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क्या आयुष्मान कार्ड योजना केवल कागजों में ही लाभार्थियों को लाभ देती है?

क्या आयुष्मान कार्ड योजना केवल कागजों में ही लाभार्थियों को लाभ देती है?

हाल ही में मध्य प्रदेश का एक नामी अस्पताल चर्चा में है या यूं कहे कि विवादों में है। उस अस्पताल का नाम चिरायु अस्पताल है, इसका प्रमुख कारण है कि अस्पताल के मैनेजर गौरव बजाज का वायरल वीडियो जिसमें वो मरीज़ के पुत्र योगेश बलवानी को ज्ञान देते नज़र आ रहे हैं या सीधे शब्दों में कहें कि भारत सरकार की आयुष्मान भारत योजना की धज्जियां उड़ाते हुए नज़र आ रहे हैं। वे इतने पर ही नहीं रुके, बल्कि वह वीडियो में मरीज़ के पुत्र को अस्पताल से गेट आउट भी कहते नज़र आ रहे हैं।

अब जाहिर सी बात है कि यह बात वो लता मंगेशकर या रफी साहब जैसी मधुर आवाज़ो में तो कह नहीं रहे होंगे, वो इस वीडियो में कुछ इस तरह ज्ञान देते हुए दिख रहे हैं जैसे किसी फिल्म में कोई कैदी, जेलर साहब की विशुद्ध अंग्रेज़ी में गालियां खा रहा हो। हालांकि, चिरायु मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डा. अजय गोयनका ने वीडियो से इस बात का साफ-साफ खंडन किया है।

आयुष्मान कार्ड योजना के लाभार्थी को अस्पताल ने चिकित्सा सुविधा देने से किया इनकार

वीडियो में यह साफ नज़र आता है कि अस्पताल के प्रबंधक गौरव बजाज ने आयुष्मान कार्ड होने पर भी योगेश बलवानी की मां का इलाज करने से मना कर दिया और साथ ही सुरक्षाकर्मियों से धक्के देकर बाहर करवा दिया।  इसके साथ ही बलवानी ने उनकी मां की मृत्यु होने के बाद भी मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दिए जाने का अस्पताल प्रशासन पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं। इस मामले में आयुष्मान भारत के सीईओ एस. विश्वनाथ ने भोपाल कलेक्टर से रिपोर्ट भी मांगी है। उन्होंने कहा कि जो अस्पताल योजना में अनुबंधित हैं और वो इलाज से इंकार नहीं कर सकते हैं। वायरल वीडियो के आधार पर कलेक्टर अविनाश लवानियां ने अस्पताल प्रबंधन को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

सत्य चाहे जो भी हो पर एक बात, तो हम भलीभांति जानते हैं  कि इस तरह की घटनाएं होती रही हैं, हो रही हैं और तब तक होती रहेंगी, जब तक हम सिर्फ एक पीड़ित की तरह व्यवहार करेंगे और हम अपनी आवाज़ बुलंद नहीं करेंगे। यहां यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि हम ईमानदार रहें, मसलन एक फर्जी शिकायत सैंकड़ों वाज़िब और वास्तविक शिकायतों की विश्वसनियता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकती है।

एक बार चाहें हम अपने जीवन में शायद थाना-कोर्ट-कचहरी के दर्शन करने से बच भी जाएं, पर स्कूल-कॉलेज, रेल-बस और अस्पताल कुछ ऐसे संस्थानों में से हैं, जिनसे हम बच नहीं सकते। ये हमारे जीवन का हिस्सा हैं, इनमें कोई भी गड़बड़ी सीधे तौर पर हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करती हैं।

किसी गंभीर बीमारी और प्राइवेट अस्पताल का संयोजन अक्सर मरीजों को दिवालिया बना जाता है। आप कोई भी अखबार उठा लीजिए, कोई ना कोई खबर ऐसी ज़रूर होगी जिसमें किसी गरीब और ज़रूरतमंद व्यक्ति का बैंड बजने का जिक्र ज़रूर हुआ होगा और यह जिक्र आपको बीते समय के अखबारों में भी मिलेगा, आज भी मिल रहा है और यदि हमने अपनी आवाज़ बुलंद नहीं की, तो कल भी मिलेगा। अब वक्त है सामूहिक प्रयासों का और हमने अब नहीं किया तो, फिर कभी नहीं होगा।

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