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आइए जानते हैं कुत्तों के इतिहास के बारे में और उन आक्रामक कुत्तों के बारे में जिन्हें पालने पर प्रतिबंध है

आइए जानते हैं कुत्तों के इतिहास के बारे में और उन आक्रामक कुत्तों के बारे में जिन्हें पालने पर प्रतिबंध है

सदियों से जंगल तथा मनुष्यों के बीच रहने वाले पालतू पशुओं में भेड़िया कुल की प्रजाति का एक महत्वपूर्ण प्राणी है कुत्ता, इसकी मादा को कुतिया व शावक को पिल्ला कहते हैं। कुत्ते का वैज्ञानिक नाम कैनिस फैमिलियर्स एवं औसत जीवनकाल लगभग 12 से 16 साल तक का होता है। ये सर्वाहारी जीव हैं, जो मांस, सब्जियां, रोटी बिस्कुट आदि सभी चीज़े खा सकते हैं।

पश्चिमी यूरोप में 11-16,000 साल पहले से कुत्ते शिकार को पकड़ने में सहायता और घर व शिकारियों को सुरक्षा प्रदान करते थे, लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ कुत्ते, मानव जीवन और परिवार का हिस्सा बन गए। कुछ कुत्ते कुशल ट्रैनर द्वारा प्रशिक्षित होने के बाद पुलिस विभाग में डॉग स्क्वायड के रूप में अपनी विशिष्ट सेवाओं के लिए पहचाने जाते हैं, तो कई रूपहले पर्दे के कलाकार बनकर एक अच्छे अभिनय के लिए आज भी याद किये जाते हैं।

वैसे, तो दुनिया भर में कुत्तों की कई नस्लें पाई जाती हैं, लेकिन कुत्तों की श्रृंखला में ग्रेट डैन, बॉक्सर, जर्मन शेफर्ड जैसे डॉग्स सबसे खतरनाक और वफादार माने जाते हैं, क्योंकि कुत्ते अपने मालिक के प्रति वफादार होते हैं।  इसलिए खतरा महसूस होने पर ये कई बार, तो उनके लिए अपनी जान पर भी खेल जाते हैं, तो चलिए आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से दुनियाभर के ऐसे ही 10 खतरनाक डॉग ब्रीड्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इतने खतरनाक हैं कि इनमें से कई कुत्तों को पालने पर बैन लग चुका है।

पिट बुल

दुनियाभर के कई देशों में प्रतिबंधित पिट बुल प्रजाति के कुत्ते सबसे खतरनाक और आक्रामक माने जाते हैं। सबसे ज़्यादा अटैक करने के मामले सामने आने के बाद ज़्यादातर लोग इस ब्रीड को पालतू डॉग के रूप में घर पर रखने से डरते हैं। बुलडॉग और टेरियर नस्ल के विदेशी कुत्ते से क्रॉसब्रिडिंग के कारण पिटबुल डॉग में बुलडॉग जैसी ताकत और टेरियर नस्ल के कुत्ते जैसी क्षमता पाई जाती है। पिटबुल नस्ल के कुत्ते की पहचान करना बहुत ही कठिन होता है। अमेरिकन पिटबुल टेरियर, अमेरिकन स्टैफर्डशायर टेरियर, अमेरिकन बुली, स्टैफर्डशायर बुल टेरियर जैसे कुत्तों की कई नस्लें पिटबुल श्रेणी के अंतर्गत आती हैं।

पिटबुल मेल डॉग की ऊंचाई 18 से 22 इंच और औसतन वजन 16 से 26 किलोग्राम होता है तथा फीमेल डॉग की ऊंचाई 16 से 20 इंच और वजन 15 से 22 किलोग्राम व उम्र 12 साल तक होती है। फीमेल डॉग एक बार में औसत 5 से 10 बच्चों को जन्म देती है। इसकी खोपड़ी बड़ी, चेहरे की मांसपेशियां व जबड़े विकसित होते हैं और ये सिर को बहुत अधिक हिलाते हुए मज़बूती व दबाव के साथ गहराई तक काटते हैं। बाल भी छोटे होने के कारण इनकी ज़्यादा केयर नहीं करनी पड़ती है। इनमें से कई नस्लों को मूलरूप से क्रॉस बाउंडिंग, बुल बाइटिंग, बैल जैसे बड़े जानवरों से लड़ने के लिए विकसित किया गया था, लेकिन खूनी खेल में कुत्तों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण इनका इस्तेमाल पालतू जानवर के रूप में किया जाने लगा।

