भावनात्मक रूप से लोगों के अवचेतन पर अपना निवास बनाए हुए हैं।
इस उपन्यास में विश्व के विभिन्न भाषाओं के सर्वोत्कृष्ट कवियों-लेखकों की रचनाओं का उद्धरण पेश किया है, जैसे- थॉमस हार्डी, कालिदास, इब्राहिम जौक। शायद, इसी कारण लेखिका की पहली रचना ही साहित्य पुरस्कार के लिए सम्मानित हुई और वो जल्द ही वर्तमान हिंदी साहित्य के सर्वोत्कृष्ट रचनाकारों की पंक्ति में शुमार हो गईं।
भाषा और वाक्य विन्यास का प्रबंधन, तो इसमें देखते ही बनता है। सबसे अज़ीब बात तो यह है कि उपन्यास की नायिका कितने रंग देखती है और शर्मीली सी लड़की लोगों के दिमाग में स्थापित महिला छवि को तोड़ते हुए स्वयं को जेएनयू रूपी खेल के मैदान में डट कर खड़ी है। प्रोफेसर से कुलपति तक को व्यंग्य में क्या-क्या कह देना पाठक को सुखद लगता है। शेरों-शायरी, श्लोक, चौपाई और अंग्रेज़ी साहित्य से भी उद्धरण का प्रयोग लेखिका के गम्भीर अध्ययन की झलक है।
मैं इनके पांचों उपन्यास और दोनों कहानी संग्रहों को पढ़ने के बाद इस तथ्य को रख रहा हूं कि मुझे इस स्थापित लेखिका में प्रचुर संभावनाएं और अद्भुत भविष्य दिखता है।