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कार्यकर्ता : एक इंसान जो अपने जीवन से ज़्यादा, अपने विचारों की जंग को ज़िंदा रखता है

शीर्षक – कार्यकर्ता

बैठकों से लेकर सभाओं तक
घर से लेकर पूरे शहर तक
अपनी जी जान लगा देता है
बस इसी बात के लिए अब जीतेंगे

हार जीत का सबसे ज़्यादा फर्क
उसको ही पड़ता है
नेता आते हैं जाते हैं
कार्यकर्ता वहीं रह जाता है
आशाओं उमंगों की दुनिया में खड़ा

एक इंसान जो अपने जीवन से ज़्यादा
अपने विचारों की जंग को ज़िन्दा रखता है
अपने आदर्शों को दिल में समाए
जूझता रहता है इस दोगली दुनिया से

तब टूटता है कार्यकर्ता
जब संकट में साथ नहीं देता कोई
फिर भी कलेजे पर हाथ रख
जलाए रहता है विचारधारा की ज्वाला
क्योंकि उसी ने उसको जिंदा कर रखा है
बाकि मौन मूर्तियों ने तो
उसके कत्ल की आह तक नहीं सुनी

जलते घरों को देख
बौखला जाता है
अपनों के फोन ना लगने पर सहम जाता है
किसी से कुछ कहता नहीं
पर अंतर द्वंद मे मारा जाता है कार्यकर्ता
बैठकों से लेकर सभाओं तक
घर से लेकर पूरे शहर तक
अपनी जी जान लगा देता है कार्यकर्ता

-अघोरी अमली सिंह

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