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कविता : आम जन की जान से ज़्यादा चुनाव में प्रचार करना है ज़रूरी

आम जन की जान से ज़्यादा चुनाव में प्रचार करना है ज़रूरी
चुनाव में है करना प्रचार ज़रूरी
ऑक्सीजन की ना बातें ना बेड मंजूरी
दवा मिले ना मिलता टीका आराम से
बैठे हैं चुपचाप जरा दिल को थाम के
आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से
खांसी किसी को आती तो ऐसा लगता है
यम का है कोई दूत घर पर आ गरजता है
छींक का वही असर है जो भूत नाम से
बैठे हैं चुपचाप जरा दिल को थाम के
आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से
हां, हां अभी तो उनसे कल बात हुई थी
इनसे भी तो परसो हीं मुलाकात हुई थी
सिस्टम की बलि चढ़ गए थे बड़े काम के
बैठे हैं चुपचाप जरा दिल को थाम के
आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से
एम्बुलेंस की आवाज़ है दिन-रात चल रही
श्मशान में चिताओं की बाढ़ जल रही
सहमा हुआ सा मन है आज  राम नाम से
बैठे हैं चुपचाप जरा दिल को थाम के
आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से
भगवान ,अल्लाह, गॉड सारे चुप खड़े हैं
बहुरुपिया कोरोना  बड़े रूप धरे है
देवियां सब रह गई है बस ही नाम की
बैठे हैं चुपचाप जरा दिल को थाम के
आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से।
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