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“मोदी जी का नया बंगला और चौपट होती हमारी जैव विविधता”

मोदी जी का नया बंगला और चौपट होती हमारी जैव विविधता

22 मई को वर्ल्ड बायोडायवर्सिटी डे था, जिस रोज़ दिनभर वर्चुअल गोष्ठी से लेकर वर्चुअल सभाओं का आयोजन किया गया। सामान्य वक्त होता तो हर जगह मंचों पर माला-दुशाला आदि का भी प्रपंच होता।

दुनिया भर में तापमान बढ़ रहा है। ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं, दुर्लभ पेड़-पौधे, जीव-जंतु लुप्त हो रहे हैं। अभी हाल ही में खबर आई है कि अंटार्कटिका में दुनिया का सबसे बड़ा आइसबर्ग टूटकर अलग हो गया, जिसकी लंबाई ही 170 किलोमीटर और चौड़ाई 25 किलोमीटर थी। आइस बर्ग यानी किसी ग्लेशियर से टूटकर अलग हो जाने वाला मीठे-साफ पानी का एक विशाल टुकड़ा।

दुनिया भर में जैव-विविधता को बढ़ाने और उसके संरक्षण पर काम हो रहे हैं। बस हमारा देश ‘आर्यावर्त’ ही ऐसा अनोखा है, जहां जैव-विविधता का सत्यानाश करने वाला हर संभव काम पूरे मनोयोग के साथ सरकारी स्तर पर हो रहा है।

इसका सबसे ताजा उदाहरण सेंट्रल विस्टा है। अच्छे-खासे बने पार्लियामेंट के बावजूद, नई पार्लियामेंट और मोदी का नया बंगला पूरे गाजे-बाजे के साथ तैयार हो रहा है, जिसके लिए सेंट्रल PWD विभाग से पर्यावरण सम्बन्धी सारे क्लियरेंस भी मिल गए हैं।

कोरोना के आपद काल में भी यह पर्यावरण को मटियामेट करने का ये ऐतिहासिक काम देश की राजधानी उस दिल्ली में चल रहा है, जहां जाने कितने ही नामी- गिरामी यूनिवर्सिटीज और कोचिंग इंस्टीट्यूटस में बच्चों को हॉस्टल नहीं मिल पाते हैं। जिसके चलते हज़ारों किलोमीटर दूर से आने वाले स्टूडेंट्स  घटिया हालात वाले महंगे कमरों में रहने को मज़बूर होते हैं, लेकिन मजाल है, जो कोई इन मज़बूर स्टूडेंट्स की सहायता के लिए कुछ कह ले।

बकौल दुष्यंत कुमार –

“मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है”।

सरकार अपने निजी व्यावसायिक स्वार्थ हेतु पर्यावरण को नुकसान पंहुचा रही है 

एक नमूना मध्यप्रदेश के छतरपुर की हीरा खदान है। यहां बक्सवाहा जंगल के नीचे दबे 50 हज़ार करोड़ के हीरों को हासिल करने के लिए सरकार करीब ढाई लाख पेड़ों की बलि चढ़ाए जाने की तैयारी में है। पहले इसकी  ज़िम्मेदारी एक आस्ट्रेलियन कंपनी रियोटोटो को इसका ठेका दिया गया था, जो बीच में ही काम छोड़ के निकल गई। अब बेशकीमती सागौन, जामुन, हेड़ा, पीपल, तेंदु, महुआ जैसे पेड़ों से समृद्ध इस जंगल को निपटाने की जिम्मेदारी बिड़ला समूह को दी गई है।

सरकार के इस फैसले के चलते वहां के स्थानीय लोग गुस्से में हैं, लेकिन चिपको आंदोलन जैसा कोई दूसरा आन्दोलन ना खड़ा हुआ, तो बुंदेलखंड के लिए फेफड़ों का काम करने वाला यह जंगल शायद ही बच सके।

हमें महाराष्ट्र सरकार के निर्णयों से पर्यावरण सरक्षंण की सीख लेनी चाहिए  

हम महाराष्ट्र में पिछले साल हुई 2 घटनाओं से अपने पर्यावरण एवं जैव- विविधता को सरंक्षण करने की सीख ले  सकते हैं। पिछले साल NHAI एक हाइवे बना रही थी, जो महाराष्ट्र के सांगली से होकर गुज़रना था। इसी रास्ते में एक 400 साल पुराना, 400 स्क्वॉयर मीटर में फैला बरगद का पेड़ भी काटा जाना था, जिसे लेकर स्थानीय ग्रामीण और एनवायरमेंटल एक्टिविस्ट ने सरकार का काफी विरोध किया।

आदित्य ठाकरे ने इसका नोटिस लेते हुए नितिन गडकरी को लेटर लिखा था और उन्होंने भी मसले का तत्काल संज्ञान लेकर उस पेड़ को काटे जाने का विचार कैंसल कर दिया था। इसके अलावा सरकार ने इस एरिया के आस-पास के 800 एकड़ एरिया को फॉरेस्ट रिज़र्व एरिया घोषित करने का भी महत्त्वपूर्ण काम किया।

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