Site icon Youth Ki Awaaz

“किसी भी बात को छोटा या बड़ा करना हम पर निर्भर करता है”

"किसी भी बात को छोटा या बड़ा करना हम पर निर्भर करता है"

हम सब अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं। ज़िंदगी मे सुख और दुःख का आना किसी के हाथ में नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि किसी भी बात को छोटा और बड़ा करना अपने हाथों में होता है।

ज़िन्दगी में बहुत से ऐसे मोड़ आते हैं, जो ज़िन्दगी के कुछ पलों के लिए बहुत ही खतरनाक होते हैं, लेकिन कुछ हंसी-खुशी इस परेशानी को हल कर लेते हैं, तो कुछ कठिनाइयों का सामना करके उस परेशानी को दूर करते हैं।

हमें चिंता के बजाय परेशानी का हल सोचना चाहिए

जी, बिल्कुल किसी भी बात को छोटा या बड़ा करना खुद पर निर्भर करता है। हम किसी-किसी बात की इतनी टेंशन ले लेते हैं, जितनी बड़ी बात नहीं होती और कई बार बड़ी बड़ी टेंशन की भी जरा सी भी चिंता नहीं करते हैं। उस समय हमारे दिमाग में यही बात आती है कि जो होगा वो देखा जाएगा।

कई बार किसी सामान को एक जगह रखे जाने पर भी इतनी बड़ी समस्या लगती है कि जैसे बहुत बड़ी समस्या सामने आ कर खड़ी हो चुकी हो। यह सब कुछ अपने दिमाग पर निर्भर करता है। हम किसी बात को किस तरह से समझ रहे हैं। हमारे लिए वह कितनी ज़रूरी है।

वह परेशानी हमारे लिए है भी या नहीं

कई बार हम बिना वजह के भी परेशानी खुद पर ले लेते हैं, जिनका हमसे कोई लेना-देना भी नहीं होता है जैसे मोहल्लों की लड़ाई होना, गली में गंदगी होना और ऐसी अनेक बेफिजूल की बातों को हम बेवजह अपनी परेशानी बना लेते हैं।

हम जानते हैं कि इन सभी का हल हमारे पास नहीं है, लेकिन दिमाग इन सभी को सोचकर चिंता में आ जाता है और ऐसा लगता है कि हम बस उसी बात में लगे हुए होते हैं कि पता नहीं, यह परेशानी कैसे हल होगी? कुछ बातें ज़रूरी भी होती हैं, लेकिन हमें सबसे पहले किसी भी परेशानी को समझना चाहिए और फिर उस परेशानी के बारे में सोचना चाहिए।

अगर, आपको लगता है कि हम इस बात का हल निकाल सकते हैं, तो ज़रूर कीजिए, लेकिन यह भी देख लीजिए की अगर समाज की परेशानी है, तो समाज उस परेशानी से सम्बन्धित आपके सुझाव लेना भी चाहता है या नहीं। इसलिए हमें परेशानी को भी देखना चाहिए। हमें किस-किस बातों पर अपने विचार रखने चाहिए, ताकि किसी को परेशानी भी ना हो और वह हल भी हो जाए।

सभी के जीवन में एक जैसी परेशानियां 

हां,सभी के जीवन मे कुछ परेशानियां भी नहीं, उन्हें हम चिंता कह सकते हैं जैसे- बच्चों की पढ़ाई को लेकर, काम- काज को लेकर, बच्चों के भविष्य को लेकर सैकड़ों ऐसी चिंताए हैं, जो हमारे दिमाग में हर वक्त रहती हैं। जिनको देखकर आज ही को लेकर नहीं, बल्कि हमें भविष्य को लेकर भी चिंताएं होती हैं।

लेकिन, मुझे लगता है चिंता होना किसी बात का रास्ता नहीं है, बल्कि उस रास्ते को कठिन करना है। हमे चिंता नहीं, बल्कि उनका हल सोचना चाहिए।

बचपन की मेरी एक छोटी सी कहानी

आज इसी चिंता की बात को लेकर, मैं अपने बचपन के जीवन की सत्य बात आपके सामने रख रहा हूं।

जब मैं इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता था। उस समय मेरी उम्र लगभग 6 वर्ष थी। एक बार छुट्टी के समय मेरी बस स्कूल में नहीं आई और मैं स्कूल के सामने खड़ा हुआ था। जहां से बस बच्चो को उतारती या लेकर जाती थी। बहुत समय बीत गया था और सभी बच्चे अपने घरों पर चले गए थे। स्कूल के आस-पास कोई भी नहीं था। मुझे बहुत घबराहट होने लगी थी। मुझे स्कूल से लगभग 10 किलोमीटर दूर अपने घर जाना था।

 मैं लगभग दो घंटे तक वहां खड़ा रहा। मुझे लगा कि बस कहीं फंस गई है, बस आती ही होगी। कुछ देर बाद स्कूल के पास एक खोका (अस्थाई दुकान) था, मैं वहां पहुंचा और मैंने एक अंकल जी से कहा मेरी बस नहीं आई है। यदि आप अगर उस तरफ जा रहे हैं, तो मुझे मेरे घर छोड़ देंगे और अंकल जी ने मुझे मेरे घर सकुशल पहुंचा दिया। जिनका मैं आज भी शुक्रिया अदा करता हूं।

मैंने भी उस समय सही फैसला लिया था, लेकिन हां, एक डर भी था कि यह आदमी मुझे कही और ना ले जाए। इसलिए हमें हर परेशानी में समझदारी से काम करना चाहिए। परेशानियां सभी के जीवन में हैं। अब आप पर निर्भर करता है कि आप उस परेशानी को किस तरह से सोच रहे हैं? कठिन तरीके से या सरल तरीके से।

Exit mobile version