इजरायल में यह बात आम है कि वहां नागरिक गाज़ा पट्टी में इजरायल के हवाई हमलों का कुर्सी बिछाकर, हाथ में पॉप कॉर्न और सॉफ्टड्रिंक के साथ लुफ्त उठाते हैं। गोया जैसे गाज़ा कोई खेल का मैदान हो और फिलिस्तीनियों की तबाही उनके लिए खेल हो। बिल्कुल यह खेल ही है, जिसमें फिलस्तीनियों की तबाही पर इजरायल में बैठे दर्शक ताली बजाते हैं, खुशी से झूम उठते हैं, लो यह गिरा एक और इमारत हुर्रे।
यह खेल ही है, दुनिया के लिए भी जिसमें फिलिस्तीनियों के समर्थक देश भी पर्दे के पीछे इजरायल से गलबहियां डालने से कतराते नहीं हैं और फिर अपने देह पर लगे खून को धोकर फिलिस्तीन के समर्थन में बैठ जाते हैं। पर, उस गंध का क्या करेंगे? जो आत्मा से बाहर आती है। निर्दोष फिलिस्तीन बच्चों की लाशें अभी भी दुनिया की आत्मा में सड़ रही होंगी, बशर्ते शरीर में अगर आत्मा अभी सांसे भर रही हों।
इजरायल बीते कई दशकों से हूबहू वही दोहरा रहा है, जो नाजियों ने उसके साथ किया था। नाज़ीवाद की ज़मीन जातीय शुद्धता के पागलपन पर टिकी है और इस लिहाज से यहूदी आज अपने पिछले शोषक के वैचारिक अनुयायी बन चुके हैं। कल जिन यहूदियों के पास दुनिया में पहचान का संकट गहराता जा रहा था, संघर्ष अपने ही वजूद को बचाए रखने का था, वह आज फिलिस्तीनियों के पहचान को दुनिया के नक्शे से मिटाने को बेताब है।
वेस्टबैंक में फिलिस्तीनियों का घटाकरण, वेस्टबैंक से फिलिस्तीनियों का विस्थापन और विवादित ज़मीन (फिलिस्तीन दावे वाले हिस्से पर) पर बलपूर्वक अवैध तरीके से इजरायली बस्तियां बसाना और लगातार बसाते चले जाना। जब साम्राज्यवाद दोनों हाथों से गला दबा रहा हो, तब इजराइली निरंकुशता के कोप को भोग रहे फिलिस्तीनियों का संघर्ष साम्राज्यवादी गुलामी के खिलाफ सांसे लेते रहने का संघर्ष है। किसी भी ज़िंदा कौम को हमेशा गुलाम बनाए रखना असंभव है।