यह बहुत ही फुर्तीला, समझदार, मिलनसार व शक्तिशाली डॉग ब्रीड है, इसे जंजीरों में बंधे रहना और एकांतवास पसंद नहीं, ऐसी स्थिति में परेशान होकर यह कभी भी किसी पर अटैक कर सकता है चाहे वह मालिक या परिवार का कोई भी सदस्य क्यों ना हो। इसलिए बचपन से ही इसे परिवार के सदस्य की तरह स्वतंत्र रखते हुए बेहतर ट्रेनिंग देनी चाहिए। सन 2015 में इसके हमले से 28 लोगों के मौत की पुष्टि होने के बाद अमेरिका सहित कई अन्य देशों में भी पिट बुल को बेहतर ट्रैनर की देखरेख में ही पाला जाता है।

जर्मन शेफर्ड

प्राचीन समय से यूरोप में बेल्जियम शेफर्ड, जर्मन शेफर्ड और डच शेफर्ड नाम की तीन कुत्तों की नस्लें घरों की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल की जाती थीं। सन 1899 में वॉन स्टिफनीटज नाम के एक व्यक्ति ने डॉग शो के दौरान अपने कुत्ते को पहला जर्मन शेफर्ड कुत्ता घोषित किया था। तब से कुत्तों की इस नस्ल का नाम जर्मन शेफर्ड पड़ा। ये परिवार के सभी सदस्यों व जानवरों के साथ घुलमिल कर रहते हैं, लेकिन अंजान व्यक्ति से हमेशा सावधान रहते हैं। इस प्रजाति के कुत्तों में झुंड का नेतृत्व करने का गुण होता है।

मध्यम आकार के कुत्तों की नस्ल माने जाने वाले नर जर्मन शेफर्ड की ऊंचाई 24 से 26 इंच और वजन 30 से 40 किलोग्राम, मादा की ऊंचाई 22 से 24 इंच और वजन 20 से 35 किलोग्राम तक होता है तथा जीवनकाल 9 से 13 वर्ष का होता है। ये ज़्यादातर काले अथवा दो मिले जुले रंगों में पाए जाते हैं। इनके सूंघने की क्षमता भी बहुत अधिक होती है। कुशल ट्रेनर से प्रशिक्षण के बाद ये नशीले पदार्थों, विस्फोटकों, संदिग्धों का पता आसानी से लगा लेते हैं। इनकी बुद्धि और ताकत के कारण ही इनका इस्तेमाल पुलिस, गार्ड, खोज और बचाब कार्यो के लिए किया जाता है।

रॉटविलर

बीसवीं शताब्दी से पहले जर्मनी के रॉटविले शहर के कसाइयों द्वारा दूध की छोटी गाड़ियों को खींचने में इस्तेमाल किये जाने वाले जर्मन नस्ल के रॉटविलर डॉग अपनी उपयोगिता के कारण दुनिया भर में 20 वीं शताब्दी के लोकप्रिय कुशल गार्ड कुत्ते बन गए। यह शारीरिक रूप से मज़बूत, बुद्धिमान, फुर्तीला और बहादुर जानवर है, जिसके शरीर में तांबे के रंग के निशान के साथ एक छोटा काला कोट होता है जो, पल भर में तेज गति के साथ हमला करते हुए किसी को भी काटने में माहिर होते हैं। इसका वजन 35 से 48 किलो के बीच होता है। अमेरिका में सन 1993 से 1996 के बीच हुई कई लोगों की मौत एवं सन 2014 में हुई 3 लोगों की मौत रॉटविलर प्रजाति के कुत्तों के काटने से हुई थी। कई देशों में इसे पालने पर प्रतिबंध है।

डोबर्मन पिंसर

जर्मन कर संग्रहकर्ता कार्ल फ्रेडरिक लुई डोबर्मन ने स्वयं की सुरक्षा पर होने वाले खर्च से परेशान होकर 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रॉटवेलर और वेईमारानर जैसे कुत्तों के क्रॉस से एक नई नस्ल बनाने का कार्य किया, जिसे आज सभी डोबर्मन के नाम से जानते हैं। जो सबसे अच्छे गार्ड कुत्तों में से एक व एथलेटिक कुत्ता माना जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि पहला डोबर्मन 1908 में संयुक्त राज्य अमेरिका आया था, लेकिन यह शताब्दी के अंत तक नहीं था।

द्वितीय विश्व युद्ध में जब डोबर्मन को जर्मनी भेजा गया और कुत्तों की हुई दौड़ में इसने प्रशंसकों को आकर्षित किया था, तब सन 1921 में डोबर्मन अमेरिका के पिंसर क्लब की स्थापना हुई थी। कई देशों ने इस देश में प्रजनकों के साथ लोकप्रियता हासिल की। डोबर्मन पिंसर बहुत ही असाधारण शक्तिशाली, ऊर्जावान व मेहनती कुत्तों की नस्लों में से एक है, जिसमें नर डोबर्मन कुत्ते लगभग 60 सेमी लंबे होते हैं और इनका वजन लगभग 34 से 35 किलोग्राम के बीच होता है। जबकि मादाएं थोड़ी छोटी होती हैं।

