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“नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा- स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार का दर्ज़ा देना होगा”

नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा- स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार का दर्ज़ा देना होगा

नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित विश्‍व प्रसिद्ध बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी किशोरावस्था से ही समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ संघर्ष करते आ रहे हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि उन्‍होंने अपने जीवन के 50 बसंत समाज को दिए हैं। उन्‍होंने समय-समय पर सरकार के सम्मुख बाल तथा नागरिक अधिकारों की बातें की हैं, जिनके लिए उन्होंने आंदोलनों व जन जागरुकता यात्राओं का सहारा लिया है।

शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने की मांग की 

सत्‍यार्थी ने अपनी  शिक्षा यात्रा का शुभारंभ 21 जनवरी 2001 को भारत के दक्षिणी राज्य केरल से किया था और जिसका समापन 19 जून 2001 को दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ। इसमें देशभर से पचास हज़ार लोग शामिल हुए थे। इस यात्रा का आयोजन शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए किया गया था। सत्यार्थी का मानना है कि अशिक्षा और बाल मज़दूरी एक-दूसरे के पूरक हैं। इस यात्रा में उन्होंने नारा दिया कि हर बच्चे का है अधिकार, रोटी खेल पढ़ाई प्यार’ जो बहुत ही असरदार साबित हुआ।

कैलाश सत्यार्थी

आज से 20 साल पहले यानी 26 मई 2001 को सत्यार्थी अपनी शिक्षा यात्रा का नेतृत्‍व करते हुए पंजाब की औद्योगिक नगरी लुधियाना पहुंचे, तो वहां पर उनका स्वागत उनके पंजाब के एक शेरदिल साथी सरदार जयसिंह ने हज़ारों  कार्यकर्ताओं के साथ किया। गौरतलब है कि जयसिंह का अभी विगत 22 मई को ही निधन हुआ है। लुधियाना में सत्यार्थी ने शिक्षा यात्रियों तथा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि जब देश आज़ाद हुआ था, तो दो करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर थे, लेकिन आज 12 करोड़ बच्‍चे स्‍कूल से बाहर हैं।

ये सरकारों की बच्चों के प्रति बदनीयती तथा उदासीनता का ही परिणाम है। सरकार जानबूझकर शिक्षा का हथियार गरीब तथा मज़लूम लोगों के हाथों में नहीं देना चाहती है और उन्‍होंने खबरदार किया था कि उसने 45वें अनुच्छेद की अवहेलना की है, जिसमें 1960 तक सभी को शिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन उन्‍होंने कहा कि अब सरकार को शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाना ही पड़ेगा।

स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने का किया आह्वान

 हाल ही में 24 मई को सत्यार्थी ने विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की वर्ल्ड हैल्‍थ असेम्बली के 74वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए विश्‍वभर की सरकारों से एक जनोपयोगी मांग की कि स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार अधिकार बनाया जाए। सत्यार्थी की यह मांग बहुत ही अभिनव है और इसको अच्छा-खासा जन समर्थन मिलने लगा है। इस असेम्‍बली में दुनियाभर की सरकारों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने भी शिरकत की थी।

सत्यार्थी ने ऑनलाइन उपस्थित स्वास्थ्य मंत्रियों से आग्रह किया कि वे अपने-अपने देश के कोविड-19 पीड़ित, गरीब व हाशिये पर आए बच्चों के लिए एक राहत कोष की स्थापना करें और उसके लिए अलग से बजट का प्रावधान करें।

उन्होने विश्व की सरकारों से कहा कि वे ठोस कार्य-योजना बनाने के साथ-साथ एक टास्क फोर्स भी बनाएं। सत्यार्थी ने असेम्‍बली को संबोधित करते हुए कहा कि वे उन लाखों बेजुबान बच्चों की आवाज़ बनकर आए हैं, जो गरीबी व अशिक्षा के कारण पीछे छूट गए हैं और गरीबी के कारण अपना जिस्म बेचने को मज़बूर हैं। 

 नौकरी या व्यवसाय खोने वाले परिवारों के लिए यह समय चिंताजनक है 

सत्यार्थी ने कोविड-19 के संकट को ना केवल आर्थिक व स्वास्थ्य का संकट बताया, बल्कि इसे सभ्यता का संकट बताया। उन्हें उन परिवारों की भी चिंता है, जिनकी नौकरियां छूट गईं हैं या उनके काम-काज बंद हो गए हैं। ऐसे परिवारों में कुल बच्चों की संख्या 14 करोड़ है।

 सत्यार्थी कोरोना की तीसरी लहर को लेकर चिंतित

सत्यार्थी की चिंता कोरोना की तीसरी लहर को लेकर है। इससे बचने के लिए उन्‍होंने विश्वभर की सरकारों से पुख्ता इंतज़ाम करने का आह्वान किया है। उन्‍होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की सभी एजेंसियों को एक साथ काम करने की सलाह दी है। सत्यार्थी ने कोविड-19 रोधी वैक्सीन के लिए समर्थन जुटाने की भी बात कही और बच्चों के लिए नि:शुल्‍क टीकाकरण पर भी जोर दिया है।

सत्यार्थी ने अपने सम्बोधन में भावुक होकर कहा कि हमारे बच्चे इंतज़ार नहीं कर सकते हैं। इसके विपरीत मुनाफा, राजनीति और संपत्ति इंतज़ार कर सकते हैं। बच्चों की आज़ादी, सुरक्षा और बचपन अब और इंतज़ार नहीं कर सकते।

हम बच्चों को पीछे नहीं छोड़ सकते, हमें उन्हें साथ लेना होगा। सत्यार्थी कहते हैं कि अगर हम बच्चों को पीछे छोड़ देते हैं, तो स्वास्थ्य सेवाओं में हमारे द्वारा किया गया निवेश एक पीढ़ी और दूसरी पीढ़ी के बीच के विशाल अंतर के करण विफल हो जाएगा। 

महामारी के द्वारा की गई तबाही बहुत ही भयानक है। हमें बच्चों को साथ लेना ही होगा। गौरतलब है कि सत्यार्थी हमेशा जनोपयोगी मुद्दे उठाते हैं। उनकी मांगें हमेशा सत्यता के नज़दीक होती हैं और साथ-साथ सामयिक भी होती हैं। उनके द्वारा स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने की मांग आज समय की मांग है। अगर हमारी सरकार इस मांग पर अमल करती है, तो निश्चित रूप से भारत में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी आएगी। 

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लेखक सामाजिक व राजनीतिक चिंतक हैं।

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