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कविता : प्रधानसेवक कह रहे हैं, देश में सब चंगा सी

कविता : प्रधानसेवक कह रहे हैं, देश में सब चंगा सी
15 लाख का झांसा दे कर
लोग चुनकर आ गए
सरकार बस अब नाम की रही
सब कुछ बेच कर खा गए
जीडीपी में आई गिरावट
जॉब गई लाखों लोगों की
ये खुशी से झूम रहे हैं
सब से कहते हैं
सब चंगा सी
अर्बन नक्सल, टुकड़े टुकड़े
बड़ा बड़ा है इनका शब्दकोश
धारा 144 लगाते पूरे देश में
अगर बढे है असंतोष?
नोटबंदी  करके ये कहते हैं
50 दिन तो आप रुको सही
काला धन अगर  आया  नहीं
तो  जला  देना  मुझे  यहीं
100  लोग मर  गए नोटबंदी में
लाइनों में खड़े-खड़े पर
कहते हैं सब से
सब  चंगा  सी
 
 
टीवी 8 बजे आकर यह कहते
कि देश में लॉकडाउन अब लग जाएगा
एक पल भी सोचा नहीं
गरीब मज़दूर खाएगा क्या?
 
 
 
थाली बजाई दिए जलाए
महामारी तो  कहीं गई नहीं
राजधानी होकर भी  दिल्ली
एक-एक सांसों के लिए तड़प रही
 
 
शमशानों में लगी हुई हैं लम्बी- लम्बी कतारें
जनता परेशान हो दर-दर घूम रही
टीका नहीं है लगवाने को, लेकिन
पर सबसे कहते हैं
सब चंगा सी।
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