डोबर्मन पिंसर का सिर लंबा, शरीर चिकना-पेशीदार व कान खड़े होते हैं और इनकी पूंछ को आमतौर पर कम डॉक किया जाता है। डोबर्मन पिंसर का काले, गहरे लाल, नीले या चेहरे, शरीर और पूंछ पर जंग-रंग के निशान के साथ झुका हुआ एक छोटा, चिकना और चमकदार कोट होता है। डोबर्मन की उम्र लगभग 10 से 12 साल तक होती है।

यह प्रशिक्षित, विश्वासपात्र, समर्पित और अपने मालिकों के प्रति वफादार होते हैं। यह अकेला रहना पसंद नहीं करता, बल्कि अपने मालिक व उसके परिवार के साथ स्थाई संपर्क करना पसंद करता है। वैसे, तो डोबर्मन पिंसर प्रजाति के कुत्ते पुलिसिया डॉग होते हैं, लेकिन अब आम लोग भी इसे घरों में पालने लगे हैं। यह खतरनाक कुत्ता अजनबी लोगों पर आक्रामक हो जाता है, लेकिन मालिकों के इशारों को समझकर शांत भी हो जाता है। कुछ एक घटनाओं के अतिरिक्त इसके काटने से संबंधित ज़्यादा कोई खबर नहीं है। कई देशों में इसे पालने पर प्रतिबंध है।

बुलमास्टिफ

19 वीं शताब्दी में इंग्लैंड के गेममेकरों ने शिकारियों से सम्पदा की रक्षा करने के लिए बुलमास्टिफ डॉग की नस्ल को विकसित किया था। यह एक बड़े आकार का घरेलू नस्ल वाला कुत्ता है। मास्टिफ और बुलडॉग जैसे कुत्तों के क्रॉस से बुलमास्टिफ डॉग की एक नई नस्ल तैयार की गई, जो मास्टिफ़ की तुलना में तेज़ और अधिक आक्रामक और बुलडॉग के समान विशालकाय आकार के क्रूर, आज्ञाकारी एवं बिना किसी विशेष गार्ड प्रशिक्षण के अपने घर व मालिक के प्रति वफादार हुआ करते थे।

सन 1933 में अमेरिकन केनेल क्लब ने बुलमास्टिफ्स को मान्यता दी। बुलमास्टिफ के रंगों में लाल, फॉन या ब्रिंडल शामिल हैं। इसके पैर लंबे और वजन 50 से 60 किलोग्राम तक होता है। सन 2014 में अमेरिका के न्यू जर्सी में इसके काटने से एक 13 साल के बच्चे और टेक्सास में इसके अटैक से एक बच्चे की मौत हो चुकी है।

पशु चिकित्साधिकारी फिरोजाबाद डॉ. आदित्य कुमार ने बताया कि वफादारी व सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए आजकल बहुत से लोग घर में पपी या डॉग पालना पसंद करते हैं। इसलिए हमेशा इंसान को कुत्ते काटने का खतरा बना रहता है। समय समय पर कुत्ते को केनाइन डिस्टेम्पर, हेपेटाइटिस, पार्वोंवाइरस, रेबीज़ आदि के टीके लगवाना बहुत ज़रूरी होता है। टीकाकरण ना सिर्फ पपी व डॉग को रोगों से बचाता है, बल्कि उसके काटने के संभावित संक्रमण आदि खतरों से भी अन्य लोगों को बचाता है।

पहला डीपी वैक्सीन करीब 4 सप्ताह के बाद पपी को लगाया जाता है। इसमें केनाइन डिस्टेंपर वायरस और केनाइन पर्वो वायरस होते हैं। नौ तरह की बीमारियों से बचाने की क्षमता रखने वाला नाइन-इन-वन वैक्सीन छह हफ्ते पर लगाया जाता है। आठ हफ्ते की उम्र में डॉगी को कोरोना वैक्सीन लगाई जाती है। यह वैक्सीन पपी को केनाइन एडिनोवायरस टाइप-2 से बचाता है। 12वें सप्ताह के पपी को एंटीरैबीज वैक्सीन लगाया जाता है, जो उसे रेबीज़ से बचाता है और 16वें सप्ताह में केनल कफ वैक्सीन दी जाती है, ताकि वो विभिन्न प्रकार की घातक बीमारियों से बच सके। टीके लगाने से कुत्ते का इम्यून सिस्टम बीमारी को रोकने मे सक्षम हो जाता है। इसके बाद पपी को समय-समय पर डिवार्मिंग डोज भी देनी चाहिए।

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